यूपी के एसआईआर का सबसे ज्यादा इंतज़ार है। लेकिन चुनाव आयोग ने विशेष मतदाता सूची के मसौदे का प्रकाशन 6 जनवरी, 2026 तक स्थगित कर दिया है। लगभग 2.89 करोड़ नाम (18.7%) हटने की आशंका है।
चुनाव आयोग ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के ड्राफ्ट मतदाता सूची के प्रकाशन को बुधवार से स्थगित कर 6 जनवरी कर दिया है। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त अंतिम आंकड़ों के अनुसार, स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) के तहत राज्य में लगभग 2.89 करोड़ मतदाताओं के नाम हटाए जाने की संभावना है, जो कुल मतदाताओं का 18.70 प्रतिशत है।
यह उत्तर प्रदेश में एसआईआर कार्यक्रम में तीसरा बदलाव है, जो 27 अक्टूबर से 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू हुआ था। उत्तर प्रदेश में नाम हटाने की संख्या सबसे अधिक है, जबकि तमिलनाडु (15 प्रतिशत) और गुजरात (14.5 प्रतिशत) में क्रमशः दूसरा और तीसरा स्थान है।
नाम हटाने के मुख्य कारण मृतक मतदाता, स्थानांतरित/अनुपस्थित मतदाता या एक से अधिक जगहों पर पंजीकृत नाम हैं। विपक्षी समाजवादी पार्टी सहित किसी भी दल ने अभी तक इसमें किसी अनियमितता की शिकायत नहीं की है।
उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा ने बताया कि ड्राफ्ट रोल के प्रकाशन में देरी का कारण 15,030 नए बूथों का बनाया जाना है। मतदाताओं के नाम नए बूथों पर ट्रांसफर किए जाएंगे, पार्ट नंबर आवंटित होंगे, बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) नियुक्त किए जाएंगे और 6 जनवरी को नए बूथों पर भी मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
23 दिसंबर को चुनाव आयोग ने प्रति बूथ 1,200 मतदाताओं को मंजूरी दी थी। पहले 2024 में 1,500 मतदाताओं के आधार पर बूथ थे, जिनकी संख्या 1.62 लाख थी। अब नए बूथों के बाद बूथों की कुल संख्या बढ़कर 1.77 लाख हो गई है।
नए कार्यक्रम के अनुसार, ड्राफ्ट मतदाता सूची 6 जनवरी को प्रकाशित होगी। दावे और आपत्तियां 6 जनवरी से 6 फरवरी तक स्वीकार की जाएंगी। नोटिस जारी करने और दावों का निपटारा 6 जनवरी से 27 फरवरी तक होगा तथा अंतिम मतदाता सूची 6 मार्च को प्रकाशित की जाएगी। पहले ड्राफ्ट 31 दिसंबर को था और अंतिम सूची 28 फरवरी को।
एसआईआर के पहले चरण में मतदाताओं से एनुमरेशन फॉर्म जमा करने की प्रक्रिया 26 दिसंबर को समाप्त हुई। इसके बाद करीब 2.89 करोड़ (कुल 15.44 करोड़ मतदाताओं में से 18.70 प्रतिशत) नाम हटाने के लिए चिह्नित हैं, क्योंकि उनके फॉर्म नहीं जमा हुए।
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि शहरी जिलों में नाम हटाने की संख्या अधिक है। शीर्ष 10 जिलों में लखनऊ (12 लाख या 30 प्रतिशत), प्रयागराज (11.56 लाख या 24.64 प्रतिशत), कानपुर नगर (9 लाख या 25.5 प्रतिशत), आगरा (8.36 लाख या 23.25 प्रतिशत), गाजियाबाद (8.18 लाख या 28.83 प्रतिशत), बरेली, मेरठ, गोरखपुर, सीतापुर और जौनपुर शामिल हैं।
शहरी क्षेत्र भाजपा के गढ़ माने जाते हैं। भाजपा नेता ने कहा, “हम 2027 चुनावों से पहले नए मतदाताओं पर फोकस करेंगे। अनुमान है कि 2027 तक करीब 50 लाख नए लोग वोटर बन जाएंगे।”
राजनीतिक दलों का कहना है कि हटाए जा रहे नाम किसी विशेष जाति, धर्म या दल के समर्थकों के नहीं हैं। समाजवादी पार्टी के लखनऊ महानगर अध्यक्ष फाकिर सिद्दीकी ने कहा, “शहरों में पढ़ाई-नौकरी के लिए रहने वाले लोगों के नाम एक से अधिक जगहों पर थे। कई ने एक जगह ही रखने का विकल्प चुना। इसलिए लखनऊ में यह संख्या अधिक है।”
सपा ने अपने बूथ लेवल एजेंट्स को अनुपस्थित मतदाताओं की तलाश कर नए पंजीकरण के लिए फॉर्म भरवाने के निर्देश दिए हैं। प्रयागराज में सपा नेता सैयद इफ्तेखार हुसैन ने कहा कि शहरी विधानसभा सीटों पर अधिक संख्या इसलिए है, क्योंकि लोग ग्रामीण पते पर पंजीकरण रखना पसंद कर रहे हैं।
भाजपा के कानपुर महानगर अध्यक्ष शिवम सिंह ने कहा, “अनुपस्थित मतदाताओं की संख्या अधिक है। ड्राफ्ट रोल का विश्लेषण कर वास्तविक मतदाताओं तक पहुंचेंगे और हर पात्र व्यक्ति को मतदाता बनाएंगे।”
चुनाव आयोग के इस कदम से 2027 विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची में बड़े बदलाव की उम्मीद है। हालांकि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 4 करोड़ नाम कटने जा रहे हैं और ये सभी बीजेपी के मतदाता हैं। योगी ने यह बयान और तथ्य किस आधार पर बताए थे, इसकी जानकारी उन्होंने नहीं दी। लेकिन सूत्रों का कहना है कि ड्राफ्ट मतदाता सूची को लेकर सबसे ज्यादा शिकायतें बीजेपी की तरफ से ही आई हैं। समझा जाता है कि बीजेपी की संतुष्टि न होने की वजह से चुनाव आयोग ने बार-बार यूपी की तारीख बदली है।