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लोकसभा चुनाव से पहले ट्विटर चला गाँव की ओर 

चुनाव आ रहे हैं, इसलिए ट्विटर अब गाँव का रुख़ करेगा। उसका इरादा गाँवों, क़स्बों और छोटे शहरों में रहने वाले 19 करोड़ लोगों को अपने साथ जोड़ने का है। इसके लिए ट्विटर जगह-जगह रोड शो करेगा, क्षेत्रीय भाषाओं के ब्लॉगरों को अपने साथ लेगा और लोगों को सिखाएगा कि ट्विटर के प्लेटफ़ार्म का इस्तेमाल वह कैसे कर सकते हैं। अपने देश में लोगों की राजनीति में गहरी रुचि है। चुनावों के समय ख़ासतौर पर चौपालों से लेकर चाय के खोखों तक हर जगह चुनावी चर्चा गर्म रहती है। इसीलिए ट्विटर इस मौक़े का फ़ायदा उठा कर अपनी पहुँच गाँवों, क़स्बों और उन छोटे शहरों तक बढ़ाना चाहता है, जहाँ अभी बहुत कम लोग ट्विटर इस्तेमाल करते हैं या इसके बारे में कुछ जानते हैं।

ट्विटर अभी तक बड़े और मँझोले शहरों तक ही था और आमतौर पर इस पर अंग्रेज़ी का ही दबदबा था। यही वजह है कि फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप के मुक़ाबले ट्विटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफ़ी कम है। ट्विटर सिर्फ़ तीन करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं, जबकि फ़ेसबुक पर 29 करोड़ और व्हाट्सऐप पर 20 करोड़ लोग सक्रिय हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में ट्विटर पर हिंदी और तेलुगु भाषी लोगों की बढ़ी सक्रियता से ट्विटर को यह आइडिया आया है कि लोकसभा चुनावी के दौरान अगर वह दस भारतीय भाषाओं में अपना फैलाव करे, तो शायद उसे अच्छी सफलता मिल सकती है। 

रोड शो के दौरान बताया जाएगा कि ट्विटर के ज़रिए कैसे अपनी बात को राजनेताओं तक पहुँचाया जाए। इसके अलावा गाँव में छोटे-छोटे कार्यक्रम भी किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों में लोगों को ट्वीट करना और झूंठी खबरों की पहचान कर संस्थानों को सुचित करना सिखाया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए ट्विवटर ने हिंदी, तेलुगू, तमिल, मलयालम, कन्नड़, बांग्ला और मराठी जैसी 10 भाषाओं को शामिल किया है। 

ट्विवटर के सीईओ जैक डॉर्सी पिछले महीने भारत आए थे। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान राजनैतिक दलों और अधिकारियों से मुलाकात की। उनकी इसी यात्रा के दौरान ट्विवटर को गाँव तक पहुँचाने की रणनीति तैयार की गई थी।

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क़मर वहीद नक़वी
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