राजस्थान में पाँच कुलपतियों की बर्खास्तगी ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। आरोप है कि एबीवीपी के दबाव के बीच ऐसा फैसला लिया जा रहा है। क्या राज्य के विश्वविद्यालयों पर वैचारिक कब्ज़ा मजबूत हो रहा है? राहुल गांधी ने भी दो दिन पहले ऐसा ही आरोप लगाया था।
राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे
क्या विश्वविद्यालयों पर आरएसएस का कब्जा हो रहा है? राहुल गांधी ने दो दिन पहले ही संसद में बहस के दौरान कहा कि देश के विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति योग्यता के बजाय आरएसएस से जुड़ाव के आधार पर हो रही है। राहुल गांधी के आरोप तब आये हैं जब राजस्थान में एक के बाद एक कुलपतियों को हटाया जा रहा है। आरोप लग रहे हैं कि आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी के लोग शिकायत करते हैं और फिर कुलपति पर कार्रवाई हो जाती है!
राजस्थान में इस साल पांच सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बर्खास्तगी या इस्तीफे के पीछे आरएसएस से जुड़े अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी की सक्रिय भूमिका सामने आ रही है। राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े द्वारा इन कुलपतियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है, जिसमें एबीवीपी की शिकायतें और विरोध प्रदर्शन प्रमुख फ़ैक्टर बताए जा रहे हैं। इन घटनाओं ने राज्य के उच्च शिक्षा क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप और छात्र संगठनों की बढ़ती ताक़त पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में जयपुर के जोबनेर स्थित श्री करण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलराज सिंह के निलंबन की ख़बर पर एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने पटाखे फोड़े और जश्न मनाया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार राज्यपाल ने उनके ख़िलाफ़ प्राप्त विभिन्न गंभीर शिकायतों के आधार पर यह कार्रवाई की। इसमें एबीवीपी की शिकायतें भी शामिल थीं। यह पहली बार नहीं था जब राजस्थान में किसी कुलपति को अनियमितताओं की शिकायतों पर हटाया गया हो। इस साल अब तक चार सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को हटाया गया है, जबकि एक ने दबाव में इस्तीफा दे दिया है।
डॉ. अरुण कुमार की बर्खास्तगी
अगस्त में स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के कुलपति और जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति डॉ. अरुण कुमार को हटाया गया। राज्यपाल कार्यालय के अनुसार डॉ. कुमार के ख़िलाफ़ कई गंभीर शिकायतें प्राप्त हुईं और जोधपुर संभागीय आयुक्त को जाँच के निर्देश दिए गए। शिकायतों के बाद जाँच रिपोर्ट में डॉ. अरुण कुमार को विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधानों को लागू न करने, अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने और विश्वविद्यालय को वित्तीय नुक़सान पहुंचाने का दोषी पाया गया।
विश्वविद्यालय के एक छात्र और उस समय एबीवीपी के प्रांत संयोजक नवीन चौधरी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'हमने अनियमितताओं को उजागर करने के लिए राज्यपाल से तीन-चार बार मुलाकात की; पहली बैठक नवंबर 2024 में हुई। फिर हमने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और 23 दिनों तक विरोध प्रदर्शन किया।' डॉ. कुमार ने बयान के अनुरोध पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
डॉ. बलराज सिंह का निलंबन
7 अक्टूबर को जोबनेर के श्री करण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलराज सिंह को राज्यपाल ने निलंबित कर दिया। कारण बताया गया कि उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम तीन महीनों में नीतिगत निर्णय लिए और उनके ख़िलाफ़ विभिन्न गंभीर शिकायतें प्राप्त हुईं। राज्यपाल कार्यालय ने कहा कि सिंह ने विश्वविद्यालय अधिनियम में उल्लिखित अपनी अधिकारिता से परे जाकर कर्मचारियों की बर्खास्तगी और तबादले किए।
