इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सख्त निर्देश दिए हैं कि जाति को बढ़ावा देने वाली हर चीज पर रोक लगाई जाए। कोर्ट ने कहा कि पुलिस की FIR, सरकारी दस्तावेजों, गाड़ियों और सार्वजनिक जगहों से जाति का नाम पूरी तरह हटाया जाए। यह फैसला 16 सितंबर 2025 को जज विनोद दिवाकर ने सुनाया। उन्होंने जाति को बढ़ावा देने को 'देश के खिलाफ' बताया और कहा कि संविधान का सम्मान करना ही सच्ची देशभक्ति है।

यह आदेश एक आपराधिक मामले में आया, जिसमें प्रवीण छेत्री नाम के व्यक्ति ने अपनी FIR और केस रद्द करने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने देखा कि FIR में उनकी जाति का जिक्र था। जज ने इसे गलत बताया और कहा कि यह संविधान के खिलाफ है। इससे समाज में भेदभाव और गलत सोच बढ़ती है।
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कोर्ट ने क्या कहा?

जज विनोद दिवाकर ने कहा कि जाति की वजह से समाज में बंटवारा होता है और लोगों में नफरत बढ़ती है। अगर भारत को 2047 तक विकसित देश बनना है, तो जाति की सोच को खत्म करना होगा। कोर्ट ने इसे रोकने के लिए सरकार से सख्त नियम और सामाजिक बदलाव लाने को कहा। डॉ. बी.आर. आंबेडकर के एक भाषण का एक अंश उद्धृत करते हुए कोर्ट ने कहा कि जाति व्यवस्था देश विरोधी है।

कोर्ट ने डॉ. आंबेडकर के कथन का ज़िक्र करते हुए कहा, “भारत में जातियाँ हैं। जातियाँ देश विरोधी हैं। सबसे पहले तो वे सामाजिक जीवन में भेदभाव पैदा करती हैं। वे इसलिए भी देश विरोधी हैं क्योंकि वे एक जाति और दूसरी जाति के बीच ईर्ष्या और दुश्मनी पैदा करती हैं...।”  द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार यह कहते हुए अदालत ने कहा कि अगर भारत को 2047 तक एक सच्चा विकसित राष्ट्र बनना है तो समाज से इस गहरी जड़ जमा चुकी जाति व्यवस्था को खत्म करना बहुत ज़रूरी है। यह टिप्पणी सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन पर सुनवाई के दौरान की गई। इसमें कहा गया था कि एफआईआर और अन्य संबंधित दस्तावेजों में आरोपियों की जाति का उल्लेख किया गया था।
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कोर्ट के मुख्य आदेश

  • पुलिस की FIR, रिकॉर्ड्स और नोटिस बोर्ड से जाति का कॉलम हटाया जाए। पहचान के लिए माता-पिता का नाम इस्तेमाल हो।
  • गाड़ियों पर जाति लिखने या प्रतीक लगाने पर रोक लगे। ऐसा करने वालों पर भारी जुर्माना हो।
  • गांवों या कॉलोनियों में जाति लिखे साइनबोर्ड हटाए जाएं। भविष्य में ऐसा करने पर सख्त कार्रवाई हो।
  • सोशल मीडिया पर जाति को बढ़ावा देने वाली पोस्ट पर रोक लगे और इसके लिए नियम बनाए जाएं।
  • बच्चों को स्कूल में समानता और जाति के नुकसान के बारे में पढ़ाया जाए।
  • सरकार ऐसी जगहें बनाए जहां सभी जातियों के लोग साथ आएं, न कि सिर्फ एक जाति के लिए संस्थान हों।

पुलिस की आलोचना

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक की भी आलोचना की। डीजीपी ने कहा था कि जाति का जिक्र पहचान के लिए जरूरी है, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड, फिंगरप्रिंट जैसे तरीके हैं, फिर जाति लिखने की क्या जरूरत?
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कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों में लोग गाड़ियों, घरों और सोशल मीडिया पर अपनी जाति का खुलकर प्रदर्शन करते हैं। यह गलत है और समाज को बांटता है। खासकर सोशल मीडिया पर युवा जाति को बढ़ावा देने वाली पोस्ट डालते हैं, जो खतरनाक है।

'जाति ताक़त दिखाने का तरीका'

कोर्ट ने कहा कि जाति सिर्फ भेदभाव की बात नहीं, बल्कि यह शक्ति दिखाने का भी तरीका है। सरकार को इसे खत्म करने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे। कोर्ट ने यह आदेश मुख्यमंत्री को भेजने को भी कहा। उन्होंने सरकार से जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए व्यापक कानून और सामाजिक सुधार कार्यक्रम लागू करने की अपील की। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस आदेश की एक प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को जानकारी के लिए भेजी जाए।