भाजपा प्रत्याशी एसपीएस बघेल केंद्र में स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं। लोग आगरा में स्वास्थ्य सेवाओं पर बात करने की बजाय दिल्ली के स्वास्थ्य सेवाओं और दिल्ली-अगरा की दूरी पर बात करना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। इस बात से आशय यह निकल रहा है कि लोगों को बघेल से स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जो उम्मीदें थी, उस पर बघेल खरे नहीं उतरे। फिर भी बघेल आत्मविश्वास से लबरेज हैं। बघेल का दावा है कि उनके लिए, आगरा की लड़ाई उनकी जीत का अंतर बढ़ाने के बारे में है। जब बघेल से मुद्दों के बारे में पत्रकार पूछते हैं तो उनके पास गिनाने के लिए राष्ट्रीय मुद्दे होते हैं। लेकिन आगरा में अपने योगदान या स्थानीय मुद्दे के बारे में कोई जवाब नहीं होता है।
पेशे से फुटवियर कारोबारी समाजवादी पार्टी के सुरेश चंद्र कर्दम का जोर इस बात पर है कि यह सिर्फ चुनाव नहीं है बल्कि संविधान को बचाने की लड़ाई है। कर्दम, जो समाज के सभी वर्गों से समर्थन प्राप्त करने का दावा करते हैं, की नज़र मूल जाटव वोट बैंक पर भी है और उन्हें विश्वास है कि मुसलमान भी उनके पीछे लामबंद होंगे। सपा प्रत्याशी का पलड़ा जातीय समीकरण के हिसाब से भारी लगता है। अगर जाटव और मुस्लिम उनके समर्थन में आते हैं तो सपा प्रत्याशी मजबूत स्थिति में रहेगा।