ज़बान संभालना काफ़ी नहीं, हिंसा के प्रति नज़रिया बदले कांग्रेस
राहुल गाँधी की इसलिए तो प्रशंसा की ही जानी चाहिए कि उन्होंने बिना हिचकिचाहट के निर्द्वंद्व होकर सैम पित्रोदा के 1984 की सिख विरोधी हिंसा पर दिए गए बयान की सख़्त आलोचना की। 1984 की याद हिंदुओं के लिए भी आत्म परीक्षण का अवसर है।