प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से देश को संबोधित करते हुए संविधान की 75वीं वर्षगांठ का ज़िक्र किया और उसकी जमकर तारीफ़ की। लेकिन इसी दौरान उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भी तारीफ़ कर डाली, जो कि न सिर्फ़ स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहा, बल्कि कई बार ब्रिटिश शासन का समर्थन करता दिखा।
आरएसएस के विचारक एम. एस. गोलवलकर ने ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ नामक किताब में गांधी जी के नेतृत्व वाले स्वतंत्रता आंदोलन में भाग न लेने को जायज़ ठहराते हुए लिखा था, "भौगोलिक राष्ट्रवाद का मतलब यह मानना है कि जो लोग इस ज़मीन पर रहते हैं, वो सभी भारतीय हैं... हिंदू, मुस्लिम, ईसाई— इन सबको 'राष्ट्रीय' मानकर एक संयुक्त ताकत के रूप में विदेशी हुकूमत के ख़िलाफ़ खड़ा करने की कोशिश की गई।"
इतना ही नहीं, 14 अगस्त 1947 को आरएसएस ने संविधान सभा द्वारा अपनाए गए राष्ट्रीय ध्वज को नकारते हुए लिखा था, "यह तथाकथित राष्ट्रीय झंडा कभी भी हिंदुओं द्वारा सम्मानित और अपनाया नहीं जाएगा। तीन रंगों वाला झंडा मनोवैज्ञानिक रूप से बुरा प्रभाव डालेगा।"