Bihar Loss Rahul Gandhi Tejaswi: बिहार विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद महागठबंधन में लगातार कभी राहुल गांधी तो कभी तेजस्वी यादव को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बीजेपी नए नैरेटिव गढ़ रही। लेकिन सच क्या है, कौन जिम्मेदार है?
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव
बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए (बीजेपी-जेडीयू और सहयोगी) ने 202 सीटें जीतकर राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं। महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-वामपंथी) को महज 35 सीटें मिलीं। आरजेडी को 25, कांग्रेस को 6 और अन्य सहयोगियों को बाकी मिलीं। तेजस्वी यादव अपनी रघोपुर सीट तो बचा पाए, लेकिन महागठबंधन का सीएम चेहरा होने के नाते उनकी उम्मीदें चूर हो गईं। इस हार के बाद राजनीतिक बहस का केंद्र राहुल गांधी और तेजस्वी पर केंद्रित हो गया है। विपक्षी नेताओं के बयानों से साफ है कि यह हार सिर्फ चुनावी नाकामी नहीं, बल्कि गठबंधन की आंतरिक कलह, रणनीतिक चूक और बाहरी हमलों का नतीजा है।
सुप्रिया श्रीनेत्र का बयान
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और सीडब्ल्यूसी सदस्य सुप्रिया श्रीनेत्र ने सोमवार 14 नवंबर को कहा कि "राहुल पर व्यक्तिगत हमले वोट चोरी से ध्यान भटकाने के लिए हैं।" सुप्रिया ने कहा कि राहुल गांधी पर "भद्दे व्यक्तिगत हमले" और "मीडिया ट्रायल" हो रहे हैं, जो उन्हें बदनाम करने और उनकी "सच्चाई की आवाज" को दबाने के लिए हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर आरोप निराधार थे, तो "इतनी घबराहट क्यों?"। यह बयान वोट चोरी के आरोपों पर केंद्रित था, जहां राहुल ने चुनाव से पहले SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) प्रक्रिया को निशाना बनाया था, दावा किया कि 80 लाख वोटरों के नाम उड़ा दिया गए।
सुप्रिया के बयान के मायने
सुप्रिया का यह बयान रक्षात्मक है। श्रीनेत्र ने राहुल को "सत्य का सिपाही" बताकर कांग्रेस के भीतर एकजुटता दिखाने की कोशिश की। वास्तव में, यह बीजेपी के हमलों (जैसे अमित शाह का "राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस आखिरी पंक्ति में") का जवाब है। श्रीनेत्र ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें दावा था कि एक बीजेपी कार्यकर्ता ने दो बार वोट डाला, लेकिन बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी ने इसे फर्जी खबर बताकर सबूत मांगे। यह बयान हार को "साजिश" बताकर जिम्मेदारी से बचने की रणनीति है।
सुप्रिया का बयान क्यों आया
हार के तुरंत बाद कांग्रेस में आंतरिक असंतोष उभरा। राहुल को निशाना बनाने से गठबंधन टूटने का खतरा था। श्रीनेत्र का बयान बीजेपी को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश है। चुनाव से पहले राहुल की "वोटर अधिकार यात्रा" (1,300 किमी, 23 जिलों में) सफल रही, लेकिन नतीजों में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 0% रहा। सुप्रिया का बयान ज़मीन हकीकत से उलट है। उन्होंने राहुल को "पीड़ित" बनाकर सहानुभूति जुटाने की कोशिश की है। लेकिन इन बयानों से राहुल की रक्ष नहीं हो पाएगी। अंत में नतीजा क्या आया, लोग यह देखते हैं।
