तेलंगाना के मौजूदा मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता ए. रेवंत रेड्डी, उनके परिवार, रिश्तेदारों और करीबी सहयोगियों पर भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस शासन के दौरान कथित तौर पर अवैध निगरानी की गई थी। यह सनसनीखेज खुलासा तेलंगाना पुलिस की एक जांच से सामने आया है। पुलिस बीआरएस के शासनकाल यानी 2014-2023 के दौरान 600 से अधिक व्यक्तियों पर अवैध निगरानी के आरोपों की जांच कर रही है। द इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर रिपोर्ट छापी है। जांचकर्ताओं के अनुसार, रेवंत रेड्डी पर निगरानी के लिए एक विशेष 'आरआर मॉड्यूल' बनाया गया था, जिसे विशेष खुफिया शाखा यानी एसआईबी के तत्कालीन डीएसपी प्रणीत राव और उनकी टीम ने चलाया था। इस मॉड्यूल में रेवंत के परिवार, रिश्तेदारों, पार्टी सहयोगियों और यहां तक कि उनके ड्राइवरों और बचपन के दोस्तों तक की प्रोफाइल तैयार की गई थी। इस खुलासे के बाद तेलंगाना में राजनीतिक हलकों में हलचल है और बीआरएस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

जांच क्यों की गई?

तेलंगाना में 3 दिसंबर 2023 को कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बीआरएस सरकार के दौरान अवैध फोन टैपिंग और निगरानी के आरोपों की जांच शुरू की गई थी। यह जांच तब तेज हुई जब रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड और अन्य टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं के 'टॉप-सीक्रेट रिकॉन्सिलिएशन लेटर्स' सामने आए, जिनमें विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 16 से 30 नवंबर 2023 तक कुछ फोन नंबरों पर निगरानी की जानकारी थी। इन दस्तावेजों से पता चला कि बीआरएस ने राज्य की नक्सल-विरोधी निगरानी प्रणाली का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं, कारोबारियों, पत्रकारों, एक हाईकोर्ट जज और यहाँ तक कि बीआरएस के कुछ असंतुष्ट नेताओं पर निगरानी की थी।
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जाँचकर्ताओं के हवाले से द इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट दी है कि तत्कालीन एसआईबी प्रमुख प्रभाकर राव के निर्देश पर डीएसपी प्रणीत राव और उनकी टीम ने 'आरआर मॉड्यूल' बनाया, जिसका उद्देश्य रेवंत रेड्डी और उनके क़रीबी लोगों की गतिविधियों पर नज़र रखना था। इस मॉड्यूल में रेवंत के परिवार, रिश्तेदारों और सहयोगियों के नाम, पते, वाहनों की जानकारी, और यात्रा लॉग जैसी जानकारी शामिल थी। रिपोर्ट के अनुसार जांचकर्ताओं का कहना है कि इस निगरानी का मुख्य मक़सद बीआरएस को विधानसभा चुनाव में जीत दिलाना और विपक्षी नेताओं को धन की कमी से कमजोर करना था।

रेवंत रेड्डी पर निगरानी की जानकारी

रेवंत रेड्डी जुलाई 2021 से दिसंबर 2023 तक तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। वह बीआरएस और तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर के आलोचक हैं। जाँच में सामने आया कि उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए एक विशेष इकाई बनाई गई थी, जिसे 'आरआर मॉड्यूल' कहा जाता था। इस मॉड्यूल ने न केवल रेवंत के फोन कॉल्स को टैप किया, बल्कि उनके परिवार, ड्राइवरों, और बचपन के दोस्तों तक की जानकारी जुटाई।

जाँच में यह भी खुलासा हुआ कि निगरानी का दायरा केवल रेवंत तक सीमित नहीं था। इसमें कांग्रेस, बीजेपी, और बीआरएस के असंतुष्ट नेताओं के साथ-साथ कारोबारी, नौकरशाह, और एक हाईकोर्ट जज भी शामिल थे।

