समाजवादी नेता और 9 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने वाले स्वतंत्रता सेनानी जीजी पारीख से अंबरीश कुमार की ख़ास बातचीत का अंश।
पारीख : यह उस समय का देश का माहौल था। लोग आज़ादी की बात करते थे। जेल जाने की बात करते थे। इस सबका असर मेरे ऊपर भी पड़ा। गांधी और कांग्रेस की हवा बह रही थी जिसका असर मेरे घर पर भी पड़ा।
पारीख: एआईसीसी का मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन का जो सेशन हुआ उसमें एक वालंटियर के रूप में मैं भी शामिल हुआ था। अन्य नेताओं के साथ महात्मा गांधी मंच पर थे। उनके भाषण से प्रभावित हुआ और फिर इस आंदोलन का हिस्सा बन गया।
पारीख: मैं सोशलिस्ट पार्टी में हमेशा विभाजन के ख़िलाफ़ रहा। इस मामले में डॉ. राम मनोहर लोहिया से भी सहमत नहीं था। हमें जोड़ना चाहिए तोड़ना नहीं।
पारीख: मैं खुद गुजरात से हूँ पर पचास साठ के दशक में मुंबई के कल कारखानों में जिस तरह मराठी लोगों की उपेक्षा हुई उसी से यह सब शुरू हुआ। जो पहल समाजवादियों को करनी चाहिए थी उसे बाल ठाकरे ने किया और वे कामयाब भी हुए। नौकरी में जब स्थानीय लोगों की हिस्सेदारी नहीं होगी तो यह सब होगा।
पारीख: इन सब जनहित के कामों में काफ़ी पैसा लगता है। कुछ हमारे अपने संसाधनों से मिलता है तो ज़्यादा हिस्सा जनता से मांगता हूँ। हर साल क़रीब दो करोड़ का ख़र्च आता है जो मांग कर इकट्ठा करता हूँ।
पारीख: अभी भी बहुत उम्मीद है। हमने कई बदलाव देखे हैं और फिर बदलाव होगा।