देश में पहली बार गणेश चतुर्थी के दिन बेचारे सांसदों को गणेश जी की अगवानी छोड़कर संसद के विशेष सत्र में शामिल होने के लिए दिल्ली जाना पड़ा था । यानि विघ्नकर्ता के स्वागत में भी विघ्न डालने का दुस्साहस लोग कर ही लेते हैं। बहरहाल बात पूर्वजों के प्रति शृद्धा प्रकट करने और दुष्टों का तर्पण यानि पिंडदान करने की है। तर्पण करना एक ऐसी क्रिया है जो सबके लिए उपयोगी है । अतृप्त आत्माओं के लिए भी और संतृप्त आत्माओं के लिये भी। इस समय सबसे ज्यादा असंतोष और सत्ता की भूख राजनितिक दलों में हैं। सबके सब जनता के प्रति शृद्धा से भरे नजर आ रहे है। राजनीतिक दल भी जनता का तर्पण, अर्पण करते रहते है। कभी-कभी वे पिंडदान भी कर देते है। भले ही इसके लिए उन्हें उधर का सिन्दूर लाना पड़े।
जनता अपने लिए नई सरकार, नए विधायक, नए मंत्री और मुख्यमंत्री चुन सकती है। वैसे ये काम हर पांच साल में किया जाता है जबकि धर्म में हम इस तरह के काम हर साल करते है। राम मनोहर लोहिया कहते थे कि ज़िंदा कौमें पांच साल इन्तजार नहीं करती । हमने तो अपने सेवकरामों को पांच क्या अठारह साल दे दिये । यानि इंतजार बहुत लंबा हो चुका है। इसलिए ये सही मौक़ा है तब्दीली का।
अपने नेताओं का पिंडदान करने कि लिए आपको स्नान करना भी अनिवार्य नहीं है । ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि आपको जौ का आटा, दूध, काले तिल, कुशा दूध, खीर कुछ नहीं चाहिये । आप तो केवल सही समय पर मतदान केंद्र में जाकर बिजली से चलने वाली मतदान मशीन का सही बटन दबा कर आ जाइये पिंडदान हो जाएगा। आपका मताधिकार पिंडों का पिंड है । इसके जरिये आप धूतों-अवधूतों ,गुरुओं और गुरुघंटालों से अपना पिंड छुड़ा सकते हैं। जो लोग इस महत्पूर्ण अवसर को हाथ से जाने देते हैं वे पूरे पांच साल पछताते हैं। इसलिए हे जनता जनार्दन ! जागो और लोकतंत्र कि श्राद्ध पक्ष का लाभ उठाओ, उनका पिंडदान करो, उनसे अपना पिंड छुड़ाओ जो लगातार आपकी खाल उधेड़ रहे हैं। आपको ठग रहे हैं। आपको कभी सनातन पर खतरे का भय दिखा रहे हैं तो कभी आपसे किसी आभासी कामयाबी का जश्न मनवा रहे हैं। कभी नारियों की झूठी वंदना कर रहे हैं।