ये रैली 12 अप्रैल को राणा सांगा के जन्मदिन पर आगरा आयोजित की गई थी, जिसमें करणी सेना के हजारों लोग शामिल हुए थे। समाजवादी पार्टी के दलित सांसद रामजी सुमन पर दवाब बनाने के लिए करणी सेना ने यह रैली आयोजित की थी। सेना ने इसके लिए "एक डंडा–एक झंडा" का नारा दिया था, यानि इसमें शामिल होने वालों को एक डंडा और झण्डा साथ लेकर आना था पर लोग डंडे तक ही नहीं रुके। बाक़ी हथियार भी साथ ले आए। आप साफ देख सकते हैं किस तरह लोग तलवार और डंडे लहरा रहे हैं।

सबसे ज़रूरी बात, पुलिस के सामने ही यह सब हुआ, लेकिन पुलिस बेबस दिखी। हालांकि यहाँ काफी पुलिसकर्मी और पीएसी की बटालियन शामिल थीं फिर भी पुलिस भीड़ को नियंत्रित नहीं कर पाई। एडिशनल कमिश्नर सहित कई बड़े अधिकारी मौके पर पहुंचे थे। करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने उन्हें देखकर डंडे लहराए और नारेबाजी की। इसके बाद पुलिस को पीछे हटना पड़ा। इस कथित शक्ति प्रदर्शन के जरिए करणी सेना के लोग लगातार दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे कि रामजी सुमन पर कार्रवाई हो क्योंकि रामजी सुमन ने राणा सांगा पर एक बयान दिया था। इस रैली में उत्तेजित भीड़ लगातार नारेबाजी कर रही थी। पुलिस के पहुँचने पर भीड़ और भी आक्रामक हो गई थी। 

करणी सेना के लोगों ने खुलेआम तलवारें तो लहराई ही लेकिन उनके एक नेता ने सपा प्रमुख और प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव को जान से मारने की धमकी दी है। उसकी धमकी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। जिसे आप यहां देख सकते हैं।

राणा सांगा की जयंती के बहाने ज़ोर आजमाने का सिलसिला सांसद रामजी लाल सुमन के एक बयान के बाद शुरू हुआ है। सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने कुछ इतिहासकारों का हवाला देते हुए कहा था कि राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था। इसके बाद करणी सेना के लोग भड़क गये थे। 26 मार्च, 2025 को, करणी सेना के लोगों ने रामजी सुमन के आगर स्थित घर पर हमला किया था। उन्होंने सुमन के घर पर पथराव किया। कारें तोड़ीं, खिड़कियां तोड़ दीं, और कुर्सियां तोड़ डालीं। इस घटना में एक पुलिसकर्मी भी घायल हुआ। 

इस घटना की चारों ओर आलोचना हुई थी। समाजवादी पार्टी ने इसे दलित समुदाय पर हमला बताया। रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा पर दिए अपने बयान के बाद माफी मांगते हुए कहा भी था कि उनका उद्देश्य किसी की भावना को चोट पहुंचाना नहीं था। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने करणी सेना को भाजपा से जुड़ा संगठन बताया था। करणी सेना इस पर भी शांत नहीं हुई। उसके बाद से करणी सेना लगातार रामजी लाल सुमन के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रही है। इस रैली में भी वही मांग उठाई गई है। 

यहाँ ये जानना जरूरी है कि करणी सेना का इतिहास हिंसा से भरा है। 2018 में, करणी सेना ने फिल्म "पद्मावत" के खिलाफ भी हिंसक प्रदर्शन किए थे। 12 अप्रैल की रैली में भी हिंसा की आशंका थी। करणी सेना ने पहले ही धमकी दी थी कि वे आयोजन करेंगे, चाहे अनुमति मिले या न मिले। उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष राज शेखावत ने कहा था कि अगर मांगें पूरी न हुईं, तो वे सुमन के घर की ओर कूच करेंगे।

इन धमकियों को देखते हुए आगरा पुलिस ने कुछ इंतजाम भी किए थे। पुलिस ने अतिरिक्त 1200 हेलमेट और 1000 डंडे मंगवाए । ड्रोन से निगरानी हुई। संवेदनशील इलाकों में बैरिकेडिंग की गई फिर भी, पुलिस बेबस दिखी। रैली से पहले सांसद सुमन के घर के बाहर सुरक्षा बढ़ाई गई। यहाँ तक कि 11 अप्रैल को तेज आंधी से करणी सेना के टेंट उखड़ गए, लेकिन आयोजन रुका नहीं। 

भीड़ के इस तरह उग्र होने पर भी प्रशासन की चुप्पी सवाल खड़े करती है। यहाँ सवाल उठता है, करणी सेना की हिंसक हरकतों को देखते हुए पहले सख्त कदम क्यों नहीं उठाए गए? 26 मार्च के हमले के बाद करणी सेना के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई? क्या प्रशासन की नरमी करणी सेना को बढ़ावा दे रही है।

इस दौरान सोशल मीडिया पर भी कई प्रतिक्रियाएं आई हैं। लोगों ने वायरल वीडियो क्लिप को देखकर कई सवाल उठाए हैं। कई लोगों ने इसे जान बूझकर उपद्रव करे की कोशिश बताई है। वहीं एक यूज़र ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए यह भी पूछा है, क्या किसानों को ऐसा करने की छूट मिलती?