सिंह का कार्यकाल मात्र सात दिनों बाद 14 अक्टूबर को ख़त्म होने वाला था। लंबे समय से उनके खिलाफ विरोध कर रहे एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने उनके निलंबन पर पटाखे फोड़े और उनका पुतला जलाया।सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'यह जो हो रहा है, वह साजिश और गुंडागर्दी की पराकाष्ठा है। कुलपति दस सालों में जो नहीं कर पाते, मैंने तीन सालों में कर दिखाया।' एबीवीपी पर उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें एबीवीपी नहीं कहूँगा, बल्कि गुंडे, बदमाश और अपराधी... एक नेक्सस है जो यह कर रहा है।' उन्होंने दावा किया कि वे 1990 से संघ से जुड़े हैं और सिद्धांतवादी हैं, जबकि विश्वविद्यालय से जुड़े कुछ लोग अब ऐसा नहीं हैं।
सिंह ने आरोप लगाया, "बाहर से आए कुलपतियों को बाहर करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, चाहे बीकानेर हो या उदयपुर। मैं हरियाणा से हूं, लेकिन राजस्थान में 20 साल और दिल्ली में 16.5 साल बिता चुका हूँ। फिर भी वे मुझे बाहरी मानकर हटा रहे हैं और पूर्व राज्यपाल (कलराज मिश्र) द्वारा नियुक्त कुलपतियों को निशाना बना रहे हैं।'
सिंह ने अपने निलंबन के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जहाँ न्यायमूर्ति अशोक कुमार जैन ने उनके सेवानिवृत्ति के दिन निलंबन को रद्द कर दिया, और कहा कि 'यह साफ़ है कि चांसलर ने जल्दबाजी में निलंबन का निर्णय लिया और निलंबन को न्यायोचित ठहराने के लिए कोई आधार नहीं है।'
प्रो. केएल श्रीवास्तव: सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले निलंबन
सिंह से पहले, जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केएल श्रीवास्तव को 10 फरवरी को राज्यपाल ने निलंबित कर दिया, जो उनकी सेवानिवृत्ति से मात्र चार दिन पहले था। राज्यपाल कार्यालय के अनुसार, यह जोधपुर संभागीय आयुक्त की जांच रिपोर्ट के आधार पर किया गया। इसमें कहा गया कि 'उनके खिलाफ पद का दुरुपयोग, सरकारी कार्य में लापरवाही और विश्वविद्यालय को वित्तीय नुकसान पहुंचाने के गंभीर आरोप प्रथम दृष्टया सिद्ध पाए गए।'श्रीवास्तव के खिलाफ विरोध कर रहे एबीवीपी सदस्यों ने पटाखे फोड़कर जश्न मनाया। श्रीवास्तव ने कहा, 'मैं 10 फरवरी को निलंबित किया गया और मेरा कार्यकाल 14 फरवरी को समाप्त हो रहा था। मेरे खिलाफ कोई आरोप सही नहीं था। यही मैं कहना चाहता हूँ।'
रमेश चंद्र की बर्खास्तगी: वित्तीय अनियमितताओं का आरोप
11 नवंबर को भरतपुर के महाराजा सूरजमल ब्रिज विश्वविद्यालय के कुलपति रमेश चंद्र को राज्यपाल ने विश्वविद्यालय अधिनियम और नियमों का पालन न करने के आरोप में हटा दिया। जाँच में पाया गया कि उन्होंने विश्वविद्यालय के संसाधनों और धन का दुरुपयोग किया, अनियमित भुगतान किए, नियमों के खिलाफ मनमाने ढंग से कार्य किया, वित्त विभाग के नियमों का उल्लंघन किया और विश्वविद्यालय को वित्तीय नुक़सान पहुँचाया।
एक संबद्ध कॉलेज के छात्र और एबीवीपी के प्रांत सह-मंत्री नितेश चौधरी ने कहा कि एबीवीपी ने रमेश चंद्र के खिलाफ करीब डेढ़ साल तक विरोध किया। उन्होंने कहा, 'हमने राज्यपाल से अन्य शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उनके कार्यालय ने इसे उठाया और इस संबंध में पत्र लिखा।'
रमेश चंद्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ। एबीवीपी और आरएसएस के प्रांत प्रचारक आरोपों को ऑर्केस्ट्रेट कर रहे हैं। वे पूर्व राज्यपाल कलराज मिश्र द्वारा नियुक्त सभी कुलपतियों के खिलाफ हैं। क्या हम सब बेईमान हैं? तो हमें क्यों नियुक्त किया गया?'
