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प्रतीकात्मक तसवीर।

यूपी: पुलिस ने की बर्बरता, मुज़फ़्फरनगर में मौलाना को नंगा करके पीटने का आरोप

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद कई इलाक़ों से पुलिस की ज़्यादती की ख़बरें आ रही हैं। क़ानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाली पुलिस के कुछ अफ़सरों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर से लेकर मुज़फ़्फरनगर तक ऐसी बर्बरता की है, जिसे सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए। इन इलाक़ों में पुलिस की बर्बर कार्रवाई के ऐसे कई वीडियो सामने आए हैं जिनमें कुछ पुलिसकर्मियों ने मुसलिम समुदाय के घरों में घुसकर बुजुर्गों और महिलाओं को बेरहमी से पीटा है। 

मौलाना असद को बेरहमी से पीटा

मुज़फ़्फरनगर में पुलिस के द्वारा अत्याचार करने की कई घटनाएं हुई हैं। ऐसी ही एक और दिल दहलाने वाली घटना सामने आई है। अंग्रेजी अख़बार ‘द टेलीग्राफ़’ के संवाददाता ने मुज़फ़्फरनगर में ऐसे ही कुछ पीड़ित लोगों से बात की है। 66 साल के मौलाना असद राज़ा हुसैनी भी इनमें से एक हैं। मौलाना के दोनों हाथों और दोनों पाँवों में पट्टियां बंधी हुई हैं। वह सोते हुए ही सुबकते हैं और अपना चेहरा भी छुपाने की कोशिश करते हैं। इसका कारण पूछने पर उनके परिजन कहते हैं कि कुछ पुलिस कर्मियों ने उन्हें हिरासत में नंगा करके पीटा और बुरी तरह प्रताड़ित किया है और वह इस अपमान के कारण लगे सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं। 

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‘द टेलीग्राफ़’ के मुताबिक़, पुलिस ने मौलाना के सादात हॉस्टल और अनाथालय के 100 छात्रों को भी हिरासत में लिया और उन्हें भी पीटा। स्थानीय लोगों ने अख़बार के संवाददाता को बताया कि इसमें से कई नाबालिग हैं और कई अनाथ भी हैं। मौलाना असद सादात मदरसे में टीचर और अनाथालय के केयरटेकर की जिम्मेदारी संभालते हैं। 

20 दिसंबर को जब नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हुई थी तो पुलिस ने मौलाना असद को हॉस्टल में घुसकर लाठियों से पीटा था और उन्हें घसीटते हुए बाहर ले गई थी। पुलिस हिरासत से छूटने के बाद मौलाना असद ने अपने परिजनों को बताया कि उन्हें एक अंधेरे कमरे में 24 से ज़्यादा घंटे तक बंद करके रखा गया, जहाँ उन्हें कड़कड़ाती सर्दी में नंगा करके पीटा गया। 

इसी के बगल में दूसरे कमरे में हॉस्टल के 14 से 21 साल के छात्रों को रखा गया। जहां उन्हें गालियां दी गईं, लाठियों से पूरी रात पीटा गया और दीवार से सटकर घुटनों के बल बैठने को मजबूर किया। ‘द टेलीग्राफ़’ को यह जानकारी आसपास के उन लोगों से मिली जिन्होंने रिहा होने के बाद इन छात्रों से बात की थी। 

पूर्व सांसद सैदुज्ज़ामन सईद के बेटे और स्थानीय कांग्रेस नेता सलमान सईद ने कहा, ‘इन छात्रों को कई बार टॉयलेट तक नहीं जाने दिया गया और उन्हें इतना पीटा गया कि वे जब छूटे तो वे ख़ून से लथपथ थे।’ सईद ने कहा कि कुछ छात्रों को जबरदस्ती ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए भी मजबूर किया गया।

सईद ने कहा कि 20 दिसंबर के प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने उनके फ़ार्म हाउस और कार में तोड़फोड़ की। उन्होंने बताया कि मदरसे के छात्रों को गालियां दी गईं, उन्हें सोने नहीं दिया गया, पानी और खाना तक नहीं दिया गया और पुलिस ने वकीलों को इन छात्रों को देखने तक की अनुमति नहीं दी। सईद कहते हैं कि 27 दिसंबर को शुक्रवार की नमाज़ के बाद स्थिति शांतिपूर्ण रही। पुलिस ने 90 छात्रों को रिहा कर दिया है। 10 छात्रों को दंगा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था, वे अभी न्यायिक हिरासत में हैं। 

