रामभद्राचार्य को कुछ लोग जगदगुरू कहते हैं। शायद वे खुद को भी। कथावाचक हैं। और उन्हें गुलज़ार जैसे औसत फिल्मी शायर के साथ साहित्य का ज्ञानपीठ भी मिला है। जिससे रामभद्राचार्य का जो भी हुआ है, ज्ञानपीठ की इज़्जत जरूर घटी। उन्हें नफरत की जहर बुझी ऋतंभरा की ही तरह पद्म अवॉर्ड भी मिले हैं। और ये इस निज़ाम की खासियत है कि जो लोग समाज को बांटने, अतीत की तरफ ले जाने, हिंसा का विकल्प चुनने, कानून को तोड़ने, संविधान को चुनौती देने का काम करते हैं, उन्हें सम्मानित किया जाता है। वे हमारी उत्कृष्ठता के नये मापदंड हैं।
रामभद्राचार्य जो उटपटांग बातें कह रहे हैं, पहले वह पढ़िये। ये मुझे ग्रोक एआई पर मिला लिंक्स के साथ।
  • "बाबासाहेब अंबेडकर को संस्कृत का ज्ञान नहीं था, इसलिए उन्होंने मनुस्मृति जलाई… मायावती ने मनुस्मृति को गाली दी, जबकि वह एक अक्षर भी नहीं जानतीं," एक गोष्ठी में उन्होंने कहा।
  • “मरे मुलायम कांशीराम, प्रेम से बोलो जय श्रीराम।” अप्रैल 2023 में आगरा में एक रामकथा के दौरान यह टिप्पणी एसपी और बीएसपी के समर्थकों के नारे "मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम" की प्रतिक्रिया में थी। सपा-बसपा समर्थकों ने एफआईआर दर्ज करने की मांग की। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर नोटिस जारी किया, लेकिन बाद में आरोपों को "निराधार" बताते हुए खारिज कर दिया।
  • "जो लोग 'जय श्री राम' नहीं बोलते, वे एक खास जाति (संभवतः दलित) के हैं।" जनवरी 2024 में उनका दावा था। इसके अलावा, बिहार में एक जाति विशेष पर टिप्पणी की, जिसे जातिवादी बताया गया।
  • "देश में कोई नीच या शूद्र नहीं है। आरक्षण तत्काल खत्म किया जाना चाहिए… नेता ही जातिवाद फैला रहे हैं" आगरा में हुए कार्यक्रम में उन्होंने कहा।
  • "मैं भागवत जी से सहमत नहीं हूँ… वे हमारे अनुशासक नहीं, बल्कि हम उनके अनुशासक हैं, "आरएसएस प्रमुख के "नए मंदिर-मस्जिद विवाद न उठाएं" के बयान पर उन्होंने कहा। यह टिप्पणी हिंदू संगठनों में मतभेद का संकेत देती है और धर्मनिरपेक्षता बनाम हिंदू राष्ट्रवाद की बहस को उकसाती है।
  • उन्होंने जैनियों को "विधर्मी" कहा और आरोप लगाया कि वे भगवान राम की छवि को ख़राब करने वाली कहानी का समर्थन करते हैं। उनका दावा था कि जैन, कम्युनिस्ट, मुस्लिम और बौद्धों ने मिलकर रामायण के उत्तरकांड में एक झूठी कहानी को बढ़ावा दिया है।
  • कुंभ मेले के संदर्भ में उन्होंने कहा था कि "इस बार कुंभ में हम कुछ ऐसा करेंगे जो पाकिस्तान का नाम विश्व मानचित्र से मिटा देगा।"
  • "जिन हिंदुओं ने मोदी को वोट नहीं दिया वे मंथरा के 'वंशज' (संतान) हैं," जो रामायण के एक ऐसे पात्र को संदर्भित करता है, जो धोखे के लिए जाना जाता है। यह 2024 के भारतीय आम चुनावों के संदर्भ में कहा गया था, भाजपा के खिलाफ वोट देने को हिंदू मूल्यों के साथ विश्वासघात के बराबर बताया गया।
  • रामभद्राचार्य ने दावा किया कि गौतम बुद्ध ने "राष्ट्र को नपुंसक बना दिया" और कहा कि जो लोग राम का नाम नहीं लेते, वे "शूद्र" हैं।
  • जयपुर में एक राम कथा के दौरान, रामभद्राचार्य ने कथित तौर पर कहा, "मैंने उच्च अधिकारियों से कहा कि राजस्थान में ब्राह्मण मुख्यमंत्री होना चाहिए," और जाति-आधारित आरक्षण समाप्त करने की वकालत की।
  • बकरीद में बकरे क्यों काट रहे हैं, कुरबानी देनी है अपना सिर काट लें।
अब ग्रोक से बाहर निकलते हैं। ये वह जगदगुरु हैं, जिन्हें इक्कीसवीं सदी में कम से कम दुनिया नहीं तो कम से कम हिंदू समाज के लिए रौशनी बिखेरने वाला समझा जा रहा है। वे कह रहे हैं मोदी मेरे बहुत क़रीब हैं। फिर वे जो बातें कर रहे हैं, नफरत, हिंसा, वैमनस्यता, जातिवाद का वीभत्स उसका मुख्य रस है। भेदभाव बढ़ाने वाली बातें। और अजीब-सी विकृत काल्पनिकताएं लिए। वे सवर्ण हिंदुओं के पक्षधर दिखते हैं और बाकी सब जो भारतीय हैं, उनके लिए मायने नहीं रखते। उनकी बातें न संविधान के अनुरूप हैं, न भारत के आइडिया के, न वे वैश्विक समीकरणों और पेचीदगियों में फंसे हुए भारत और दुनिया के लिए कोई प्रासंगिक बात कह रहे हैं, न भविष्य की तरफ देखते हुए समावेशी समाज के तरक्कीपसंद, तर्कशील, मानवीय विमर्श की तरफ ले जा रहे हैं। वे नफरती, हिंसक, अंसतुष्ट, क्रुद्ध और हीनभावनाओं से ग्रस्त प्रवृत्तियों के प्रचारक हैं और नकारात्मक भावनाएं भड़काकर सुबह शाम दोपहर तर्कशील मानस पर बुलडोजर चलाने में लगे हैं। वे इंस्टा इंफ्लुएंसर और कांवड़ियों के डीजे की तरह हैं, जिन्हें आप शायद इसलिए माफ़ कर सकते हैं कि वे अभी अनपढ़ हैं। अभी जिंदगी उन्हें देखनी है। पर रामभद्राचार्य अलग ही हस्ती हैं। मीडिया उनके बयानों को ब्रह्मसत्य की तरह परोसती है, राजनेता उनके चरणों पर बिछते हैं और नाखुश लोगों की भीड़ उन्हें सुनने जाती है। तीनों खुद को धन्य समझते हैं। गदगद होकर लौटते हैं। वे अकेले नहीं हैं।

