loader

राष्ट्र नहीं रहा तो फिर किस खूँटी पर टंगेगा हिंदुस्तान?

आज ही के दिन यानी 7 अगस्त, 1935 को मध्य प्रदेश के धार ज़िले में जन्मे हिंदी पत्रकारिता जगत के पुरोधा राजेंद्र माथुर ने यह लेख तब लिखा था जब बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए रथयात्रा निकाली थी और उनकी गिरफ़्तारी की आशंका थी। तक़रीबन 29 साल पहले लिखा उनका यह लेख आज के हिंदुस्तान के लिये उतना ही प्रासंगिक है और देश को एक ख़तरे से आगाह कर रहा है कि अगर राष्ट्र ही नहीं बचा तो हिंदुत्व लेकर क्या करोगे। पढ़ें पूरा लेख...
राजेंद्र माथुर

राम जन्मभूमि मंदिर परिसर की ज़मीनों, इमारतों, चबूतरों, दुकानों और जायदादों का अधिग्रहण करके केंद्र सरकार ने अयोध्या विवाद को बरसों से चल रही मुक़दमेबाज़ी से मुक्त करके राष्ट्रीय समाधान का विषय बना दिया। बाबरी मसजिद इस क्षण मुसलमानों की नहीं है और शिलान्यास स्थल इस क्षण हिंदुओं का नहीं है। जो स्थगन आदेश इलाहाबाद हाइकोर्ट ने दे रखा था उसका भी अब कोई अस्तित्व नहीं। क़ानूनी स्थगन आदेश समाप्त हो चुका है लेकिन नैतिक स्थगन आदेश मौजूद है, जिसका पालन करते हुए सरकार ने यथास्थिति को बनाए रखने का वादा किया है।

ताज़ा ख़बरें

लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने अधिग्रहण की इस कार्रवाई का स्वागत किया है तो इसका कारण यह है कि अधिग्रहण के बाद वह घटना सिर्फ़ एक क़दम दूर रह गई है, जिसे भाजपा और विश्व हिंदू परिषद साकार होते देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि सरकार एक आज्ञा और जारी करे और बाबरी मसजिद का क़ब्ज़ा हिंदुओं को सौंप दे। लेकिन जनता दल सरकार यह काम नहीं कर रही है क्योंकि वह उस धर्म निरपेक्ष परंपरा की वारिस है जो कांग्रेस की स्थापना के समय से हमारे राष्ट्रवाद को परिचालित करते आ रही है। सरकार की बाधा यह है कि बरसों से चल रहे दीवानी विवाद में अगर वह अदालतों को एक कोने धकेलकर हिंदुओं की तरफ़दारी करती है तो वह धर्म को देश के क़ानून से ऊपर रखने का निर्णय लेती है और ऐसा निर्णय लेना धर्म-राज्य की ओर क़दम बढ़ाना है। 1989 के चुनाव में देश ने एक धर्म-राज्य की स्थापना का जनादेश दिया है- इस बात का कोई सबूत नहीं है। लेकिन जैसे विश्वनाथ प्रताप सिंह एक जाति-राज्य की स्थापना पर अड़े हुए हैं, उसी तरह भारतीय जनता पार्टी आज और अभी अपने धर्म-राज्य के लिए एक प्रतीकात्मक स्वीकृति चाहती है।

केंद्र सरकार मसजिद के झगड़े में उच्चतम न्यायालय की राय चाहती है। यदि इरादा राष्ट्रीय समाधान का है, सुप्रीम कोर्ट को इस बार दीवानी अदालत की तरह ही नहीं, बरगद के नीचे बैठ पंच परमेश्वर की तरह अथवा लोक अदालत की तरह फ़ैसला देना होगा। शायद उसने यह भी तौलना होगा कि क्या यह जगह हिंदुओं के मन में बरसों से असाधारण आस्था एवं उद्वेलन का विषय रही है और क्या मसजिद भी मुसलमानों के लिए उतनी ही ऐतिहासिक चीज है?