उन्होंने अपने बचाव में कहा कि राजस्थान में शिक्षा प्रणाली तबाह हो गई है और एबीवीपी इसमें अहम भूमिका निभा रही है। उन्होंने कहा, 'वे फंड चाहते हैं। आपको एबीवीपी के लड़कों को साइकिल स्टैंड, कैंटीन के ठेके देने पड़ते हैं... अपराधी एबीवीपी में शामिल हो गए हैं।' उन्होंने कहा कि वे 1965 से संघ से जुड़े हैं, 'लेकिन हमें ऐसी चीजें कभी नहीं सिखाई गईं।'सुनीता मिश्रा का इस्तीफा: औरंगजेब पर टिप्पणी से उपजा विवाद
हाल ही में उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की कुलपति सुनीता मिश्रा ने पहले छुट्टी ली और बाद में इस्तीफा दे दिया। यह उनके 12 सितंबर को एक सम्मेलन में औरंगजेब को 'एक सक्षम शासक' कहने की टिप्पणी के बाद कैंपस पर विरोध के कारण हुआ। संभागीय आयुक्त की 'विभिन्न शिकायतों' पर जाँच रिपोर्ट के बाद उनका इस्तीफा स्वीकार किया गया।
उनके खिलाफ विरोध करने वाले एबीवीपी, एनएसयूआई और कुछ जातीय संगठनों के थे। छात्रों ने उनके चैंबर को बाहर से बंद कर दिया, पुतला जलाया, उनकी तस्वीरों पर काली स्याही लगाई और राज्यपाल को इस्तीफे की मांग में पत्र लिखा।
विश्वविद्यालय के 2022 छात्र संघ अध्यक्ष और वर्तमान एबीवीपी प्रांत सह-मंत्री कुलदीप सिंह ने कहा, 'हमने उनके ख़िलाफ़ 17 दिनों तक अनिश्चितकालीन विरोध किया। पहले विरोध विश्वविद्यालय के अंदर था, लेकिन उनकी औरंगजेब पर टिप्पणी के बाद विरोध बढ़ गया।'
एबीवीपी की सफाई
बचपन से संघ से जुड़े रहे राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े महाराष्ट्र के छह बार के विधायक हैं और विभिन्न पदों पर रहे हैं। 2004 में वे पार्टी की राज्य इकाई के उपाध्यक्ष बने और महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर भी रहे। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार राज्यपाल कार्यालय ने इस साल कुलपतियों के खिलाफ कार्रवाई पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।एबीवीपी पर दबाव डालने के आरोप पर राज्य के प्रमुख एबीवीपी नेता और जोधपुर क्षेत्र के विश्वविद्यालय संयोजक अरविंद भाटी ने कहा, 'राज्यपाल अपने लंबे अनुभव से चीजें समझते हैं। उस अनुभव के आधार पर वे और उनके सलाहकार निर्णय लेते हैं। एबीवीपी का उनके निर्णयों पर कोई विचार नहीं है।'
उन्होंने कहा, 'यदि कोई कुलपति महसूस करता है कि छात्र संगठन के दबाव में उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई तो उन्हें उच्च प्राधिकरण से संपर्क करना चाहिए और अपनी निर्दोषता साबित करनी चाहिए। अन्यथा, यह समझा जाएगा कि उनके कार्यकाल में अनियमितताएँ थीं, जिनके आधार पर राज्यपाल ने कार्रवाई की।'
ये घटनाएँ राजस्थान के उच्च शिक्षा में राजनीतिक प्रभाव, छात्र संगठनों की भूमिका और नियुक्तियों की स्थिरता पर बहस छेड़ रही हैं। कई कुलपतियों ने आरोप लगाया है कि यह पूर्व राज्यपाल द्वारा नियुक्त 'बाहरी' कुलपतियों को निशाना बनाने की साजिश है, जबकि एबीवीपी इसे अनियमितताओं के ख़िलाफ़ लड़ाई बताती है।