रामभद्राचार्य एक यूनिवर्सिटी चलाते हैं। वहां पढ़ने और पढ़ाने वालों के बारे में चिंतित होना चाहिए। कि भारत का संविधान, नागरिक अधिकार, देश की परिकल्पना और लोकतंत्र को किस तरह से अभ्यास में लाते हैं। अपने चांसलर यानी रामभद्राचार्य के मुताबिक़ या यूजीसी और संविधान के। अगर इस देश की राजनीति, कानून, अदालतें कायदे से चल रहे होतीं तो इस आदमी को कई अपराधों का न सिर्फ़ दोषी ठहरा दिया गया होता, जो ये जहाँ कैमरा देखा बोल पड़ते हैं, या फिर किसी अस्पताल में इलाज करवाया जा रहा होता।

अपने बयानों से न तो वह धर्मगुरु लगते हैं, न आध्यात्मिक। वे गोडसेवादी प्रपंच के प्रचारक लगते हैं। वे धर्म की आड़ में राजनीति कर रहे हैं। उनके जरिये कोई अपना उल्लू सीधा कर रहा है। वह कौन है? कौन भारत को - मुझको और आपको ‘प्रोजेक्ट हिंदू पाकिस्तान’ का हिस्सा बनाने में लगा है।

वे इस समय, इस सरकार, इस तंत्र, बहुसंख्य समाज के हीरो हैं। क्यों? इसके पीछे इनका खुद का प्रताप है, या फिर इन्हें समाज की कुंद होती मानसिकता को और ठस करने के लिए बढ़ाया जा रहा है। ज्ञानपीठ पुरस्कार देना। सरकारों के मुख्यमंत्री किसको बनाना, ये बताना। आंबेडकर या जातियों को लेकर, मुस्लिमों और दूसरे अल्पसंख्यकों को लेकर अल्ल-बल्ल बकते रहना। रामभद्राचार्य की विषाक्तता को फैलाया क्यों जा रहा है? वे मुख्यधारा में कैसे आ गये? आये या लाया गया? उस नीम हकीम रामदेव की तरह।

