महाराष्ट्र में शिंदे सरकार और दिल्ली सरकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दोनों फैसले अन्ततः भाजपा के कामकाज पर ही फैसला है। दोनों ही राज्यों में भाजपा राजनीति और रणनीति को सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपोज कर दिया है। क्या भाजपा इसे अपने लिए फजीहत मानेगी या इसी तरह काम करती रहेगी।
भारतीय लोकतंत्र की विडंबना देखिए कि भाजपा के नेता पूरी तौर पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भी भुनाने में लगे हुए हैं। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फरमाया है - यह लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की जीत है। हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले से संतुष्ट हैं। इसी तरह शिंदे गुट के नेता राहुल रमेश शिवालय ने कहा कि महाराष्ट्र में शिंदे सरकार को यह बड़ी राहत है। अब प्रदेश को स्थिर सरकार मिलेगी। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। इन टिप्पणियों से साफ है कि भाजपा और शिंदे गुट को अपनी कारगुजारियों पर कोई पछतावा नहीं है। उन्हें बस सत्ता चाहिए और वो फिलहाल सुरक्षित है।
समय आ गया है कि देश के सभी राजनीतिक दल राज्यपालों की भूमिका पर फिर से विचार करें और इसके लिए आम सहमति से कोई नियम कानून बनाएं कि राज्यपाल केंद्र के एजेंट की भूमिका न निभा सकें। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार एक सफल राजनीतिक करिश्मा था, जिसे भाजपा हजम नहीं कर पा रही थी। लेकिन एमवीए ने यह सत्ता जोड़तोड़ करके नहीं पाई थी। उसने मिलजुलकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। लेकिन भाजपा के चाणक्य या थिंक टैंक को यह जीत हजम नहीं हुई। इसके लिए शिंदे गुट को शिवसेना के अंदर खड़ा किया गया और उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा दी गई। यह काम राज्यपाल के बिना नहीं हो सकता था।
सुप्रीम कोर्ट का दूसरा फैसला दिल्ली राज्य के बारे में है। यहां यह बताना जरूरी है कि दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए भाजपा के दिग्गज नेता स्व. मदन लाल खुराना ने सबसे पहले मांग उठाई। दिल्ली राज्य बना, वो सीएम भी बने। बाद में कांग्रेस की सरकार आई। दिल्ली में शीला दीक्षित सीएम बनीं। उस समय तक कोई समस्या नहीं आई। एलजी अपनी सीमित भूमिका में रहते थे। लेकिन जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आई। एलजी या उपराज्यपाल ने अपनी भूमिका बदल ली और शीघ्र ही दिल्ली के एलजी को भी विपक्षी दलों ने केंद्र का एजेंट कहना शुरू कर दिया। मौजूदा एलजी वीके सक्सेना का दिल्ली की चुनी हुई सरकार से विवाद सारी सीमाएं पार कर गया। यहां तक कि उन्होंने केजरीवाल सरकार की अफसरों को ट्रांसफर करने की शक्तियां भी वापस ले लीं या ये कहिए कि उन पर डकैती डाली।