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राम नाम जपना… पराया माल अपना!

प्रधानसेवक मोदी जी दिल से वैपारी हैं, लेकिन वे ऐसे वैसे नहीं, दूरदर्शी वैपारी हैं। वैपार को कैसे फैलाना है वे बखूबी जानते हैं। चाय के धंधे से मुल्क के वैपार तक उनकी वैपारिक प्रतिभा का उदाहरण है। अपनी पार्टी का कारोबार जिस तरह से उन्होंने बढ़ाया है वो भी इसका जीता जागता उदाहरण है।

अब वे इसे और बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए उनके पास जो सबसे सफल फार्मूला है वे उसी को आज़माने जा रहे हैं। ये फार्मूला है दूसरे के माल को हड़पना। इससे उन्हें जो लाभ हुआ है और हो रहा है उसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसका अलग शो रूम खोलने का ऐलान कर दिया है। अभी तक वे इधर-उधर छोटी-बड़ी ‘छीना-झपटी’ करते थे। मगर अब उन्होंने इसे सांस्थानिक स्वरूप देने का फ़ैसला कर लिया है। उन्होंने नेताओं और पार्टियों को तोड़ने के लिए बाकायदा एक कमेटी बना दी है। यानी अब तक जो काम वे लघु उद्योग के स्तर पर कर रहे थे अब उसको कार्पोरेट लेवल पर करेंगे। 

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ये भारतीय राजनीति में भी एक अभिनव प्रयोग है। इतनी दूर तक कोई भी नेता नहीं सोच पाया था। सोचता भी कैसे। इसके लिए मोदी जी जैसा वैपारी होना ज़रूरी है। 

ये मोदी जी का वैपारी दिमाग़ ही है जो छोटी चीज़ों को विराट रूप दे सकते हैं। उन्होंने धार्मिक कारोबार को जो विराट रूप दिया है वह अद्भुत है। राम मंदिर के निर्माण से उसने एक नई ऊँचाई प्राप्त की है। इसी को कहते हैं थिंक बिग। बड़ा है तो बेहतर है। उनके इस बड़प्पन के समक्ष तमाम नेता बौने साबित हो रहे हैं। मैं मोदीजी की इस क्रांतिकारी पहल का खुले दिल से स्वागत करता हूँ। मुझे पूरा भरोसा है कि इस पहल से देश में लोकतंत्र का वैपार और फलेगा-फूलेगा। संवैधानिक व्यवस्था को कितनी मज़बूती मिलेगी इससे तो देश ही क्या पूरी दुनिया वाकिफ़ है। 

उनकी इस पहल से नेताओं की आने वाली पीढ़ियाँ और दूसरे राजनीतिक दल भी प्रेरणा लेंगे, ऐसा मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ। सबसे बड़ी बात तो ये है कि उनके इस क़दम से राजनीति में और भी पारदर्शिता आएगी। नैतिकता, आदर्शवाद, विचारधारा और सिद्धांतों की बेड़ियाँ इससे टूटेंगी। नेता अंतरात्मा की आवाज़ पर दल बदल का फ़ैसला ले सकेंगे। पार्टी का नैतिक दबाव कम होगा।  

मगर मोदीजी माफ़ कीजिएगा, आपसे पार्टी तोड़क कमेटी बनाने में थोड़ी चूक हो गई है। कमेटी में हिमंत बिस्व सरमा जैसा कुशल दल तोड़क का होना काफी नहीं है। आपको कमेटी में कुछ और अनुभवी और सिद्धहस्तों को शामिल करना चाहिए था। आप सिंधिया, अजित पवार, अमरिंदर सिंह, जतिन प्रसाद वगैरा को कमेटी में ज़रूर रखिए। ये आपकी पहल को अंजाम तक ले जाने में अभूतपूर्व योगदान देने में सक्षम होंगे।

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वैसे इससे भी बड़ी चूक आपसे ये हुई है कि कमेटी में आपने एक भी धन्ना सेठ नहीं रखा है। कम से कम एक दो बड़े थैलीशाहों जैसे कि अडानी, अंबानी को ज़रूर शामिल करना चाहिए था। नेताओं और पार्टियों को तोड़ने के लिए असंख्य पेटियों की ज़रूरत पड़ेगी। उसकी आपूर्ति यही लोग कर सकते हैं। 

