महामंदी 1932 की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और डोनाल्ड ट्रम्प के 'अमेरिका महान 2025' के वादों के बीच हो रही तुलना ने अमेरिकी राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। जानिए इस जंग के पीछे के कारण और असर को।
अमेरिका में ट्रम्प भक्तों और विरोधियों के मंचन दृश्य रोचक व उग्र होते जा रहे हैं। जहां ट्रम्प भक्तों का नारा है ‘अमेरिका को फिर महान बनाओ’, वहीं देश भर में जुनूनी विरोधियों का नारा भी गूंज उठा है- ‘आओ, अमेरिका को फिर से 1932 बनायें।’ पाठकों को मालूम होगा, अमेरिका के इतिहास में वर्ष 1932 का अभूतपूर्व महत्व है। इसने अमेरिका को महामंदी की खाई में धकेल दिया था। एक साल में ही क़रीब 1 हज़ार 700 बैंक डूब गए थे। चारों तरफ़ बेकारी (33% - क़रीब एक करोड़ 40 लाख), जीडीपी 13% गिरी, भुखमरी, गरीबी, महंगाई, असंतोष, अपराध, बेबी अपहरण, फिरौती, हत्या जैसे अपराधों का राज था। भूमिगत फाफिया संस्कृति फैली हुई थी। लोगों के करोड़ों डॉलर डूब गए। लोगों को घरों से बेदखल होना पड़ा था। घरविहीनता बढ़ी। विस्थापन बढ़ा। 20वीं सदी के प्रथम महायुद्ध के बाद तीसरे दशक में आर्थिक महामंदी का विस्फोट हुआ और 1932 में यह मंदी अपने चरम पर थी। महामंदी के बावजूद चंद लोगों और परिवारों ने बॉन्ड में इन्वेस्टमेंट के माध्यम से खूब धन कमाया और ब्याजदर से तिजोरियाँ भरी थीं। इस दौर में रिपब्लिकन पार्टी का शासन था।
ऐसे हाहाकार के माहौल में अमेरिकियों ने शासन -परिवर्तन का संकल्प लिया। अमेरिकी संसद के 1932 के चुनावों में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन (वर्तमान में ट्रम्प के नेतृत्व में यह पार्टी सत्तारूढ़ है) के मध्य कड़ी चुनावी जंग हुई। राष्ट्रपति पद के लिए इस ऐतिहासिक जंग में डेमोक्रेट पार्टी के प्रत्याशी प्रसिद्ध फ्रेंक्लिन डी. रूजवेल्ट धमाके के साथ विजयी हुए और रिपब्लिकन के राष्ट्रपति प्रत्याशी हर्बर्ट हूवर बुरी तरह से हार गए।
1932 में रूजवेल्ट के नेतृत्व में डेमोक्रेट पार्टी का संसद के दोनों सदनों- सीनेट और कांग्रेस पर कब्ज़ा हो गया था। देश की राजनीति में ज़बरदस्त बदलाव की शुरुआत हुई थी। रूजवेल्ट की प्रसिद्ध ‘न्यू डील पॉलिसी या नई आर्थिक नीतियाँ’ का अभियान शुरू हुआ था। नई सामाजिक-आर्थिक नीतियों के तहत महामंदी के प्रभावों को परास्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधारों और राहत देने का सिलसिला शुरू किया गया। इसी साल मंदी के माहौल के बावजूद शरद कालीन ओलंपिक्स खेलों का आयोजन किया गया, जिसके माध्यम से जनता में उत्साह और उम्मीदों का संचार हुआ। इतना ही नहीं, इसी साल अमेरिका के इतिहास में पहली बार एक महिला हैटी कैरवे सीनेट के लिए चुनी गयी थी। अतः अमेरिकियों की स्मृतियों में 1932 का वर्ष महामंदी से स्वतंत्रता और महानता की ओर परवाज़ भरने के महाअवसर के रूप में दर्ज़ हो चुका है। याद रहे कि अमेरिका के इतिहास में रूजवेल्ट अकेले ऐसे राजनेता हुए हैं जोकि निरंतर चार बार चुने गए थे। उनके काल में ही दूसरे महायुद्ध में अमेरिका की जीत और फासीवादी -नाजीवादी हिटलर व मुसोलिनी की दर्दनाक पराजय हुई थी।
इसलिए ट्रम्प के ‘अमेरिका महान‘ के नारे को करारा माकूल ज़वाब देने के लिए वर्ष -1932 को जंग के मैदान में उतारा गया है। यह दुधारी तलवार है: एक, महामंदी की याद को ताज़ा करना; दो, आर्थिक स्वतंत्रता व उत्थान और डेमोक्रेट राष्ट्रपति रूजवेल्ट की बहुआयामी ऐतिहासिक भूमिका का स्मरण। ट्रम्प विरोधियों का यह अभियान कांग्रेस की मोदी+शाह काल में नेहरू -इंदिरा -राव की उपलब्धियों को स्मरण करने की रणनीति के समान है।
अमेरिका के चैनलों, सोशल मीडिया और अख़बारों में ‘अमेरिका को फिर से 1932 बनाएं’ का नारा छाया हुआ है।
