विश्वयुद्ध के बाद आधुनिक विश्व का शैक्षिक परिदृश्य देखें तो उसमें जेएनयू और सत्ता के रिश्तों जैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा! मैंने बहुत जानने-खोजने की कोशिश की पर ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिला, जहां किसी देश के शासक और शासक दल के करोड़ों समर्थक अपने ही देश एक श्रेष्ठ विश्वविद्यालय के विरुद्ध ज़हरीले और अनर्गल प्रचार में लिप्त हों और उस संस्थान को ध्वस्त करने के लिए लगातार अभियान चला रहे हों! इस मायने में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) सिर्फ़ भारत का ही नहीं, समूची दुनिया का अनोखा विश्वविद्यालय साबित हो चुका है।

प्रदर्शन करते जेएनयू के छात्र।
जेएनयू साढ़े पांच सालों से केंद्र की सरकार और सत्ताधारी दल के निशाने पर है। लेकिन ऐसा क्यों है? शायद, इसलिए कि जेएनयू में उन्हें एक विचार, एक संस्कृति और एक अलग किस्म का समाज दिखाई देता है। संभवतः इसीलिए वे जेएनयू को अपने किसी राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी से भी ज्यादा ख़तरनाक मान रहे हैं। उन्हें एक संस्था के रूप में जेएनयू बहुत बड़ा वैचारिक प्रतिद्वन्द्वी नज़र आता है।
जेएनयू तकरीबन साढ़े पांच सालों से केंद्र की सरकार और सत्ताधारी दल के निशाने पर है। वैसे तो उसके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार अभियान का सिलसिला और भी पुराना है पर सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसकी अगुवाई वाली सरकार ने जेएनयू पर ताबड़तोड़ निशाने साधे हैं। मुझे तो लगता है, सरकार के द्वारा मुख्य विपक्षी पर किए गए हमलों से भी ज्यादा हमले जेएनयू पर किये गये हैं। शायद, इसलिए कि जेएनयू में उन्हें एक विचार, एक संस्कृति और एक अलग किस्म का समाज दिखाई देता है। संभवतः इसीलिए वे जेएनयू को अपने किसी राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी से भी ज्यादा ख़तरनाक मान रहे हैं। उन्हें एक संस्था के रूप में वह बहुत बड़ा वैचारिक प्रतिद्वन्द्वी नज़र आता है।