बिहार के प्रमुख कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह का बयान
बिहार से राज्यसभा सांसद और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि "सभी तो टिकट बंटवारे में व्यस्त थे... इससे मुश्किलें आईं। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष भी चुनाव लड़ रहे थे, विधायक दल के नेता भी चुनाव लड़ रहे थे। निगरानी करने वाला कोई नहीं था। ऐसा लग रहा था कि चुनाव का कोई प्रबंधन ही नहीं है।"
अखिलेश प्रसाद के बयान के मायने
यह बयान कांग्रेस की आंतरिक कमजोरियों को बता रहा है। सिंह ने सीधे राहुल या तेजस्वी को निशाना नहीं बनाया, बल्कि संगठनात्मक अव्यवस्था पर जोर दिया। यह इंगित करता है कि महागठबंधन में 11 सीटों पर सहयोगी आपस में लड़े (जैसे आरजेडी vs कांग्रेस), और टिकट बंटवारे में मुकेश सहनी (वीआईपी) को डिप्टी सीएम फेस बनाना मुसलमान वोटों को नाराज करने का कारण बना। सिंह ने "फ्रेंडली फाइट्स" को हार का सबब बताया।
क्यों आया अखिलेश प्रसाद का बयान?:
अखिलेश राज्यसभा सांसद हैं और बिहार कांग्रेस के प्रभावशाली चेहरे। हार के बाद पार्टी में ओवरहॉल की मांग उठी, और सिंह ने इसे आवाज दी। कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ 6 जीतीं। टिकट बंटवारे में राहुल-तेजस्वी के बीच खींचतान (आरजेडी को 45, कांग्रेस को कम) ने गठबंधन कमजोर किया। यह बयान आत्म-समालोचना का दिखावा है, वास्तव में राहुल गांधी पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने की कोशिश है।
राहुल और तेजस्वी पर हमले क्यों? जिम्मेदारी किसकी?
राहुल का "वोट चोरी" नैरेटिव (SIR आरोप) बहुत नहीं चल पाया। बिहार की जनता ने जिसे अपना मुद्दा मानती थी, उसमें वोट चोरी मुद्दा ही नहीं था। टिकट बंटवारे में आरजेडी को ज्यादा सीटें मिलीं। लेकिन कांग्रेस को "फ्रेंडली फाइट्स" का सामना भी करना पड़ा। मुसलमानों को नजरअंदाज करने से एआईएमआईएम को फायदा हुआ। एक्स पर लोगों ने लिखा कि "राहुल ने तेजस्वी को डुबो दिया, लोकल मुद्दों पर फोकस नहीं हुआ।"
- बहरहाल, यह स्पष्ट है कि बिहार की हार के लिए सिर्फ राहुल नहीं, बल्कि दोनों जिम्मेदार हैं। राहुल का फोकस नेशनल मुद्दों (अडानी-अंबानी, ईवीएम) पर रहा, जो बिहार में बहुत नहीं चला। तेजस्वी ने लोकल मुद्दों (10,000 रुपये वाली योजना) पर अच्छा खेला, लेकिन चुनाव प्रबंधन में चूक हुई। राहुल गांधी की 9 रैलियों के बावजूद कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 0% था। तेजस्वी ने 35 रैलियां कीं, आरजेडी का स्ट्राइक रेट 18 फीसदी रहा। कुल मिलाकर, यह गठबंधन की सामूहिक नाकामी है, न कि किसी एक की।
बीजेपी जबरदस्त नैरेटिव चला रही है। उसका आईटी सेल पूरी तरह सक्रिय है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस को घेरने की सारी कोशिश की जा रही है। दूसरी तरफ लालू यादव के परिवार में कलह होने से बीजेपी को और मौका मिल गया है।
हार के बाद आरजेडी में तेज प्रताप यादव जैसे नेताओं का असंतोष उभरा। रोहिणी आचार्य समेत तेजस्वी की चार बहनों का दर्द उमड़ आया। सभी लालू का घर छोड़कर चली गईं। रोहिणी ने तो परिवार से ही नाता तोड़ लिया। आरजेडी में मतभेद चरम पर हैं। हार के लिए न सिर्फ तेजस्वी बल्कि उनके सलाहकार संजय यादव और यूपी के मुस्लिम परिवार से आने वाले रमीज़ को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।