loader

ममता बनर्जी ने पत्रकारों से कहा, विज्ञापन चाहिए तो सरकार के पक्ष में लिखो

पत्रकारिता समय-समय पर आंखें खोलने या सरकार की असफलताओं को उजागर करती है। यदि उसने यह काम रोक दिया तो हुक़ूमत कर रहे राजनेता को पता भी नहीं चलेगा कि कब उसके पैरों के नीचे से जाजम खिसक गई। ममता बनर्जी के साथ यह शुरुआत हो चुकी है।
राजेश बादल

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद ममता बनर्जी अलग अंदाज में हैं। वे अपने प्रदेश के पत्रकारों से कह रही हैं कि अगर उन्हें विज्ञापन चाहिए तो सरकार के पक्ष में लिखें। इतना ही नहीं, वे उनसे कहती हैं कि ज़िला मजिस्ट्रेट के दफ्तर में पॉजिटिव खबरों वाले अंक जमा करें। फिर उन्हें विज्ञापन मिलेंगे। यानी यदि आप सरकार की आलोचना करते हैं तो सरकार से मदद की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

ममता ने यह बात बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही। उनका यह व्यवहार मुझे आपातकाल के दिनों की याद दिला रहा है।

आपातकाल के दिन

उन दिनों सरकार के पक्ष में ही लिखना होता था और ज़िला कलेक्टर कार्यालय में समाचार पत्र की प्रतियाँ जमा करनी होती थीं। उसके बाद ही सरकारी विज्ञापन मिला करते थे। ममता अपने प्रदेश में यही व्यवस्था लागू कर रही हैं।

इसका अर्थ यह है कि आँचलिक स्तर पर ज़िला कलेक्टर ही पत्रकार को प्रमाणपत्र देगा। यह अनुचित है। ममता को याद रखना चाहिए कि इंदिरा गांधी ने भी आपातकाल के बाद अपनी भूल का अहसास किया था और माफ़ी माँगी थी।

अलोकतांत्रिक!

ममता बनर्जी की यह मंशा जनकल्याणकारी राज्य की लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप नहीं है। सरकार सिर्फ तारीफ पसंद करे और आलोचकों से किनारा करे, यह कतई जायज़ नहीं है। हम सब जानते हैं कि ममता बनर्जी के अंदर सब कुछ लोकतांत्रिक नहीं है। उनके भीतर एक अधिनायक नेत्री बैठी हुई है। हालांकि अगर वह नहीं होती तो बंगाल में चुनाव जीतना उनके लिए शायद संभव नहीं होता। मगर वे भूल जाती हैं कि जम्हूरियत में सारे ज़िम्मेदार प्रतिष्ठानों को एक-दूसरे के प्रति सहयोग का भाव होना चाहिए।

अभिव्यक्ति की आज़ादी इकतरफा नहीं हो सकती। यदि पत्रकारिता सत्ता प्रतिष्ठान की तारीफ की राह पर चल पड़े और आलोचना बंद कर दे तो समझ लीजिए सत्ता दल का अंत निकट है।

'निंदक नियरे राखिए!'

पत्रकारिता समय-समय पर आंखें खोलने या सरकार की असफलताओं को उजागर करती है। यदि उसने यह काम रोक दिया तो हुक़ूमत कर रहे राजनेता को पता भी नहीं चलेगा कि कब उसके पैरों के नीचे से जाजम खिसक गई। ममता बनर्जी के साथ यह शुरुआत हो चुकी है।

पत्रकारिता दरअसल उस आलोचक की तरह है, जो अंततः देश और सरकार के भले के लिए काम करता है। कबीरदास ने सदियों पहले कहा था, ‘निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छबाय,बिन पानी, साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय।’ यानी जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक करीब रखना चाहिए, क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ और निर्मल कर देता है। किसी भी निर्वाचित सरकार को लोकतंत्र में इन पंक्तियों पर अमल करना चाहिए। उसे अपने आलोचकों की जानकारी भी होनी चाहिए, भले ही प्रशंसकों की सूचना नहीं हो।

ख़ास ख़बरें

इतना ही नहीं, उसे अपने आलोचकों या निंदकों के साथ पवित्र रिश्ता रखना चाहिए। आजकल किसको क्या पड़ी है, जो आलोचना करे। पत्रकारिता के पवित्र काम में आलोचना अनिवार्य हिस्सा है। इन दिनों व्यवस्था के दोष निकालने वाले पत्रकारों के साथ सरकारें बदले की भावना से काम कर रही हैं। यह उनकी नासमझी और अपरिपक्वता की निशानी है। किसी भी अधिनायकवादी प्रवृति और बदले की कार्रवाई करने वाली हुकूमत अथवा राजनेता-नेत्री से डरने की आवश्यकता नहीं है मिस्टर मीडिया!

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
राजेश बादल
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें