कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर द्वारा 1975 के आपातकाल पर लिखे गए एक लेख ने कांग्रेस में ही हलचल मचा दी है। पार्टी नेताओं ने ही थरूर को साफ़ साफ़ कह दिया है कि उन्हें पहले यह तय करना चाहिए कि वह किस पार्टी में हैं। हालाँकि, कांग्रेस ने इस पर आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन इस बीच, कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग ज़रूर छिड़ गई है। तो क्या थरूर की सच में भविष्य को लेकर कोई नयी योजना है?
शशि थरूर को लेकर यह ताज़ा विवाद तब शुरू हुआ जब उन्होंने आपातकाल पर एक लेख लिखा। थरूर ने मलयालम दैनिक 'दीपिका' और वैश्विक मीडिया मंच 'प्रोजेक्ट सिंडिकेट' में प्रकाशित अपने लेख में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रहे आपातकाल को 'लोकतंत्र का काला अध्याय' बताया। उन्होंने लिखा कि इस दौरान संवैधानिक अधिकारों का हनन, प्रेस पर सेंसरशिप, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, और मानवाधिकारों का उल्लंघन चरम पर था।
थरूर ने गांधी परिवार पर क्या कहा?
थरूर ने ख़ासकर संजय गांधी द्वारा चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान और दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों के विध्वंस को 'अक्षम्य क्रूरता' क़रार दिया। उन्होंने लिखा, 'इंदिरा गांधी ने कठोर कदमों को अनुशासन और व्यवस्था के लिए ज़रूरी बताया, लेकिन ये क़दम अक्सर क्रूरता में बदल गए।'
थरूर ने यह भी कहा कि आपातकाल ने भारत की लोकतांत्रिक साख को दुनिया भर में धूमिल किया और यह अवधि आज भी भारतीयों की सामूहिक स्मृति में एक डरावने अध्याय के रूप में बनी हुई है। उन्होंने चेतावनी दी कि सत्ता का केंद्रीकरण, असहमति को दबाने की प्रवृत्ति, और संवैधानिक जांच-पड़ताल को दरकिनार करने की कोशिशें विभिन्न रूपों में फिर से उभर सकती हैं।
कांग्रेस में बवाल क्यों?
थरूर के लेख पर कांग्रेस पार्टी के भीतर से तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं। कांग्रेस सांसद और लोकसभा में पार्टी के सचेतक मणिकम टैगोर ने बिना नाम लिए थरूर पर कटाक्ष करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'जब कोई सहयोगी बीजेपी की बातों को शब्दशः दोहराने लगता है, तो सोचने पर मजबूर होना पड़ता है - क्या यह पक्षी तोता बन रहा है? मिमिक्री पक्षियों में प्यारी लगती है, राजनीति में नहीं।'
'थरूर किस पार्टी में हैं?'
केरल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के. मुरलीधरन ने और भी तीखा हमला बोला और कहा, 'थरूर को पहले यह तय करना चाहिए कि वह किस पार्टी में हैं।' के. मुरलीधरन ने उन्हें सलाह दी कि यदि वे कांग्रेस के भीतर असहज महसूस कर रहे हैं, तो उन्हें एक साफ़ राजनीतिक रास्ता चुनना चाहिए। उन्होंने पत्रकारों से कहा, 'अगर मतभेद हैं तो पार्टी के भीतर उन्हें व्यक्त करने की जगह है। लेकिन अगर उन्हें लगता है कि वे मौजूदा व्यवस्था में नहीं रह सकते तो उन्हें अपने पदों से इस्तीफा दे देना चाहिए और अपनी पसंद का राजनीतिक रास्ता अपनाना चाहिए।'
मुरलीधरन का यह बयान ऑपरेशन सिंदूर के तहत सरकारी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की तारीफ़ करने जैसे थरूर के हाल के कुछ क़दमों से उपजे असंतोष को दिखाता है। केरल में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीसन ने हालाँकि इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि इस पर राष्ट्रीय नेतृत्व को बोलना चाहिए।
कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर थरूर के लेख पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह लेख पार्टी की आंतरिक एकता के लिए नुकसानदेह हो सकता है, खासकर केरल में जहां 2025 में स्थानीय निकाय चुनाव और 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि थरूर का यह कदम उनकी महत्वाकांक्षा को दिखाता है, क्योंकि वह केरल में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
बीजेपी को मिला हमला करने का मौका
बीजेपी ने थरूर के लेख को हाथों-हाथ लिया और इसे कांग्रेस पर हमला करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि थरूर का लेख यह दिखाता है कि कांग्रेस अब भी आपातकाल की मानसिकता को सही मानती है। उन्होंने बिहार में राहुल गांधी के चुनाव आयोग के मतदाता सूची संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन का हवाला देते हुए कहा, 'कांग्रेस का मानना है कि संवैधानिक संस्थाओं की वैधता उनकी चुनावी जीत या हार पर निर्भर करती है।' बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने थरूर के लेख को शेयर करते हुए लिखा, 'कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने गांधी परिवार की नैतिक साख को ध्वस्त कर दिया।' बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने इसे कांग्रेस के भीतर दुर्लभ ईमानदारी का क्षण करार दिया और सवाल किया कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ऐसी स्वीकारोक्ति क्यों नहीं करता।
थरूर का रुख
थरूर ने अपने लेख में यह भी कहा कि आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। उन्होंने लिखा, 'हम एक अधिक आत्मविश्वास से भरा, समृद्ध, और कई मायनों में मजबूत लोकतंत्र हैं। फिर भी, आपातकाल के सबक आज भी प्रासंगिक हैं।' उन्होंने सत्ता के केंद्रीकरण और असहमति को दबाने की प्रवृत्तियों के खिलाफ सतर्क रहने की चेतावनी दी।
थरूर का यह लेख उनके हाल के कुछ क़दमों के संदर्भ में देखा जा रहा है, जो कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से अलग हैं। हाल ही में उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के तहत केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और मोदी की विदेश नीति की तारीफ की, जिसके लिए उनकी पार्टी के भीतर आलोचना हुई। इसके अलावा, 2022 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को गांधी परिवार के प्रभुत्व को चुनौती के रूप में देखा गया था, हालांकि वह मल्लिकार्जुन खड़गे से हार गए थे।
थरूर ने पहले भी साफ़ किया है कि वह राष्ट्रीय हितों को पार्टी हितों से ऊपर रखते हैं, खासकर विदेश नीति के मामले में। उन्होंने कहा था,
जब राष्ट्रीय हित की बात आती है, तो मैं कांग्रेस या बीजेपी की विदेश नीति की बात नहीं करता, बल्कि भारत की विदेश नीति की बात करता हूं।
आपातकाल पर विवाद क्यों?
आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का एक विवादास्पद अध्याय रहा है। इस दौरान संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लागू हुई, और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान और झुग्गी-झोपड़ियों का विध्वंस विशेष रूप से विवादास्पद रहा। 1977 के चुनाव में जनता ने इंदिरा गांधी और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। कांग्रेस ने हाल के वर्षों में आपातकाल को गलती माना है, लेकिन पार्टी इसे अपने आधिकारिक इतिहास में पूरी तरह नकारने से बचती रही है।
शशि थरूर का आपातकाल पर लेख न केवल कांग्रेस के भीतर तनाव का कारण बना है, बल्कि बीजेपी को भी कांग्रेस की आलोचना करने का मौक़ा दे गया है। केरल में आगामी चुनावों और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की रणनीति के के मामले में यह विवाद पार्टी की एकता और थरूर के राजनीतिक भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है।