केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पर अब बवाल मच गया है। केंद्र सरकार ने L-G नियुक्त करके चंडीगढ़ पर कंट्रोल करने के लिए बिल का प्रस्ताव रखा है। ऐसा करने के लिए इसने संसद के शीतकालीन सत्र में संविधान का 131वां संशोधन विधेयक 2025 पेश करने की घोषणा की है। इस विधेयक के जरिए चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाने और राष्ट्रपति को इसके लिए सीधे नियम बनाने व प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार देने का प्रस्ताव है। इस कदम ने पंजाब में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने एक स्वर में इसे पंजाब की राजधानी छीनने की सुनियोजित साजिश करार दिया है। तीनों प्रमुख दलों ने इसे पंजाब के ऐतिहासिक, संवैधानिक और भावनात्मक अधिकारों पर हमला बताया है।

अनुच्छेद 240 का क्या मतलब?

अनुच्छेद 240 राष्ट्रपति को उन केंद्र शासित प्रदेशों के लिए नियम बनाने की शक्ति देता है जिनमें विधानसभा नहीं होती। बिल्कुल, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा-नगर हवेली और दमन-दीव की तरह। प्रस्तावित विधेयक पास होने पर चंडीगढ़ को भी इसी श्रेणी में डाला जा सकता है और वहाँ अलग प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है। वर्तमान में चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल करते हैं।

भगवंत मान का बड़ा हमला

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसे 'पंजाब के साथ घोर अन्याय' बताया। उन्होंने कहा, 'चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी थी, है और रहेगी। भाजपा की मोदी सरकार पंजाब को उसकी राजधानी से भी वंचित करना चाहती है। यह पंजाब के साथ विश्वासघात है। हम हर कीमत पर इसका विरोध करेंगे।'

संघीय ढांचे पर हमला: केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, 'चंडीगढ़ पर यह हमला पंजाब की पहचान और संवैधानिक अधिकारों पर हमला है। जिस राज्य ने देश की सुरक्षा, अन्न सुरक्षा और इंसानियत के लिए हमेशा कुर्बानियां दीं, उसकी राजधानी छीनने की कोशिश संघीय ढांचे को चूर-चूर करने वाली है। चंडीगढ़ पंजाब का था, है और रहेगा।'

कांग्रेस और अकाली दल भी लामबंद

पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने कहा, 'यह बिल पूरी तरह अनावश्यक और खतरनाक है। चंडीगढ़ को पंजाब से छीनने की कोई भी कोशिश गंभीर परिणाम भुगतेगी। हम संसद में और सड़क पर इसका पुरजोर विरोध करेंगे।' उन्होंने पंजाब भाजपा नेताओं से भी स्पष्टीकरण मांगा।
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शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने इसे पंजाब के अधिकारों पर कुठाराघात बताया। उन्होंने याद दिलाया कि 1970 में केंद्र ने सिद्धांत रूप में चंडीगढ़ पंजाब को देने पर सहमति दी थी। राजीव-लोंगोवाल समझौते में जनवरी 1986 की समय-सीमा तय हुई थी, जिसे कभी लागू नहीं किया गया। बादल ने कहा, 'यह बिल चंडीगढ़ को पंजाब से हमेशा के लिए अलग करने की साजिश है।' अकाली दल ने कोर कमेटी की इमरजेंसी बैठक बुलाई है।

प्रवासी पंजाबी संगठन भी नाराज़

उत्तरी अमेरिका के प्रमुख संगठन नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन यानी एनएपीए ने भी केंद्र के कदम की कड़ी निंदा की। एनएपीए के कार्यकारी निदेशक सतनाम सिंह चहल ने कहा, 'यह प्रस्ताव कानूनी रूप से संदिग्ध और पंजाब के ऐतिहासिक दावे के प्रति गहरी असंवेदनशीलता है। दुनिया भर के पंजाबी इसके खिलाफ एकजुट हैं।'

चंडीगढ़ का मौजूदा दर्जा

  • 1 नवंबर 1966 को पंजाब का बँटवारा हुआ तो चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश बना।
  • 1 जून 1984 से चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल करते आ रहे हैं।
  • 2016 में केंद्र ने अलग प्रशासक नियुक्त करने की कोशिश की थी, लेकिन पंजाब के सभी दलों के तीव्र विरोध के बाद पीछे हट गया था।
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आगे की रणनीति

आप और कांग्रेस ने विधायक-कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाए हैं। अकाली दल ने सर्वदलीय बैठक का ऐलान किया है। पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की भी मांग उठ रही है। सभी दल संसद में बिल को रोकने के लिए विपक्षी दलों से समर्थन मांगने की तैयारी कर रहे हैं।

पंजाब में इस मुद्दे ने 40 साल पुराना जख्म फिर से कुरेद दिया है। चंडीगढ़ को लेकर एक बार फिर पूरा पंजाब एकजुट हो गया है और साफ संदेश है– 'राजधानी कोई नहीं छीन सकता'। आने वाले दिन देखना यह होगा कि संसद के शीतकालीन सत्र में यह बिल पेश होता है या पंजाब के एकजुट विरोध के आगे केंद्र पीछे हटता है।