लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा कि वे पहले अनुच्छेद 370 की आलोचना करते थे, लेकिन यही प्रावधान लद्दाख को सुरक्षा देता था।
लेह एपेक्स बॉडी के सह अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक
कभी शांति और प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचाने जाने वाला लद्दाख आज एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल का गवाह बन रहा है। लेह एपेक्स बॉडी यानी एबीएल के सह-अध्यक्ष और लद्दाख बौद्ध संघ यानी एलबीए के प्रमुख चेरिंग दोरजे लकरूक ने अनुच्छेद 370 के खात्मे को लद्दाख की मौजूदा स्थिति का एक बड़ा कारण बताया। उन्होंने कहा कि पहले लद्दाख के लोग अनुच्छेद 370 को बड़ी बाधा मानते थे, लेकिन अब पता चला कि वह अनुच्छेद तो उनकी जमीन और आजीविका की सुरक्षा का ढाल था।
चेरिंग दोरजे लकरूक ने ये बातें 'द इंडियन एक्सप्रेस' को दिए एक साक्षात्कार में कही हैं। उन्होंने इसमें क्षेत्र की समस्याओं और हाल के हिंसक प्रदर्शनों के कारणों पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि लोगों में ग़ुस्सा पिछले छह साल से भर रहा है। लकरूक ने बताया कि 2019 में अनुच्छेद 370 के खात्मे और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद क्षेत्र की स्थिति बदल गई। पहले वे अनुच्छेद 370 को केंद्र शासित प्रदेश की मांग में बाधा मानते थे, लेकिन अब उन्हें एहसास हुआ कि यह 70 साल तक उनकी जमीन और आजीविका की रक्षा करता रहा।
लकरूक ने कहा, 'अनुच्छेद 370 के रहते जम्मू-कश्मीर के लोग भी यहाँ जमीन नहीं खरीद सकते थे। अब पूरा भारत लद्दाख में जमीन खरीद रहा है। बड़े होटल चेन आ रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका छिन रही है।'
उन्होंने बताया कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद कोई नई नौकरियां सृजित नहीं हुईं। पहले जम्मू-कश्मीर सरकार के तहत भर्ती अभियान चलते थे, जिनमें स्थानीय युवाओं को नौकरी मिलती थी। अब ये अभियान बंद हो गए हैं। जो नौकरियां मिल रही हैं, वे अनुबंध आधारित हैं, जिन्हें लकरूक ने 'गुलामी जैसा' करार दिया। उन्होंने कहा, 'ये युवा लंबे घंटे तक काम करने को मजबूर हैं और उन्हें अपमान सहना पड़ता है, क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी नौकरी कभी भी जा सकती है।'
आंदोलन: बेरोजगारी और युवाओं का गुस्सा
लकरूक के अनुसार, हाल ही में लेह में हुए हिंसक प्रदर्शन पूरी तरह से स्वतःस्फूर्त थे। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि क़रीब 4000-5000 लोग सड़कों पर उतरे, जिनमें ज्यादातर बेरोजगार युवा थे। उन्होंने कहा, "ये सभी शिक्षित बेरोजगार युवा थे, जिन्हें अब 'Gen Z' कहा जाता है। हो सकता है कि भीड़ में कुछ असामाजिक तत्व शामिल हों, लेकिन मुख्य रूप से यह छह साल से दबी हुई कुंठा का परिणाम था।"
प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी कार्यालय पर हमला किया, जहां उन्होंने बीजेपी के झंडों को फाड़ दिया, लेकिन तिरंगे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। लकरूक ने इसे युवाओं की जागरूकता का सबूत बताया, जो बाबासाहेब आंबेडकर और लामा जी की तस्वीरों को भी सुरक्षित निकालकर बिल्डिंग में आग लगाई।
पूछे जाने पर लकरूक ने नेपाल में हाल की क्रांति से प्रेरणा की संभावना को स्वीकार किया, क्योंकि आज हर युवा के हाथ में स्मार्टफोन है और वे विश्व की घटनाओं से अवगत हैं। लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि मुख्य कारण स्थानीय बेरोजगारी और गरीबी है। उन्होंने कहा, "ये युवा गरीब परिवारों से हैं। जिन्हें हिरासत में लिया गया, वे होटल मालिकों या व्यापारियों के बच्चे नहीं हैं। ये वो लोग हैं, जिन्होंने बड़ी मुश्किल से पढ़ाई पूरी की, लेकिन नौकरी नहीं मिली।"
कागजों में जिले और निष्क्रिय परिषदें
लकरूक ने केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद प्रशासनिक बदलावों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि सरकार ने पांच नए जिले बनाने की घोषणा तो की, लेकिन ये केवल कागजों पर हैं। उन्होंने कहा, 'नए जिले बनाए गए, लेकिन न तो नए डिप्टी कमिश्नर नियुक्त किए गए, न ही वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और न ही विभागीय प्रमुख। एक भी चपरासी की भर्ती नहीं हुई। लेह और कारगिल में केवल दो डिप्टी कमिश्नर हैं, बाकी जिले हवा में हैं।'
लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल यानी एलएएचडीसी के पास पहले महत्वपूर्ण शक्तियां थीं, अब क़रीब क़रीब निष्क्रिय हो चुकी है। परिषद के कर्मचारी अब केंद्र शासित प्रशासन के लिए काम कर रहे हैं और उनकी निष्ठा प्रशासन के प्रति है। लकरूक ने बताया कि जमीन का अधिकार कागजों पर परिषद के पास है, लेकिन कोई भी फाइल तब तक आगे नहीं बढ़ती, जब तक केंद्र शासित प्रशासन की मंजूरी न मिले।
स्थानीय कानूनों पर हमला
लकरूक ने महाराजा हरि सिंह के समय के ऐलान नंबर 38 जैसे पुराने कानूनों को रद्द करने की आलोचना की, जो बंजर जमीन को खेती के लिए पट्टे पर देने की अनुमति देता था। अब इस जमीन पर घर या होटल बनाने की अनुमति नहीं दी जा रही, जिससे स्थानीय लोगों को परेशानी हो रही है। इसके अलावा, दो वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास केवल दो कनाल जमीन पर गेस्ट हाउस बनाने की अनुमति है, जबकि बाकी जमीन बड़े निवेशकों के लिए खुली है। उन्होंने सवाल उठाया कि स्थानीय गेस्ट हाउस मालिक बड़े होटलों से कैसे मुकाबला करेंगे?
