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बलिया में धड़ल्ले से कैसे चल रहा है नकल का धंधा?

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का अंग्रेजी पेपर लीक मामला आजकल खूब चर्चा में है। पुलिस के दावे के मुताबिक  इस मामले  का 'मास्टर माइंड' महाराजी  इंटर कालेज  के प्रबंधक निर्भय नारायण सिंह को  गिरफ्तार कर लिया गया है। अब तक इस मामले में कुल 46 लोगों की गिरफ्तारी  हो चुकी हैं।

जिनमें दो  स्थानीय पत्रकार-  दिग्विजय सिंह और अजित ओझा भी शामिल हैं- जिनका गुनाह महज इतना था कि वे जनहित में जिलाधिकारी बलिया को लीक पेपर भेजे थे।उनके के अलावा चर्चित जिला विघालय निरीक्षक की गिरफ्तारी भी हुई है। 

उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) अधिनियम1988की  धारा-4/10 के तहत जिलाधिकारी अथवा जिला विद्यालय निरीक्षक को लीक पेपर की सूचना देना आपराधिक कृत्य की श्रेणी में नहीं आता। सवाल है कि फिर इन पत्रकारों की गिरफ्तारी कहां तक वाजिब है?

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संस्कृत का पेपर भी लीक

जानकारी के मुताबिक पिछले 28 मार्च को संस्कृत का पेपर भी लीक हुआ। यह जानकारी भी जिलाधिकारी को  इन गिरफ्तार पत्रकारों के जरिये ही हासिल हुई। ये पत्रकार सच को उजागर कर पत्रकारिता के उच्च मानदण्ड को स्थापित कर रहे थे। अपने व्हाट्सएप के जरिये लीक पेपर को किन्हीं  छात्र समूहों अथवा किसी कोचिंग संस्थान को शेयर नहीं किये? फिर अंग्रेजी का पेपर तो 24 जिलों में रद्द कर दिया गया। पर संस्कृत के पेपर का क्या हुआ?  

कुछ साल पहले ही  भदोही-जौनपुर  जिलें के कई शातिर माइंड  अपराधी मेडिकल-इंजीनियरिंग के ऐसे ही पेपर लीक मामले में पकड़े गए। उसकी जांच का क्या हुआ? पिछले ही साल बीएचयू के मेडिकल परीक्षा में कुछ' मुन्ना भाई' दूसरे  छात्र के नाम पर परीक्षा देते पकड़े गए, क्या ऐसे मुन्ना भाईयों के विरुद्ध कोई ऐसी सजा हुई- जिससे ऐसे मामलों को अंजाम देने वालों को कोई सबक मिलें?

आखिर ऐसे मामलें थम क्यों नहीं रहे हैं?  क्या शासन को इस बात  की फिक्र है कि बनारस-इलाहाबाद जहां एक ओर मेडिकल, इंजीनियरिंग और  सिविल सर्विसेज समेत कई परीक्षाओं के 'हब'बन रहे हैं। आसपास के कई राज्यों के होनहार छात्र सुनहले भविष्य के सपने संजोये अपना 'कैरियर' बनाने  की गर्ज  से कई नामचीन कोचिंग संस्थानों में लाखों खर्च कर दाखिला ले रहे हैं। किसी भी परीक्षा  के एक 'पेपर लीक' होने से  इस गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में इन बच्चों का भविष्य, कड़ी मेहनत और माँ-बाप की  गाढ़ी कमाई, और इन छात्रों के सपने  क्षणभर में  मटियामेट हो  जा रहे हैं?

इन सवालों के दायरे में अगर बलिया  में 'पेपर लीक' घोटाले को समझने की कोशिश करें तो कई खामियां समझ में आएंगी। पहली बात तो यह की बलिया समेत पूर्वांचल के कई जिलों में पेपर लीक का यह कोई पहला और नया मामला नहीं है। इसका एक संगठित 'नेट वर्क' पिछले कई सालों से सक्रिय हैं। इसमें शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी, कोचिंग सेंटर चलाने वाले मालिकान, विद्यालयों से  जुड़े प्रबंधक जुड़े हैं।

बलिया में अस्सी के दशक से 'पर्चा आउट' के मामले सामने आने लगे थे। नब्बे के दशक में ऐसे मामलें परवान चढ़े। आज आलम यह है कि पड़ोसी राज्य बिहार, उड़ीसा, बंगाल और यहां तक  नेपाल के छात्र नकल के जरिये हाईस्कूल -  इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे अंको से प्राप्त करने के लिए यहां दाखिला लेते हैं। इन परदेशी छात्रों की विद्यालयों  की  कक्षा में उपस्थिती- पढ़ाई जरूरी नहीं।

वे महज मान्यता प्राप्त विघालयों के प्रबंधन -प्रधानाध्यापकों  और शिक्षा विभाग के  भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से परीक्षा पास करने के मकसद से दाखिला लेते हैं। ऐसे परदेसी छात्रों की संख्या लाखों में हैं। क्या  ऐसे मामलों के रोकथाम के कोई मुकम्मिल व्यवस्था की गयी? अब तक तो नहीं।

