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विवेक तिवारी की हत्या मामला : बुरी तरह फ़ंसी लखनऊ पुलिस

लगभग डेढ़ हज़ार एनकाउंटर करने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस इस बार  बुरी तरह फंस गई है। एपल एग्जक्यूटिव विवेक तिवारी की हत्या के बाद यह मनमर्ज़ी करने, फ़र्जी मुठभेड़, मानवाधिकार उल्लंंघन और निर्दोषों को झूठे मामलों में फंसाने जैसे मुद्दों पर चारों ओर से घिर गई है। एपल के एग्जक्यूटिव तिवारी लखनऊ के गोमतीनगर में दफ़्तर से घल लौट रहे थे, जब एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें गाड़ी रोकने का इशारा किया। उन्होंनेे गाड़ी नहीं रोकी तो उन्हें गोली मार दी गई। उनकी मौत हो गई। पुलिस गोली मारने वाले इंस्पेक्टर को बचाने में जुट गई। पहले कहा कि तिवारी अपनी महिला सहकर्मी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थे। बाद में कहा कि उन्होंने गाड़ी नहीं रोकी तो इंस्पेक्टर ने आत्मरक्षा में गोली चलाई। एफ़आईआर में उसका नाम नहीं था, मामले को हल्का करने के लिए मामूली धाराएं लगाई गईं। 
UP police caught badly after death of vivek tiwari in lucknow - Satya Hindi
विवेक तिवारी की हत्या के बाद लोगो ने विरोध प्रदर्शन किया
 पुलिस की किरकिरीमहिला सहकर्मी के साथ होेने के मुद्दे पर पुलिस की बरी ही किरकिरी हुई। तिवारी की पत्नी ने सवाल किया कि यदि ऐसा था भी तो पुलिस को गोली मारने का हक किसने दे दिया। यह वही सरकार है, जिसने लड़कियों को छेड़ने से बचाने के नाम पर पुलिस जवानों को तैनात किया और वे जवान प्रेमी जोड़ों को परेशान करने लगे। इस वारदात पर लोगो में ज़बरदस्त गुस्सा उभरा। लोगों ने जगह जगह प्रदर्शन किया और पुलिस को शर्मिंदा करने वाले पोस्टर लगाए। बच्चो ने एक पोस्टर लेकर प्रदर्शन किया जिसमें पुलिस से कहा गया था, 'आप गाड़ी रोकेंगे तो पापा रुक जाएंगे। प्लीज़, गोली मत मारियेगा।'   सरकार को कार्रवाई करनी पड़ीइसके बाद उस इंस्पेक्टर को निलंबित किया गया और गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया। मुख्यमंत्री ने तिवारी की विधवा से मुलाक़ात कर मुआवज़े का एलान किया और दूसरे तरह की कई रियायतें दीं। इससे यह तो साफ़ हो गया कि तिवारी कोई संदिग्ध नहीं थे, उनके ख़िलाफ़ कोई गुप्त सूचना नहीं थी। पुलिस ने उनके साथ ज़्यादती की और क़ानून अपने हाथ में लिया। उत्तर प्रदेश की पुलिस इस तरह मनमर्जी करती है कि इसके नीचले स्तर के अधिकारी भी अपने अहम की तुष्टि के लिए छोटी मोटी बात पर भी किसी को गोली मार देते है। इसे दिल्ली के नज़दीक नोएडा में जीतेंद्र यादव को गोली मारने की वारदात से समझा जा सकता है। 
UP police caught badly after death of vivek tiwari in lucknow - Satya Hindi
पुलिस ने जीतेद्र यादव को गोली मार दी, वे फ़रवरी से अस्पताल में मौत से जूझ रहे हैं