लद्दाख की मांगें: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची
लद्दाख की लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी केडीए पिछले पांच साल से चार मुख्य मांगों के लिए आंदोलन कर रहे हैं-
- पूर्ण राज्य का दर्जा देना
- संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना
- लेह और कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीटें
- मौजूदा सरकारी रिक्तियों को भरना।
लकरूक ने कहा कि सरकार के साथ छह साल की बातचीत के बाद भी केवल डोमिसाइल आधारित आरक्षण हासिल हुआ, वह भी 100% नहीं। उन्होंने कहा, 'हमारी मुख्य मांगों पर अभी तक चर्चा भी शुरू नहीं हुई। क्या इसके लिए और छह साल इंतजार करना होगा?'
लकरूक ने कहा कि छठी अनुसूची स्थानीय लोगों को सशक्त बनाती है और उनकी जमीन, जंगल और रीति-रिवाजों की रक्षा करती है। पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन उनके स्थानीय मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता था, लेकिन अब केंद्र शासित प्रशासन गांव के बुजुर्ग मुखियाओं को उम्र के आधार पर हटा रहा है, जो पारंपरिक रीति-रिवाजों को संभालते हैं। उन्होंने कहा कि यह बुजुर्ग ही हमारे रीति-रिवाजों को सबसे बेहतर जानते हैं।
क्या चाहते हैं लद्दाखवासी?
लकरूक ने साफ़ किया कि लद्दाखवासियों ने कभी केवल केंद्र शासित प्रदेश की मांग नहीं की थी। उन्होंने कहा, 'हम हमेशा विधानमंडल के साथ केंद्र शासित प्रदेश चाहते थे। श्रीनगर दूर था, लेकिन दिल्ली उससे भी दूर है। अब केंद्र से आने वाला 90% फंड प्रशासन के पास जाता है, केवल 10% परिषद को मिलता है।' उन्होंने कहा कि विधानमंडल के बिना लद्दाख के लोग अपनी आवाज खो चुके हैं और उप-राज्यपाल, कमिश्नर और सचिव उनके 'शासक' बन गए हैं।
लकरूक ने सरकार से तत्काल बातचीत की मांग की और हिंसा की निंदा करते हुए कहा कि यह युवाओं की कुंठा का परिणाम थी। उन्होंने सोनम वांगचुक की हिरासत और उनके एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंस रद्द करने की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, '30 साल से उनका एनजीओ काम कर रहा है। अब अचानक कार्रवाई क्यों?' उन्होंने पुलिस की गोलीबारी की भी आलोचना की, जिसमें चार लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। लकरूक ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने जल्द ही मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो स्थिति और बिगड़ सकती है।
सोनम वांगचुक को रिहा करने की मांग
केंद्र लद्दाख के लोगों को अलग-थलग कर रही: केडीए
करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी केडीए ने सोमवार को मांग की कि जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा के बाद हिरासत में लिए गए अन्य लोगों को तुरंत और बिना शर्त रिहा किया जाए। केडीए ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और अन्य प्रमुख मांगों को पूरा करने में विफलता के कारण हिमालयी क्षेत्र के लोग अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, केडीए के सदस्य सज्जाद करगिली ने कहा, 'लद्दाख के लोगों में विश्वासघात और अलगाव की भावना बढ़ रही है।'
केडीए और लेह एपेक्स बॉडी यानी एलएबी पिछले पांच वर्षों से लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा, स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर और लेह व करगिल के लिए अलग-अलग संसदीय सीटों की मांग को लेकर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। केडीए ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को लद्दाख के लोगों की वैध मांगों को पूरा करने के लिए तत्काल और सार्थक बातचीत शुरू करनी चाहिए।
लद्दाख के लोग लंबे समय से अपनी जमीन, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए छठी अनुसूची और पूर्ण राज्य का दर्जा मांग रहे हैं। केडीए ने चेतावनी दी कि यदि इन मांगों को अनदेखा किया गया, तो क्षेत्र में असंतोष और बढ़ सकता है, जो भारत के उत्तरी सीमाओं के लिए रणनीतिक और सांस्कृतिक रूप से अहम है।