मौलाना असद की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहद प्रतिष्ठा है। मुसलिम समुदाय के लोगों के दबाव के बाद 21 दिसंबर को पुलिस ने उन्हें रिहा किया। मौलाना असद के एक रिश्तेदार ने संवाददाता से कहा, ‘जब मैं उन्हें लेने पहुंचा तो देखा कि वह हाथ तक नहीं उठा पा रहे थे और दर्द से कराह रहे थे। हम बहुत मुश्किल से उन्हें घर लेकर आये। असद के पूरे शरीर पर चोट के निशान हैं।’ 

रिश्तेदार ने कहा कि मौलाना के साथ बर्बरता की गई है और जब उन्होंने अपने साथ हुए अत्याचार की कहानी बताई तो परिवार के लोग चीख उठे। मौलाना ने परिवार के लोगों को बताया कि पुलिस ने उन्हें इतना पीटा कि उन्हें लगा कि इससे अच्छा तो वह मर जाएं।

पुलिस के ख़ौफ़ में जी रहे लोग 

जब संवाददाता मीनाक्षी चौक के पास रहने वाले मौलाना असद के घर पहुंचा तो पहले परिजनों ने डर के कारण उनसे बात करने से मना कर दिया था। परिजनों ने बताया कि पुलिस ने उनसे कहा है कि वे किसी से इस बारे में बात न करें। परिजनों ने कहा कि इस पूरे इलाक़े में रहने वाले मुसलिम समुदाय के लोग बुरी तरह डरे हुए हैं। कोई नहीं जानता कि पुलिस कब उनके घरों पर छापा मार दे और तोड़फोड़ कर दे। 

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मौलाना के परिवार की एक सदस्य ने संवाददाता से कहा, ‘आप हमारे बारे में लिखेंगे और दिल्ली चले जाएंगे लेकिन हमें अपने बच्चों के साथ यहां रहना है। हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब हम अपना मुंह नहीं खोल सकते और अपना दुख नहीं बता सकते।’ 

जब संवाददाता ने उनसे यह पूछा कि क्या उन्होंने जिले के किसी वरिष्ठ अधिकारी से पुलिस के ख़िलाफ़ शिकायत की तो उन्होंने कहा कि जब पुलिस और सरकार दोनों अत्याचारी बन जाएंगे तो हम किसके पास जाएं। ‘द टेलीग्राफ़’ के संवाददाता ने इस बारे में बात करने के लिए जिले के कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को फ़ोन मिलाया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 

मुसलिम इलाक़ों में की तोड़फोड़

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ मुज़फ़्फरनगर में हुए प्रदर्शन को स्थानीय निवासी मोहम्मद सत्तार ने देखा था। सत्तार कहते हैं कि 20 दिसंबर को नमाज़ के बाद दोपहर 2 बजे लोग मीनाक्षी चौक पर जुटना शुरू हो गए थे। मीनाक्षी चौक मौलाना असद के मदरसे से 500 मीटर दूर है। उन्होंने बताया कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण था लेकिन शाम को 3.45-4 बजे अचानक पत्थर चलने लगे। किसी को नहीं पता चला कि ऐसा किसने किया और लोग भागने लगे। सत्तार बताते हैं कि इसके बाद पुलिस ने मुसलिम इलाक़ों में दुकानों में तोड़फोड़ करनी शुरू कर दी। 

घर से उठा लेने की धमकी दे रही पुलिस 

पुलिस की इस बर्बरता के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में लोग आवाज़ उठाने से भी डर रहे हैं। क्योंकि पुलिस सोशल मीडिया पर भी नज़र रख रही है और उसकी आलोचना करने वाली ख़बरों को शेयर करने वालों को घर से उठाने की धमकी दे रही है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों पर पुलिस ने कहर बरपाया है। हज़ारों अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करके पुलिस अपनी दहशत कायम करना चाहती है। 

पुलिस को मिली 'कार्रवाई' की छूट

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उपद्रवियों से सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुक़सान का ‘बदला’ लेने की बात कही थी। इसके बाद पुलिस ने कई इलाक़ों में मुसलिम समुदाय के लोगों के घरों में घुसकर तोड़फोड़ की और उन्हें बेरहमी से पीटा। 

मुख्यमंत्री के कार्यालय की ओर से कुछ ट्वीट ऐसे आये जिनमें यह कहा गया था कि दंगाईयों के ख़िलाफ़ मुख्यमंत्री के रौद्र रूप को देख हर उन्मादी यही सोच रहा है कि उन्होंने योगी की सत्ता को चुनौती देकर बहुत बड़ी ग़लती कर दी है और उपद्रवियों ने अपना अंजाम देख लिया है। इसके बाद यह माना गया कि पुलिस को कार्रवाई के नाम पर कुछ भी करने की छूट मिली हुई है। जैसा हमने लखनऊ, कानपुर और प्रदेश के अन्य हिस्सों में देखा जहां कार्रवाई के नाम पर सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में डाल दिया गया है और संगीन धाराओं में मुक़दमे लाद दिये गये हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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