मामूली कहासुनी, गोली मार दी

‘मिस्टर उत्तर प्रदेश’ प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा यह जिम ट्रेनर अपने किसी दोस्त के साथ घर लौट रहा था जब पुलिस ने उन्हे रोका। थोड़ी बहुत कहासुनी हुई और उसने तैश में  यादव को गोली मार दी। यादव की रीढ़ की हड्डी में गोली लगी, वे अपंग हो गए। अस्पताल में वे मौत से जूझ रहे हैं। इतना ही नहीं, उनके परिजनों  का आरोप है कि पुलिस उन पर मामपला वापस लेने का दबाव बना रही है।  राज्य पुलिस क़ानून अपने हाथ में लेने और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने में इतना निडर हो चुकी है कि वह मीडिया को बुला कर उसके सामने फ़र्ज़ी एनकाउंटर कर देती है। 

'लाइव' एनकाउंटर

पुलिस ने 20 सितंबर को मीडिया से कहा कि वह शातिर अपराधियों का एनकाउंटर करने जा रही है और वे खुद चल कर उसे देखें। शहर से 25 किलोमीटर मछुआ गांव में पुलिस ने पत्रकारों के सामने नहर की ओर गोलियां चलाईं, थोड़ी देर बाद दो शव पेश किए और उन्हें उसी मुठभेड़ का नतीज़ा क़रार दिया। पुलिस ने कहा कि ये नौशाद और मुस्तक़ीम नामक दो अपराधी थे, जो एक साधु की हत्या में शामिल थे। वे फ़रार थे और पुलिस को उनकी तलाश थी। उन्होंने यह भी कहा कि इन लोगों ने पुलिस पर 34 राउंड गोलियां चलाईं।

हजार एनकाउंटर, 67 मौतें

पुलिस ने बीते साल भर में तक़रीबन 1,500 मुठभेड़ें की। खुद सरकार ने इस साल जनवरी में एक बयान जारी कर कहा कि अब तक 1038 मुठभेड़ों में 67 ‘अपराधी’ मारे गए और 238 घायल हुए। सरकार ने माना कि चार पुलिस अफ़सर भी इन वारदात में मारे गए।

आंकड़े खोलते हैं पोल

सरकार के दिए आंकड़े ही उसकी पोल खोलते हैं। एक हज़ार से अधिक मुठभेड़ों में 67 लोग मारे गए और 238 लोग घायल हुए तो बड़ी तादाद में बदमाश एनकाउंटर के दौरान ही भाग निकले। यह पुलिस की नाकामी का सबूत है। इससे साफ़ है कि पुलिस कुछ छुपा रही है। उसने आंकड़े ग़लत दिए हैं और एनकाउंटर या तो हुए ही नहीं या फ़र्ज़ी हुए। इसका उदाहरण अलीगढ़ की मुठभेड़ है। 

सरकार की नीयत पर सवाल

ये मुठभेड़ सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करते हैं, क्योंकि मारे गए लोगों में अधिकतर मुसलमान, दलित और ओबीसी समुदायों के लोग हैं। इससे साफ़ है कि कुछ ख़ास समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया है।
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एनकाउंटर बढ़ने और पुलिस के मनमर्ज़ी करने की एक वजह यह भी है कि सरकार उसे रोकने के बजाय मुठभेड़ों पर गर्व करती है। उसने मुख्यमंत्री की तस्वीर के साथ यह विज्ञापन जारी किया था कि कितने मुठभेड़ हुए और उनमें कितने लोग मारे गए। इससे पुलिस में यह संकेत गया कि सरकार मुठभेड़ों से खुश है। उससे मुठभेड़ को प्रोत्साहन मिला और पुलिस के लोगों को लगा कि क़ानून अपने हाथ में लेने पर भी उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होगी। लखनऊ गोलीकांड से सरकार को यह मौका मिला है कि वह एनकाउंटर रोकने की सख़्त हिदायत दे। पुलिस पर लगाम लगाए और उन्हें साफ़ शब्दों में कह दे कि क़ानून हाथ में लेने या मनमर्ज़ी करने की वारदात पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 
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क़मर वहीद नक़वी
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