लैंड पूलिंग नीति पर पंजाब की भगवंत मान सरकार को झटका लगा है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आप सरकार की महत्वाकांक्षी लैंड पूलिंग नीति 2025 के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह निर्णय लुधियाना के निवासी और अधिवक्ता गुरदीप सिंह गिल द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें नीति की वैधानिकता और संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए थे। भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप सरकार इस नीति को किसान हितैषी और शहरी विकास के लिए अहम बता रही थी। हालाँकि, किसान ही इसके ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे थे। कोर्ट ने पंजाब सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है, साथ ही नीति में सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन की कमी और भूमिहीन मजदूरों के पुनर्वास के प्रावधानों पर गंभीर चिंता जताई है।

पंजाब सरकार ने इस साल 4 जून को लैंड पूलिंग नीति 2025 को अधिसूचित किया था। इसका उद्देश्य राज्य में नियोजित और टिकाऊ शहरी विकास को बढ़ावा देना था। इस नीति के तहत, ग्रेटर लुधियाना क्षेत्र विकास प्राधिकरण यानी ग्लाडा सहित विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा 21 शहरों और कस्बों में 65,533 एकड़ भूमि को अधिग्रहित करने की योजना थी। इसमें से 26000 एकड़ अकेले लुधियाना जिले में थी। नीति के अनुसार, यह भूमि आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिए उपयोग की जानी थी।
इस नीति में भूमि मालिकों को प्रति एकड़ के बदले 1000 वर्ग गज आवासीय और 200 वर्ग गज व्यावसायिक भूखंड देने का वादा किया गया था। आप सरकार ने दावा किया कि यह नीति स्वैच्छिक है और किसी भी किसान की जमीन को जबरन नहीं लिया जाएगा। सरकार का कहना था कि यह नीति अवैध कॉलोनियों की समस्या को रोकने और बिखरे हुए भूखंडों को एकीकृत कर नियोजित विकास को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है।

याचिकाकर्ता की क्या है आपत्ति

लुधियाना के फगला गांव के 72 वर्षीय किसान और अधिवक्ता गुरदीप सिंह गिल ने इस नीति को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। उनकी याचिका में कहा गया कि नीति को राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन, रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट, 2013 के तहत अधिसूचित किया गया, लेकिन इसमें इस कानून के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन और ग्राम पंचायतों व ग्राम सभाओं के साथ परामर्श जैसे अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि नीति को पंजाब रीजनल एंड टाउन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1995 के तहत बनाया जाना चाहिए था, जो शहरी नियोजन के लिए उपयुक्त कानूनी ढांचा है। याचिकाकर्ता ने नीति को "रंगीन कानून" करार देते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 यानी कानून के समक्ष समानता, 19(1)(g) यानी पेशा या व्यवसाय की स्वतंत्रता, 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, और 300-ए यानी संपत्ति का अधिकार का उल्लंघन करती है।

जस्टिस अनुपिंदर ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने नीति में कई खामियां उजागर कीं। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने भूमिहीन मजदूरों और उन लोगों के पुनर्वास के लिए कोई प्रावधान किया है जो जमीन के मालिक नहीं हैं, लेकिन अपनी आजीविका के लिए उस पर निर्भर हैं।

कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि नीति को अधिसूचित करने से पहले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन क्यों नहीं किया गया, जो क़ानून अनिवार्य है।

कोर्ट का अंतरिम आदेश

6 अगस्त 2025 को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पंजाब सरकार से पूछा था कि क्या नीति में भूमिहीन मजदूरों के पुनर्वास के लिए कोई प्रावधान है और क्या सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन किया गया है। सरकार की ओर से पंजाब के महाधिवक्ता मनींदर्जीत सिंह बेदी और वरिष्ठ अधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने दलील दी कि नीति स्वैच्छिक है और इसका उद्देश्य अवैध कॉलोनियों को रोकना है, ताकि पंजाब 'झुग्गी-झोपड़ियों' में न बदल जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इस चरण में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि विकास कार्य शुरू नहीं हुआ है और अधिग्रहण लार एक्ट के तहत नहीं किया जा रहा है।
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हालाँकि, कोर्ट सरकार की दलीलों से संतुष्ट नहीं हुआ। लगभग दो घंटे की सुनवाई के बाद कोर्ट ने सरकार को नीति को वापस लेने का सुझाव दिया। जब सरकार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तो जस्टिस ग्रेवाल और जस्टिस मनचंदा की बेंच ने कहा, 'हम नीति पर रोक लगाएंगे और आपको चिंताओं को दूर करने के लिए समय देंगे।' कोर्ट ने अंतरिम रोक का आदेश दिया और सरकार को चार सप्ताह यानी 10 सितंबर तक के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

विपक्ष और किसानों का विरोध

लैंड पूलिंग नीति की घोषणा के बाद से ही विपक्षी दलों और किसान संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया है। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने नीति को जमीन हड़पने की योजना करार दिया और आरोप लगाया कि आप सरकार ने दिल्ली के बिल्डरों के साथ 30,000 करोड़ रुपये का गुप्त सौदा किया है, जिसका मकसद किसानों की उपजाऊ जमीन को निजी डेवलपर्स को सौंपना है। बादल ने घोषणा की कि एसएडी 1 सितंबर से मोहाली में नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू करेगा, जो तब तक जारी रहेगा जब तक नीति वापस नहीं ली जाती।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह नीति डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा लाए गए लैंड एक्विजिशन एक्ट, 2013 का खुला उल्लंघन थी। 
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अखिल भारतीय किसान महासंघ और बीकेयू (एकता डकौंदा) जैसे किसान संगठनों ने भी नीति का विरोध किया। प्रेम सिंह भंगु और जगमोहन सिंह जैसे संगठनों के नेताओं ने कहा कि सरकार ने नीति लागू करने से पहले न तो पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन किया और न ही ग्राम सभाओं से परामर्श किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार नीति को वापस नहीं लेती, तो संयुक्त किसान मोर्चा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू करेगा।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का लैंड पूलिंग नीति पर अंतरिम रोक का आदेश आप सरकार के लिए एक बड़ा झटका है, खासकर तब जब यह नीति उनके शहरी विकास और आर्थिक सुधार के एजेंडे का हिस्सा थी। कोर्ट ने नीति में सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन की कमी और भूमिहीन मजदूरों के पुनर्वास के प्रावधानों की अनुपस्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं। यह मामला न केवल पंजाब की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि यह भी दिखाता है कि किसानों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के हितों की अनदेखी करने वाली नीतियाँ क़ानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना कर सकती हैं।