इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल को लेकर बढ़ते विवाद के बीच सरकार ने इसके प्रचार के लिए सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स को शामिल किया है? इस रणनीति के पीछे की वजह क्या है?
इथेनॉल वाले पेट्रोल पर सवालों की बौछारों से घिरी सरकार क्या इससे निपटने के लिए अब इन्फ्लुएंसर्स का सहारा ले रही है? यदि इथेनॉल में सबकुछ ठीक है तो फिर इस तरह के प्रचार की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? ये सवाल इसलिए क्योंकि देश में इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल यानी E20 को लेकर पिछले कुछ समय से तीखी बहस छिड़ी हुई है। सोशल मीडिया पर इथेनॉल वाले पेट्रोल से गाड़ियों के ख़राब होने के आरोप लगाए जा रहे हैं और पेट्रोल के सस्ता नहीं किए जाने के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और सरकार को घेरा जा रहा है।
दरअसल, सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लिए पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य तय किया था। इसे 2025 में समय से पहले हासिल कर लिया गया। भारत सरकार ने पर्यावरण को स्वच्छ रखने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता घटाने के लिए 2014 से इथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम को तेजी से लागू किया। 2014 में जहां पेट्रोल में केवल 1.5% इथेनॉल मिलाया जाता था, वहीं 2025 तक यह 20% तक पहुंच गया। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 24 जुलाई 2025 को दावा किया था कि इस नीति से 1.36 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई और 698 लाख टन कार्बन उत्सर्जन कम हुआ। इसके अलावा गन्ना और मक्का जैसे कृषि उत्पादों से इथेनॉल उत्पादन बढ़ने से किसानों को 1.18 लाख करोड़ रुपये का लाभ हुआ।
लेकिन इस नीति ने वाहन मालिकों और ऑटोमोबाइल कंपनियों के बीच चिंता और असंतोष पैदा कर दिया है। इस नीति की आलोचना तब शुरू हुई जब वाहन मालिक E20 पेट्रोल के उपयोग से माइलेज में कमी, इंजन की खड़खड़ाहट और फ्यूल सिस्टम को नुकसान की शिकायतें करने लगे। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि ऑटोमोबाइल कंपनियों ने चेतावनी दी कि 2023 से पहले निर्मित वाहन E20 के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं और इसके इस्तेमाल से रबर होज, गास्केट, और फ्यूल इंजेक्टर जैसे पुर्जों को नुकसान हो सकता है। हालाँकि, अब सरकार ने दावा किया है कि E20 से इंजन को किसी तरह नुक़सान नहीं होता है और यह लैब में साबित हो चुका है।
सोशल मीडिया पर हंगामा
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने तूल पकड़ा जब कई यूजरों ने दावा किया कि E20 पेट्रोल से उनकी गाड़ियों का परफॉर्मेंस प्रभावित हुआ। सुंदरदीप सिंह नाम के एक यूजर ने ट्वीट किया, 'इथेनॉल का मामला उल्टा पड़ गया है। गाड़ियों की ईंधन दक्षता कम हो रही है और 20% इथेनॉल वाला पेट्रोल सामान्य पेट्रोल जितना ही महंगा है। ब्राजील और अमेरिका की तरह E0, E5, या E10 का विकल्प क्यों नहीं दिया जा रहा?'
इस बीच, कुछ सोशल मीडिया पोस्टों में आरोप लगाया गया कि सरकार ने E20 के प्रचार के लिए लोकप्रिय इन्फ्लुएंसर्स को नियुक्त किया है। इनमें अभिषेक मल्हान, माहेश केशवाला, अरुण कुशवाह, आरजे नवेद, आरजे प्रवीण, नेहा नगर, संजय कथूरिया और विशाल रट्टेवाल जैसे नाम शामिल हैं।
एक यूजर ने लिखा, 'क्या यह इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल का सच है या सिर्फ पीआर? सरकार ने इन्फ्लुएंसर्स को प्रचार के लिए नियुक्त किया, लेकिन इस अभियान का बजट क्या था? करदाताओं का पैसा कहां खर्च हो रहा है?'
इन आरोपों में यह भी दावा किया गया कि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने अपनी 17 चीनी मिलों से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया। हालाँकि, इन दावों की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और यह सिर्फ़ सोशल मीडिया पर चल रही अटकलों का हिस्सा है।
55 रुपये में पेट्रोल के गडकरी के वादे का क्या?
2018 में नितिन गडकरी ने दावा किया था कि इथेनॉल ब्लेंडिंग से पेट्रोल की कीमत 55 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 50 रुपये प्रति लीटर तक कम हो सकती है। उनका तर्क था कि गन्ने और मक्के से बनने वाला इथेनॉल पेट्रोल की तुलना में सस्ता है और इससे उपभोक्ताओं को लाभ होगा। लेकिन 2025 में भी पेट्रोल की क़ीमतें 94-100 रुपये प्रति लीटर के आसपास हैं और उपभोक्ताओं का कहना है कि सस्ते इथेनॉल की ब्लेंडिंग के बावजूद क़ीमतों में कोई कमी नहीं आई। नितिन गडकरी ने 2018 में कहा था कि वे जो कहते हैं कि वो करके दिखाते हैं इसलिए कोई भी मीडियाकर्मी कभी उनसे वादे पूरे न करने को लेकर सवाल नहीं करता।
सरकार और विशेषज्ञों का पक्ष
पेट्रोलियम मंत्रालय ने E20 को लेकर उठ रही चिंताओं को बेबुनियाद करार दिया है। मंत्रालय का कहना है कि माइलेज में 1-2% की मामूली कमी हो सकती है जो नए वाहनों में इंजन ट्यूनिंग से ठीक की जा सकती है। पुरानी गाड़ियों में यह कमी 3-6% तक हो सकती है, लेकिन नियमित सर्विसिंग से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। मंत्रालय ने यह भी साफ़ किया कि E20 के उपयोग से इंश्योरेंस वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता।
नितिन गडकरी ने हाल ही में कहा था, 'मुझे एक भी ऐसी गाड़ी दिखाएं जो इथेनॉल से खराब हुई हो।' उन्होंने दावा किया कि E20 पर्यावरण के लिए फायदेमंद है और इससे किसानों की आय बढ़ रही है। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष निकुंज सांघी ने भी कहा कि 2021 के बाद बनी गाड़ियों में E20-संगत पुर्जे लगाए जा रहे हैं और पर्यावरण को इसका लाभ मिल रहा है।
E10 और E20 जैसी लेबलिंग क्यों नहीं?
सोशल मीडिया पर उपभोक्ताओं का कहना है कि पेट्रोल पंपों पर E10 और E20 के बीच स्पष्ट लेबलिंग नहीं होने से वे अनजाने में E20 भरवा रहे हैं, जिससे उनकी गाड़ियों को नुकसान हो रहा है। कहा जा रहा है कि सरकार को E0, E5, या E10 जैसे विकल्प उपलब्ध कराने चाहिए जैसा कि ब्राजील और अमेरिका में किया जाता है।
इसके अलावा पुराने वाहनों को E20 के लिए अनुकूल बनाने के लिए ट्यूनिंग की लागत भी एक मुद्दा है। दोपहिया वाहनों के लिए यह लागत 5000 रुपये तक और कारों के लिए 1 लाख रुपये से अधिक हो सकती है।
इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में पारदर्शिता और उपभोक्ता जागरूकता की कमी ने विवाद को जन्म दिया है। इन्फ्लुएंसर्स के जरिए प्रचार के आरोपों ने इस बहस को और गर्म कर दिया है।