चित्रकूट में रामभद्राचार्य से गदा ग्रहण करते हुए भारतीय थल सेना के प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी।

और अब एक दिन भारत पाकिस्तान संघर्ष के बाद भारतीय सेना के प्रमुख को गदा सौंपते हुए पीओके का तोहफा मांगने की तस्वीरें सामने आईं। रामभद्राचार्य किसकी नुमाइंदगी करते हैं? भारतीय सेना का प्रमुख आधिकारिक तौर पर अपनी पूरी वर्दी में उनके साथ क्यों है? क्यों दोनों की प्रतिबद्धताएँ एक हैं। साफ़ तौर पर नहीं, जब आप अलग-अलग मूल्यों और स्थापनाओं के लिए खड़े हैं। रामभद्राचार्य का भारत सबका भारत नहीं है। सेना और उसके प्रमुख के बारे में यह नहीं कहा जा सकता। वे पूरे भारत के हैं और वे अपने पद पर सारे भारतीयों के लिए हैं। 
निजी तौर पर प्राइवेट मीटिंग एक बात है, पर मिलना, फोटो खिंचवाना, उसे अखबारों में छपना और बेहूदी बातें कहने वाले व्यक्ति को इस तरह से पेश करना जो देश के आर्मी चीफ़ को पेट्रनाइज कर रहा है, इस देश, उसकी फौज, उसकी वर्दी सबके साथ इतनी क्रूरता के साथ किया गया मजाक है, जिस पर हंसना या उसे टाल देना बहुत मुश्किल है। यह मानना मुश्किल है कि रामभद्राचार्य और हमारे सेना प्रमुख को इसका अंदाजा न हो। पर वे क्या अपनी मर्जी से ये कर रहे हैं। एक तरफ ये हो रहा है, दूसरी तरफ कर्नल सोफिया कुरैशी को भारत सेक्युलर है, बताने का चोंचला किया जा रहा था। तीसरी तरफ कुरैशी के परिवार को कलक्टर से फोन करवा कर प्रधानमंत्री पर फूल बरसवाये जा रहे थे। चौथी तरफ घर-घर सिंदूर पंहुचाने की तिकड़म के बैकफायर होने और ममता बनर्जी के क्लास लगाए जाने पर 48 घंटे बाद फेक न्यूज बताया जा रहा था। और अब इकोनॉमिक टाइम्स की खबर है कि कर्नल सोफिया कुरैशी को भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रचार की पोस्टर गर्ल की तरह इस्तेमाल करेंगे। हालाँकि, इस मामले में किरकिरी होने के बाद अब अमित मालवीय ने इस ख़बर को फ़ेक करार दिया है।

पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूढ़ के घर पर गणेश पूजा करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

पर जब देश का प्रधानमंत्री मुख्य न्यायाधीश के घर पहुँचकर गणेश पूजा की घंटी टुनटुना सकता है, तो इसमें ही क्या आश्चर्य का विषय हो सकता है। और देखने वाली बात यह है। कि संवैधानिक लोकतंत्र के पदों, उनके दायित्वों, उनके कार्यालयों की जो गरिमा, परंपरा, लक्ष्मणरेखाएं अब तक रही हैं, वे लकीरें अब धुंधली की जा रही हैं। हम इस उभरते हुए पैटर्न को देख सकते हैं। जब क्रिकेट में फौज़ को घुसेड़ा जा सकता है, फौज में मीडिया को और मीडिया में झूठ को। इन सब चक्करों में भारत जिन स्थापनाओं और संस्थानों में प्रतिष्ठित है, वह कमजोर हो रहा है।

पर ये भी हो सकता है उन चार लड़कों का जो पहलगाम हथियार लेकर आये, हमारी महिला सैलानियों का सिंदूर पोंछा, और फिर आराम से चले भी गये और एक माह से ऊपर होने के बाद भी भारत सरकार जिनका पता नहीं लगा सकी, उनके बारे में पीओके तोहफे में मांगते हुए उस दृष्टि से लाचार जगदगुरु ने सही पता ठिकाना बता दिया होगा। इतना ही तंत्र, मंत्र, यंत्र, ज्योतिष जान रहे होते तो 26 लोग ही क्यों मरते। और अभी ही क्यों। पहले भी। क्या आप अपने बच्चों से रामभद्राचार्य की इन बातों से अवगत करवाना पसंद करेंगे और कहेंगे कि जो ये कह रहे हैं, उस पर बिना सवाल या बहस किये अमल करो। अपने लिए नहीं तो देश के भविष्य के लिए।
(harkaraonline.com से साभार)