बलिया सिर्फ नकल के मामले में ही बदनाम नहीं है। अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से अध्यापकों की नियुक्ति की जांच की जाए, तो कई हैरतअंगेज मामले सामने आएंगे- जो शायद शासन-प्रशासन की आँख खोल दें।

बलिया से अध्यापकों की नियुक्तियों की अनियमितओं से सम्बंधित इतने मामलें आते थे कि ऐसे मामलों की जाँच के लिए न्यायधीश अरुण टंडन को 'बलिया बंच' के तहत सुनवाई का आदेश देना पड़ा। इसके अलावा बलिया शहर में एक 'बहेरी कोर्ट' का फरमान भी धड़ल्ले से चलता है। इस कोर्ट के संचालन में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक स्वनामधन्य वकील, बलिया के शिक्षा विभाग के अधिकारी, जिले के शिक्षा से जुड़े सफेदपोश माफिया, कुछ स्थानीय वकील और कर्मचारी शामिल होते रहे हैं।

इन शातिर दिमाग गिरोह का नेटवर्क एक अरसे से  जिला प्रशासन के नाक के नीचे काम करता है। अबतक प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन इस नेटवर्क को  तोड़ने में नाकाम साबित हुआ हैं। इनका धंधा यह है कि स्कूल प्रबंधकों से मिलकर दो साल-तीन साल पहले की नियुक्तियां दिखाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से अथवा 'बहेरी कोर्ट' के आदेश से दो -तीन साल पहले  का भुगतान करवाते हैं।

ऐसे मामलों की जांच हों तो, ऐसे सैंकड़ों मामले अकेले बलिया में पकड़ में आ सकते हैं। पर ऐसे कोर्ट के आदेश भी रसूखदार लोगों के लिए ही लागू होते हैं। इन दबंग शिक्षा माफियाओं की दबंगई का आलम यह है कि बलिया में नियुक्त जो जिला विघालय निरीक्षक इनकी मनमानी पर रोक लगाने की कोशिश करता हैं-उनके हाथ पैर तोड़ दिये जाते हैं। सरकार उनके सुरक्षा का कोई इंतजाम  तक नहीं करती है।

UP Board Paper Leak balia 2022  - Satya Hindi

काली कमाई का गढ़

ऐसे ही एक मामले में जिला विघालय निरीक्षक रहें रामाज्ञा राय के पैर तोड़ दिये गये। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील को (जो अखिलेश यादव की सरकार में) एडिशनल एडवोकेट जनरल रहें-बलिया स्टेशन पर हाथ तोड़ दिया गया। शिक्षा विभाग की मनमानी पर रोक नहीं लग पाया। बलिया में हर जिला विघालय निरीक्षक की नियुक्ति को सजा के तौर पर  ही देखा जाता है।

पर शिक्षा की  अकूत काली कमाई की संभावना वाले इस जिले में अपना जान और कैरियर जोखिम  में डालकर हर जिला विघालय निरीक्षक की कोशिश होती हैं कि कानून और कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर  इस काली कमाई के किसी अवसर को हाथ से न निकलने दें।अगर यहीं मामला किसी गरीब-दलित से जुड़ा हो तो- कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने में भी इन्हें कोई हिचक नहीं होती है। एक ऐसा ही मामला आदर्श इंटर कॉलेज नरही बलिया का है।

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भृगुनाथ राम इस कालेज में चपरासी है। आज भी उनके कंधे पर बोर्ड  परीक्षा की कापियां और पर्चें  लादकर भेजा जाता है। महज 1500 रुपये की महीने की नौकरी पर कार्यरत्त है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (बहेरी कोर्ट से अलग )  ने आदेश दिया है कि उनका भुगतान किया जाय। पर 'कोर्ट ऑफ कंटेप्ट' के तीन महीने बीतने के बाद और गिरफ्तार जिला विघालय निरीक्षक और इसके पहले के जिला विघालय निरीक्षक ने भी कोर्ट के आदेश को तालिम करने नहीं करा पाएं।

वजह साफ है कि भृगुनाथ राम वह करने  में अक्षम है- जो जिला विद्यालय निरीक्षक की ऐसे  मामलों न्यूनतम माँग होती है। इसलिए उनका मामला अब तक लटका है। क्या अनुसूचित जाति आयोग ऐसे मामलों की जाँच करने को तैयार है? 

यह बेहद दुख और शर्मिंदगी की बात हैं कि शिक्षा विभाग ऐसे कारनामों से बलिया आज पूरे देश में बदनाम हो रहा है। वह बलिया- जिनके पुरखों ने 1857 की क्रांति, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की  अगुवाई की। जहां  आचार्य बलदेव उपाध्याय,  हजारी प्रसाद  द्विवेदी, कृष्ण देव उपाध्याय, परशुराम चतुर्वेदी, भैरव प्रसाद गुप्त, अयोध्या प्रसाद खत्री, पंडित रघुनाथ शर्मा,  भगवती शरण उपाध्याय और नयी पीढ़ी के  अमरकांत , कृष्ण बिहारी मिश्र, कवि केदारनाथ सिंह जैसे दार्शनिक संस्कृत साहित्य, ज्योतिष और लोक साहित्य के  मर्मज्ञ, कालजयी उपन्यासकार, लेखक और कवि पैदा किया। 

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मोहन सिंह
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