जस्टिस नारीमन से कोई पूछे कि दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं, जिन्होंने समझ-बूझकर, पढ़-लिखकर और स्वेच्छा से किसी धर्म को स्वीकार किया है? एक करोड़ में से एक आदमी भी ऐसा नहीं मिलेगा। सभी आँख मींचकर अपने माँ-बाप का धर्म ज्यों का त्यों निगल लेते हैं। जो उसे चबाते हैं, वे बाग़ी या नास्तिक कहलाते हैं।
जस्टिस नारीमन से कोई पूछे कि दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं, जिन्होंने समझ-बूझकर, पढ़-लिखकर और स्वेच्छा से किसी धर्म को स्वीकार किया है? एक करोड़ में से एक आदमी भी ऐसा नहीं मिलेगा।