तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने मतदाता सूची में व्यापक खामियों को लेकर सवाल उठाए। विशेष रूप से मृत मतदाताओं के नाम हटाने में देरी और मतदाता सूची के संशोधन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को लेकर आयोग को कटघरे में खड़े कर दिया। स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी चिंताओं को व्यक्त करते हुए चुनाव आयोग से पूछा कि वह अधिक पारदर्शी और वोटर फ्रेंडली क्यों नहीं हो सकता। ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, अखिलेश यादव के बाद अब स्टालिन का हमला बता रहा है कि सीईसी ज्ञानेश कुमार गुप्ता ने पूरे विपक्ष को नाराज़ कर दिया है।

डीएमके ने मृत वोटरों का मामला उठाया 

स्टालिन ने अपने बयान में कहा कि डीएमके ने 17 जुलाई 2025 को चुनाव आयोग से अनुरोध किया था कि 1 मई 2025 की अधिसूचना के अनुसार मृतक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जाएं। हालांकि, एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने सवाल उठाया, "यह कब होगा? क्या मृतकों के नामों को हटाने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इसे लागू करने में इतना समय लग रहा है?" 
उन्होंने बताया कि डीएमके के सांसदों ने नई दिल्ली में निर्वाचन सदन में चुनाव अधिकारियों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में मृतकों के नाम हटाने के साथ-साथ आधार कार्ड और राशन कार्ड को जन्म तिथि और निवास स्थान के प्रमाण के रूप में स्वीकार करने की मांग की गई थी। स्टालिन ने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

स्टालिन ने पूछा- घर-घर सत्यापन के बावजूद खामियां क्यों 

चुनाव आयोग ने हाल ही में विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, जिसका नेतृत्व मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने किया था। स्टालिन ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को "जवाबों से ज्यादा सवाल खड़े करने वाला" करार दिया। स्टालिन ने पूछा कि जब घर-घर सत्यापन किया गया था, तब इतनी बड़ी संख्या में पात्र मतदाताओं के नाम कैसे हटाए गए? यह प्रक्रिया में गंभीर खामियों की ओर इशारा करता है।
उन्होंने सवाल किया कि नए मतदाताओं का नामांकन असामान्य रूप से कम क्यों है? क्या 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले युवा मतदाताओं का सत्यापन ठीक से किया गया? स्टालिन ने यह भी पूछा कि क्या युवा मतदाताओं के लिए कोई डेटाबेस तैयार किया गया है, जिससे उनकी पात्रता सुनिश्चित की जा सके।
स्टालिन ने जोर देकर कहा कि अगर चुनाव आयोग का मकसद निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराना है, तो उसे अपनी प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता और मतदाता-अनुकूल नीतियां अपनानी चाहिए। उन्होंने बिहार एसआईआर के बाद मतदाता सूची से बड़ी संख्या में लोगों के नाम हटाए जाने की आशंका जताई। उन्होंने पूछा, "क्या आयोग बिहार में इस मुद्दे को संबोधित करेगा? क्या अन्य राज्यों में एसआईआर के दौरान इन व्यावहारिक कठिनाइयों पर विचार किया जाएगा?"

विपक्ष ने चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोला 

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने सबसे पहले दोहरे वोटर या दोहरे इपिक का मुद्दा उठाया था। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि आयोग का दावा है कि उन्हें समाजवादी पार्टी द्वारा दायर कोई शपथ-पत्र प्राप्त नहीं हुआ। लेकिन उनके (अखिलेश) पास डिजिटल रसीदें मौजूद हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि आयोग झूठ बोल रहा है। 
स्टालिन और बाकी विपक्षी नेताओं के सवालों पर चुनाव आयोग ने अभी तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है। विपक्षी नेताओं के इन आरोपों ने मतदाता सूची की प्रक्रिया और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। भारत के चुनाव आयोग की विश्वसनीयता लगभग खत्म हो गई। यह मुद्दा अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बन गया है, और जनता के बीच भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है।
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यह मामला सिर्फ उत्तर भारत में बिहार या दक्षिण में सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं। पूरे देश में मतदाता सूची की विश्वसनीयता और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठ गया है। अब देखना यह है कि चुनाव आयोग इन आरोपों का जवाब कैसे देता है और क्या वह विपक्ष की मांगों को पूरा करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा।