रामभद्राचार्य को कुछ लोग जगदगुरू कहते हैं। शायद वे खुद को भी। कथावाचक हैं। और उन्हें गुलज़ार जैसे औसत फिल्मी शायर के साथ साहित्य का ज्ञानपीठ भी मिला है। जिससे रामभद्राचार्य का जो भी हुआ है, ज्ञानपीठ की इज़्जत जरूर घटी। उन्हें नफरत की जहर बुझी ऋतंभरा की ही तरह पद्म अवॉर्ड भी मिले हैं। और ये इस निज़ाम की खासियत है कि जो लोग समाज को बांटने, अतीत की तरफ ले जाने, हिंसा का विकल्प चुनने, कानून को तोड़ने, संविधान को चुनौती देने का काम करते हैं, उन्हें सम्मानित किया जाता है। वे हमारी उत्कृष्ठता के नये मापदंड हैं।