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फ़ोटो साभार: ट्विटर/वीडियो ग्रैब

नमामि गंगे के प्रमुख ने ही माना- गंगा में बहाए गए थे कोरोना मृतकों के शव

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान संक्रमण से मारे गए लोगों के शव गंगा नदी में बहाए जाने की रिपोर्टों को सरकार भले ही खारिज करती रही हो, लेकिन अब नमामि गंगे के प्रमुख ने ही यह मान लिया है। उन्होंने यह बात एक किताब में लिखी है। गुरुवार को लॉन्च हुई उस नई किताब के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा 'मृतकों के लिए आसान डंपिंग ग्राउंड' बन गई थी। इसमें यह भी कहा गया है कि यह समस्या यूपी तक ही सीमित थी।

इसको लेकर राहुल गांधी ने ट्वीट कर सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट में लिखा, 'गंगा की लहरों में कोविड मृतकों के दर्द का सत्य बह रहा है जिसे छुपाना संभव नहीं।'

राहुल ने इस ट्वीट से योगी सरकार के उस दावे पर हमला किया है जिसमें वह कहती रही थी कि न तो गंगा में कोविड मृतकों के शव बहाए गए हैं और न ही इसके किनारों पर रेत में दफनाए गए हैं। इसको लेकर कई वीडियो और तसवीरें सामने आईं। अलग-अलग मीडिया में कई रिपोर्टें छपीं। 'दैनिक भास्कर' ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि यूपी के 27 ज़िलों में गंगा किनारे 2 हज़ार से ज़्यादा शव मिले थे। देश के दूसरे मीडिया संस्थानों ने भी इस पर रिपोर्ट छापी। न्यूयॉर्क टाइम्स ने रेत में दफनाए गए सैकड़ों शवों की तसवीर के साथ ख़बर छापी थी। 

इसी को लेकर लगातार सवाल उठाए जाते रहे कि क्या यूपी में कोरोना से मौत के मामलों की कम गिनती हुई? सवाल तो ये भी उठते रहे कि अस्पतालों में जगह कम क्यों पड़ी और मरीजों को ऑक्सीजन समय पर क्यों नहीं मिला? हालाँकि, योगी सरकार ने दावा किया है कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी से किसी मरीज़ की मौत नहीं हुई है।

सरकार के ऐसे दावों के बीच ही यह किताब आई है जिसका शीर्षक है- 'गंगा: रीइमेजिनिंग, रिजुवेनेटिंग, रीकनेक्टिंग'। इस पुस्तक को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक और नमामि गंगे के प्रमुख राजीव रंजन मिश्रा और एनएमसीजी के साथ काम कर चुके आईडीएएस अधिकारी पुस्कल उपाध्याय ने लिखा है।

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राजीव रंजन मिश्रा 1987 बैच के तेलंगाना कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और वह 31 दिसंबर, 2021 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। पुस्तक को गुरुवार को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय द्वारा लॉन्च किया गया था।

इस किताब के एक खंड में 'फ्लोटिंग कॉर्प्स: ए रिवर डिफाइल्ड' शीर्षक से लिखा गया है कि महामारी का गंगा पर कैसा प्रभाव पड़ा। इसमें कहा गया है कि नदी को बचाने के लिए पांच साल में किया गया गहन काम कुछ ही दिनों में ख़त्म होकर पहले जैसे होता दिख रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार किताब में लिखा गया है, 'जैसा कि कोरोना महामारी के कारण शवों की संख्या काफ़ी बढ़ गई और कई गुना ज्यादा हो गई तो जिला प्रशासन और यूपी व बिहार के श्मशान और शवों को जलाए जाने वाले घाटों की क्षमता कम पड़ गई। इसका नतीजा यह हुआ कि गंगा मृतकों के लिए एक आसान डंपिंग ग्राउंड बन गई।' हालाँकि, इस किताब में दावा किया गया है कि 300 से ज़्यादा शव नहीं बहाए गए थे, 'न कि जिस तरह की 1000 से ज़्यादा शव की रिपोर्ट दी गई थी'।

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पुस्तक के कुछ अंश यह स्पष्ट करते हैं कि वे मिश्रा द्वारा लिखे गए थे। इसमें कहा गया है, 'टेलीविज़न चैनल, पत्रिकाएं, समाचार पत्र और सोशल मीडिया साइट्स भयानक तसवीरों और शवों को नदी में फेंके जाने की कहानियों से भरे थे। यह मेरे लिए एक दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था। एनएमसीजी के महानिदेशक के रूप में, मेरा काम गंगा के स्वास्थ्य का संरक्षक बनना है, इसके प्रवाह को फिर से जीवंत करना है, इसकी प्राचीन शुद्धता की ओर लौटना सुनिश्चित करना है...।'

यूपी में कुछ समुदायों के बीच नदियों के किनारे मृतकों को दफनाने की परंपरा पर चर्चा करते हुए पुस्तक में लिखा गया है, 'तैरती लाशें या किनारे पर दफन किए जाने वाले शव नदी के पास रहने वाले लोगों के लिए असामान्य बात नहीं हैं... हालाँकि, बढ़ती संख्या और भयावह तसवीरों ने संकट की भयावहता को बढ़ा दिया... अस्पताल में रहने के दौरान मुझे इस मामले की तात्कालिकता का एहसास हुआ।'

इसके अलावा किताब में यह भी दावा किया गया है कि समस्या केवल यूपी (कन्नौज और बलिया के बीच) तक ही सीमित थी, और बिहार में पाए गए शव भी यूपी से तैर कर पहुँचे थे।

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क़मर वहीद नक़वी
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