उच्चतम न्यायालय का फ़ैसला अधिक से अधिक 6-8 महीनों में प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार यह भय भी नहीं है कि 21वीं सदी तक क़ानूनी दाँव-पेंच ही चलते रहेंगे।

विश्व हिंदू परिषद पिछले साल शिलान्यास के समय बूटा सिंह और नारायण दत्त तिवारी को लिखित आश्वासन दे चुकी है कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के स्थगन आदेश में बाधा न डालकर यथास्थिति को बनाए रखेगी। हो सकता है कि यह प्रतीज्ञा फिर शिलान्यास कार्यक्रम तक सीमित हो और आज वह लागू न हो। लेकिन जो वचन उसने पिछले साल दिया था वह केंद्र सरकार के ताज़ा स्वागत योग्य क़दम के बाद एक बार फिर क्यों नहीं दिया जा सकता? भगवान राम इतनी प्रतीक्षा तो कर ही सकते हैं।

टिक-टिक करती हुई घड़ी का मुक़ाबला करते हुए सिर्फ़ एक हफ़्ते के लिए सरकार और हिंदू-मुसलिम नेता सक्रिय हुए तो इतनी सारी गुंजाइशें नज़र आने लगीं और पुरानी जकड़नें ढीली होने लगीं। यदि सुप्रीम कोर्ट की पंचाट के समय भी हिंदू-मुसलिम नेता इस हड़बड़ाहट को बनाए रखें और घड़ी की टिक-टिक महसूस करें, तो यह संभव है कि सुप्रीम कोर्ट को यह फ़ैसला देना ही न पड़े और आपसी समझौता हो जाए। यदि अयोध्या को एक राष्ट्रीय समाधान की दरकार है, तो सबसे अच्छा यह है कि समाधान न तो केंद्र सरकार का हो, न उच्चतम न्यायालय का; समाधान हिंदुओं और मुसलमानों का ख़ुद का हो।

भाजपा ने अल्टीमेटम दे रखा है कि रथयात्रा रोकी गई या आडवाणी को गिरफ़्तार किया गया तो वह सरकार से समर्थन वापस ले लेगी। लेकिन यह धमकी अब बहुत भयावह नहीं लगती, क्योंकि सरकार के रहने या गिरने से भी अधिक हैरतनाक संभावनाएँ क्षितिज पर मँडरा रही हैं। डरने की सबसे बड़ी बात यह है कि कहीं देश को 1947 के बाद के सबसे बड़े रक्तपात से न गुज़रना पड़े। इस हादसे की शुरुआत रथयात्रा रोककर आडवाणी की गिरफ़्तारी के बाद भी हो सकती है और राम रथ के अयोध्या आगमन तथा मंदिर निर्माण के सूत्रपात के बाद भी हो सकती है। सरकार कुछ करे तो भी हालत संगीन है और न करे तो भी।

भाजपा की दुविधा

भाजपा समर्थन देती रहे तो भी हालत संगीन है और यदि वापस ले ले तो वह और भी ज़्यादा संगीन है। ऐसे में शायद विश्वनाथ प्रताप सिंह जूझते हुए गिरना पसंद करेंगे बजाए आत्मसमर्पण करते हुए गिरने के। जो शर्त भाजपा ने रखी है उन्हें विश्वनाथ प्रताप के इस्तीफ़े के बाद भी कौन जनता दल नेता पूरी कर सकता है? कोई नहीं। यदि कांग्रेस का ईमानदार समर्थन मिले तो वह आशंकित परिस्थिति में जूझने का काम भले ही विश्वनाथ प्रताप सिंह से बेहतर कर सके लेकिन यह 19-20 का ही फ़र्क होगा। इस प्रकार सरकार का गिरना, रहना या बदलना अयोध्या विवाद के लिए प्रासंगिक है। ख़ास मुद्दा यह है कि राष्ट्र-राज्य नामक भारत के इस भव्यतम मंदिर को कैसे बचाया जाए, जो 50 पीढ़ियों में ही हमने कभी देखा नहीं; और इसकी कोई तुलना अयोध्या के किसी प्रस्तावित मंदिर से नहीं की जा सकती।