एक अन्य आरोपी पुलिस अधिकारी भुजंगा राव ने अपने कबूलनामे में कहा कि तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग पेपर लीक मामले में केसीआर के बेटे के.टी. रामा राव की आलोचना करने वाले नेताओं के फोन टैप किए गए थे।

बीआरएस का बचाव

बीआरएस ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार बीआरएस के विधान परिषद सदस्य और प्रवक्ता दसोजु स्रवण कुमार ने इसे 'मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के इशारे पर हैदराबाद पुलिस की बेकार की कवायद' करार दिया। उन्होंने कहा कि यह जांच कोई परिणाम नहीं देगी।

इसके जवाब में बीआरएस विधायक पडी कौशिक रेड्डी ने उल्टा रेवंत रेड्डी पर अवैध फोन टैपिंग का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि रेवंत की सरकार न केवल बीआरएस नेताओं के फोन टैप कर रही है, बल्कि कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं, निजी नागरिकों और यहाँ तक कि महिला हस्तियों के फोन भी निगरानी में हैं। 
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बीआरएस कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव ने हाल ही में रेवंत पर अपने ही कैबिनेट सहयोगियों, जैसे उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमरका और अन्य मंत्रियों के फोन टैप करने का आरोप लगाया। उन्होंने रेवंत को लाई डिटेक्टर टेस्ट देने की चुनौती दी। जवाब में कांग्रेस सांसद चमाला किरण कुमार रेड्डी ने दावा किया कि बीआरएस शासन के दौरान केटी रामा राव ने अपनी बहन के. कविता के फोन टैप किए थे।

जांच की स्थिति

तेलंगाना पुलिस की विशेष जांच टीम इस मामले की गहन जांच कर रही है। जून 2024 में दायर एक चार्जशीट में पांच पुलिस और खुफिया अधिकारियों— प्रभाकर राव, डी. प्रणीत राव, भुजंगा राव, तिरुपथन्ना, और राधा किशन राव— तथा एक टीवी चैनल ऑपरेटर पर अवैध निगरानी का आरोप लगाया गया है। प्रभाकर राव और एक अन्य आरोपी श्रवण कुमार राव के अमेरिका में होने की आशंका है और उनके खिलाफ सीबीआई के माध्यम से ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। जांच में यह भी सामने आया कि डुब्बक, हुजूराबाद, और मुनुगोड उपचुनावों और ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों के दौरान भी फोन टैपिंग की गई थी। 
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रेवंत रेड्डी का रुख

रेवंत रेड्डी ने कई मौकों पर दावा किया है कि वह बीआरएस शासन के दौरान निगरानी में थे। उन्होंने बीआरएस और बीजेपी पर मिलीभगत का आरोप लगाया और कहा कि ईडी ने फोन टैपिंग और अन्य मामलों में बीआरएस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। उन्होंने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी और बीजेपी नेता बंडी संजय पर भी बीआरएस नेताओं को बचाने का आरोप लगाया।

रेवंत ने यह भी कहा कि उनकी सरकार तेलंगाना को बीआरएस के प्रभाव से मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बीआरएस शासन को '10 वर्षों में 100 वर्षों की तबाही' करार दिया और दावा किया कि उनकी सरकार ने राज्य में स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को बहाल करने की दिशा में काम शुरू किया है।

जाँच का भविष्य क्या?

एसआईटी की जाँच अभी जारी है और प्रभाकर राव जैसे प्रमुख आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई तेज होने की संभावना है। तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी इस मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए एक रिट याचिका के रूप में दर्ज किया है, जिससे इसकी गंभीरता और बढ़ गई है।

यह मामला न केवल तेलंगाना की राजनीति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह निजता के अधिकार और सरकारी शक्तियों के दुरुपयोग जैसे बड़े सवालों को भी उठा रहा है। यदि जांच में और ठोस सबूत सामने आते हैं, तो बीआरएस के लिए यह एक बड़ा झटका हो सकता है, और रेवंत रेड्डी की सरकार को अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल सकता है।