ये सही है कि पहले भी यही लोग करते थे, मगर इनके कमेटी में होने से लेनदेन की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। टूटने वाला और तोड़ने वाला दोनों आमने सामने बैठकर डील कर सकेंगे। चूँकि चुनाव के लिए समय कम रह गया है इसलिए रुकावटों को दूर करके प्रक्रिया को सरल बनाना ज़रूरी है। 

आप तो विश्वगुरु हैं फिर भी ये नाचीज़ सुझाव देना चाहता है कि कमेटी में कम से कम एक-एक सदस्य ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई से भी ज़रूर रखिए। इन तीनों एजंसियों के मेंबर वांछित नेताओं से जुड़ी तमाम फाइलें मुहैया करवाकर काम को बहुत आसान कर सकते हैं। वे उन नेताओं को घेरकर पार्टी में लाने में सहायक साबित होंगे, जो ना-नुकुर करेंगे। एक-दो छापे डालेंगे और वे सीधे पार्टी ऑफिस आकर भगवा गमछा धारण कर लेंगे। 

अगर गुस्ताख़ी माफ़ हो तो ये भी कहना चाहता हूँ कि भगत सिंह कोशियारी टाइप का एकाध गवर्नर भी कमेटी का मेंबर हो तो अच्छा रहेगा। पार्टियों को तोड़ने और सरकारों को गिराने का उनका अनुभव बहुत काम का हो सकता है। कुछ गवर्नर और लेफ्टिनेंट गवर्नर सरकारों को अस्थिर करके नेताओं में असुरक्षा पैदा कर देते हैं और फिर वे टूटने के लिए तैयार हो जाते हैं। उनकी इस विशेषज्ञता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।

वैसे इसके लिए एक सब कमेटी भी बनाई जा सकती है। इस कमेटी में विधानसभाध्यक्षों को भी शामिल किया जा सकता है। अंत में दलबदलुओं को सही ठहराने का सारा दारोमदार उन्हीं पर आ जाता है। उनकी मदद से अनैतिक एवं न्याय विरोधी आधार तैयार करने में मदद मिलेगी। 

अब चूँकि प्रधानमंत्री पारदर्शिता को पसंद करते हैं इसलिए ये सुझाव देना भी ग़लत नहीं होगा कि एक रेट लिस्ट भी तैयार कर ली जाए तो अच्छा रहेगा। रेट लिस्ट में तीन-चार कैटेगरी बनाई जा सकती हैं। पहली उन दलबदलुओं की हो सकती है जो मुख्यमंत्री या मंत्रिपद के लिए दलबदल करेंगे।

दूसरी, केवल धन के लिए ऐसा करने वालों की हो सकती है। तीसरी में पद और धन दोनों की अपेक्षा रखने वाले हो सकते हैं। चौथी कैटेगरी ईडी आदि से सुरक्षा चाहने वालों की हो सकती है। 

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ये रेट लिस्ट अगर बीजेपी के सभी दफ़्तरों में चस्पाँ कर दी जाएगी तो किसी दलबदलू को कोई शंका-कुशंका नहीं रहेगी। अलबत्ता, मोल-भाव की थोड़ी-बहुत गुंज़ाइश तो वैपार में रखनी ही होती है, तो वह भी रखी जाए। फिक्स रेट से अक्सर भारतीय ग्राहकों को संतुष्टि नहीं मिलती है या वे उस दुकान में घुसते ही नहीं। 

और अभयदान मिले तो अंत में एक सुझाव और देना चाहता हूँ। कमेटी का नाम पराया माल अपना रखिए। राम नाम तो आप और आपकी पार्टी जप ही रही है अब अगर कमेटी का नाम पराया माल अपना रख लिया तो जुमला पूरा हो जाएगा- राम नाम जपना, पराया माल अपना। 

ये नाम अबकी बार 400 पार से भी ज़्यादा हिट हो सकता है। दलबदलुओं को भी ये बहुत आकर्षित करेगा, क्योंकि इसमें राम का नाम भी शामिल है, जिसकी सियासी मंडी में फ़िलहाल ज़बर्दस्त मांग है। राम के नाम पर वे बिकने के लिए सहर्ष तैयार हो जाएंगे।    

आशा है आप मेरे सुझावों पर गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे। शुभकामनाओं सहित...आपका आज्ञापालक....

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मुकेश कुमार
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