सभी क्षेत्र के विशेषज्ञ बुद्धिजीवी और पत्रकार बड़ी शिद्दत के साथ 1932 और रूजवेल्ट की नई आर्थिक नीतियों की उपलब्धियों पर अपनी प्रतिक्रियाएँ दे रहे हैं। इसके साथ ही महामंदी के महाविनाशक प्रभावों को भी याद करते हैं। यह जतलाने से नहीं चूकते हैं कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ जंग और अन्य नीतियों की बदौलत अमेरिका फिर से 1932 की महामंदी की खाई में गिरने के कगार पर पहुँचता जा रहा है। ट्रम्प देश को उस दिशा में धकेल रहे हैं। रूजवेल्ट और ट्रम्प शासनों के प्रभावों को तुलनात्मक ढंग से सामने रखा जाता है। इस तुलना का प्रभाव लोगों पर पड़ भी रहा है क्योंकि ट्रम्प के 100 दिन के शासन में महंगाई बढ़ी है, छँटनी तेज़ हुई है और बेकारी दिखाई देने लगी है। संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों के लोग प्रभावित हो रहे हैं।
राजधानी वाशिंगटन से लेकर दूरदराज़ अलास्का क्षेत्र में भी प्रतिरोध का परचम लहराने लगा है। सोशल मीडिया में हर दिन के प्रतिरोध के जुलूसों को दिखाया जा रहा है। प्रदर्शनकारियों के होठों पर आक्रामक नारे और मुट्ठियों में ट्रम्प को दण्डित करने की मांग को लेकर तख्तियां रहती हैं। बानगी देखिए: 1. डोनाल्ड ट्रम्प को जेल भेजो, 2. ट्रम्प के फासीवाद का विरोध करो, 3. फासीवाद से दूर रहो, 4. अराजकता का राज दूसरी बार, 5. ट्रम्प अपने हाथों को लोकतंत्र से दूर हटाओ, 6. ट्रम्प हमें महान नहीं बनाएगा, 7. शिक्षा का निकासी बंद करो, 8. एलोन मास्क से ख़बरदार रहो, 9. अमेरिका को फिर से सशक्त बनाओ, 10. सत्य के लिए लड़ो, 11. कानून के शासन के लिए खड़े हो, 12. ट्रम्प -2025 प्रोजेक्ट का विरोध करो, 13. आज्ञा नहीं, प्रतिरोध, 14. कांग्रेस ट्रम्प से मुक्ति ले, यह खा जायेगा, 15. ट्रम्प पर महाभियोग चलाओ, 16. निक्सन -मैकार्थी इतने बुरे नहीं थे (ट्रम्प के साथ तुलना), 17. हम लोगों में से कितनों को मारेंगे? 18. दोस्तों, मुझे उस गैंग का सदस्य नहीं बनाना, 19. वह (ट्रम्प) जिस भी हमारी चीज़ (लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था और हमारी मानवता) को छूता है वह कीट बन जाता है और 20. प्रतिरोध करो। ऐसे ही बेशुमार नारे, तख्तियां और झंडे रहते हैं जुलूसों में। पुलिस भी रहती है, लेकिन आंदोलनकारी शांतिपूर्वक अपना प्रदर्शन और भाषण जारी रखते हैं।
चूँकि, अमेरिका अपनी आज़ादी की ढाई सदी मना रहा है, इसलिए छोटे-छोटे से कस्बे -गांव में स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों को दोहराया जाता है। याद दिलाया जाता है कि ट्रम्प -हुकूमत के सामने आत्मसमर्पण कभी मत करें और तन कर चलें। अब तो प्रसिद्ध हार्वर्ड विश्विविद्यालय ने भी ट्रम्प शासन से क़ानूनी लड़ाई लड़ने का फ़ैसला किया है। ट्रम्प ने विश्विविद्यालय के अनुदान को बंद करने की धमकी दी है। बुद्धिजीवियों ने विश्विविद्यालय के इस क़दम का समर्थन भी किया है।
ट्रम्प भक्त भी पीछे नहीं हैं। वे भी सोशल मीडिया पर सुनहरे सपने दिखाते रहते हैं। उनकी आस्था ट्रम्प की व्यक्तिपूजा या हीरो वरशिप में अधिक है। यद्यपि, वे अपने विरोधियों के साथ सड़कों पर पंगा नहीं ले रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि राजसत्ता उनके साथ है। वे ‘अमेरिका को फिर से महान बनाओ’ के अभियान में ख़ामोशी के साथ लगे हुए हैं। ट्रम्प समर्थक ऐसी बस्तियों में ख़ामोशी के साथ काम कर रहे हैं जोकि पहले डेमोक्रेट की हुआ करती थीं। एक प्रकार से ट्रम्प भक्तों ने संघ की गुप्त सेंधमारी शैली को अपना रखा है। देखना यह है कि 1932 में वापसी का अभियान कितने समय और कहाँ तक अपनी रफ़्तार बनाये रखता है? कुछ राज्यों में दो वार्षिकी चुनाव होंगे। आर्थिक विशेषज्ञों का मत है कि ट्रम्प की टैरिफ जंग लम्बे समय तक अपनी गति को बनाये नहीं रख सकेगी। प्रतिरोध में भी कितना दम रहता है, यह देखना भी कम रोचक नहीं होगा। प्रतिरोधियों के वर्तमान तेवरों में लम्बी लड़ाई का संकल्प ज़रूर चमकता है।