कहानी में अगर नायक है तो खलनायक भी ज़रूर होगा। अगर नायक नाकाम है तो उसकी वजह शर्तिया तौर पर खलनायक होगा। अगर कोई वास्तविक खलनायक नहीं है तब भी कोई विलेन कैरेक्टर क्रियेट किया जाएगा। कहानी गढ़ने का ये एक स्टीरियो टिपिकल अंदाज़ है, जो भारतीय समाज में बरसों से चला आ रहा है। आप अपने घर परिवार, मुहल्ले या रिश्तेदारी के किसी स्पॉइल जीनियस चाचा या मामा की कहानी सुन लीजिये। उनकी बर्बादी की जिम्मेदारी परिवार या आसपास के उसी आदमी पर डाली जाएगी जिसने सबसे ज्यादा तरक्की की हो।
स्मृतियां बहुत पीछे यानी 1993 में लौट जाती हैं। इंग्लैंड के खिलाफ मुंबई में टेस्ट मैच चल रहा था। शुरुआती दो विकेट गिरने के बाद विनोद कांबली और सचिन तेंदुलकर ने लगभग पूरे दिन बैटिंग की और पार्टनरशिप में 194 रन बना डाले। वानखेड़े स्टेडियम में जगह-जगह पोस्टर नज़र आ रहे थे—इंग्लैंड Vs शारदाश्रम स्कूल। 6 साल पहले मुंबई के जिन दो विलक्षण बच्चों ने हैरिस शील्ड में 664 रन की पार्टनरशिप करके पूरी दुनिया को चौका दिया था, वे दोनों अब भारतीय टीम का हिस्सा थे।



