आडवाणी निश्चय ही मानते हैं कि अयोध्या का मंदिर भारत के राष्ट्र-राज्य को नई शक्ति और दिशा देगा, जैसे कि विश्वनाथ प्रताप सिंह मानते हैं कि जाति-युद्ध से हिंदू धर्म का कायाकल्प होगा और बदला हुआ हिंदुत्व इस राष्ट्र-राज्य को भी बदल देगा। एक क्षण के लिए हम दोनों को सही मान लेते हैं लेकिन सवाल यह है कि जब हिंदुस्तान मरीज़ की तरह बिस्तर पर पड़ा हुआ है और कई घाव उसके शरीर पर हैं तभी क्या उसे सुबह 4 बजे उठाकर 10 किलोमीटर दौड़ाना और थकाने वाली पीटी करवाना ज़रूरी है? 

आपको एक हिंदू राष्ट्र चाहिए, लेकिन एक राष्ट्र ही बिखर गया तो हिंदुत्व को लेकर किस खूँटी पर टाँगिएगा। सदियों तक ऐसी खूँटी फिर दोबारा मिलने से रही।

दरअसल, यह ऐसा मामला है, जिसे अदालतों के बजाए हिंदुओं और मुसलमानों के प्रामाणिक, धार्मिक एवं सामाजिक नेताओं को आपस में निपटाना चाहिए। लेकिन यहाँ दो दिक्कतें हैं। एक तो हिंदू और मुसलिम मनोवैज्ञानिक ग्रंथियों की दिक्कत है। हिंदुओं के पास 43 साल से एक ऐसा हिंदुस्तान है जैसा पहले कभी नहीं रहा। इस कारण उन्हें उदार और आश्वस्त होना चाहिए, दीन और पराजित नहीं। लेकिन आरएसएस प्रभावित हिंदू अपनी पराजय बोध से उबर ही नहीं पा रहे और वे इतिहास के सारे अतिक्रमणों का प्रतीकात्मक इलाज अयोध्या में खोज रहे हैं। वे इस बात से भी दुखी हैं कि जैसे समाज रचना और राष्ट्रीयता की बहसों से ईसाई, सिख या मुसलमान अपने धर्म की भूमिका की चर्चा सहजता से करते हैं उसी सहजता से भारत में हिंदुओं की भूमिका की चर्चा क्यों नहीं होती? इसे सांप्रदायिकता क्यों माना जाता है? दूसरी ओर, भारत के मुसलमानों में भी पराजय बोध है। अपनी विजेता किंवदंती के बाद यह पराजय बोध अपनी खोल में लौट आता है। बाबरी मसजिद की जगह राम मंदिर बन जाए और हमेशा के लिए हिंदू मुसलिम चर्चा बंद हो जाए तो अयोध्या की मसजिद शायद वे कल छोड़ दें। लेकिन उन्हें भय है कि यह सिलसिला अनंत है और पता नहीं कहाँ जाकर ख़त्म होगा।

विचार से ख़ास

इन हिंदुओं और मुसलिम ग्रंथियों को लोकतांत्रिक राजनीति कम नहीं करती है बल्कि बढ़ाती है और उनका इस्तेमाल करती है। यह हमारी दूसरी बड़ी दिक्कत है, लेकिन इस दुर्गुण के बावजूद, लोकतंत्र में इतने फ़ायदे हैं कि हम इसे छोड़ नहीं सकते हैं। लोकतंत्र के दुर्गुणों को यदि हमें संयमित रखना है, तो ज़ाहिर है कि राजनीति से परे ऐसे सामाजिक नेता हमें चाहिए, जो राजनीति द्वारा तोड़े गए पुलों के विकल्प बन सकें और दरारों को जोड़ सकें।

साभार: सपनों में बनता देश (सामयिक प्रकाशन।)

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
राजेंद्र माथुर
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें