कोठे से शुरू हुई तवायफ़ों की गायिकी के 104 वर्ष के इतिहास को पहली बार कल शाम यहाँ नृत्य नाटिका के ज़रिये पेश किया गया। इस इतिहास में उनक़ा दर्द, संघर्ष, बुलंदी, शोहरत, गुरबत, देशभक्ति, समाज सेवा और मानवता तथा करुणा को भी दिखाया गया।

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सी डी देशमुख हाल में आयोजित इस समारोह में गौहर जान से असगरी बाई तक 33 भूली बिसरी तवायफ़ गायिकाओं को मंच पर एक बार फिर से नृत्य संगीत के ज़रिये साकार किया गया। चर्चित नृत्यांगना सोमा बनर्जी के नेतृत्व में 30 से अधिक कलाकारों ने इस ऐतिहासिक यात्रा को स्वर और दृश्य में मंच पर पेश किया।

1902 में गौहर जान की पहली ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग से लेकर जानकी बाई, बिब्बो, रसूलन बाई, तमंचा जान, रतन बाई, छमिया बाई, दिलीपा बाई, विद्याधरी, हुस्ना जान, ढेला बाई, अख्तरी बाई तक को इस नृत्य-नाटिका में दिखाया गया है।
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इस अवसर पर प्रख्यात कवि संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने संगीत में स्त्री सशक्तीकरण पर प्रथम रामेश्वरी नेहरू स्मृति लेक्चर दिया।

रामेश्वरी नेहरू की 140वीं जयंती की पूर्व संध्या और प्रख्यात कवि पत्रकार रघुवीर सहाय की 96वीं जयंती के मौके पर आयोजित इस समारोह में श्री वाजपेयी ने कहा कि संगीत की दुनिया में स्त्रियों को अपनी पहचान बनाने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा क्योंकि उनपर तत्कालीन पितृसत्तात्मक समाज की बहुत बंदिशें थीं। वे कोठे से लेकर रईसों राजे-रजवाड़े के निजी महफिलों में गाती रहीं।

पद्म भूषण रामेश्वरी नेहरू 1942 के आंदोलन में जेल गयी थीं और 1909 से प्रकाशित स्त्री दर्पण पत्रिका की संपादक थी तथा मोतीलाल नेहरू के भाई की बहू थीं।

रामेश्वरी नेहरू स्मृति लेक्चर

स्त्री दर्पण, ड्रीम फाउंडेशन और द परफॉर्मिंग आर्ट ट्राइब्स द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस समारोह में बनारस घराने की गायिका मीनाक्षी प्रसाद ने कहा कि उन्नीसवीं सदी के मध्य में ये तवायफ़ गायिकाएं देश की सबसे बड़ी टैक्स पेअर थीं। इतना ही नहीं आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया और गांधी जी ने भी उनकी मदद ली थी।

समारोह में वरिष्ठ कवि और पत्रकार विमल कुमार की पुस्तक तवायफनामा पर आधारित 33 भूली बिसरी शास्त्रीय गायिकाओं के जीवन इतिहास उनके संघर्ष और बुलन्दियों पर सोमा बनर्जी द्वारा निर्देशित डांस ड्रामा भी पेश किया गया तथा तीन पुस्तकों और स्त्री लेखा के नए अंक का लोकार्पण भी किया गया।

वाजपेयी ने प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक संगीत में स्त्रियों की भागीदारी का जिक्र करते हुए कहा कि ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के हाथों में वीणा है। यह इस बात का प्रमाण है कि स्त्रियां आदिकाल से संगीत से जुड़ी हुई थीं, लेकिन उनपर पुरुषों द्वारा कुछ बंदिशें भी लगी थीं पर उन्होंने उसे तोड़कर खुद को भी सशक्त किया और संगीत नृत्य में लालित्य सौंदर्य कोमलता का प्रवेश किया। कालांतर में उन्होंने पुरुष कलाकारों को पीछे छोड़ दिया तथा कथक में तो पुरुषों को अपदस्थ भी कर दिया। पहले तो पुरुष ही कथक करते थे जब स्त्रियाँ आईं तो यह उनका ही नृत्य बन गया।
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उन्होंने घर परिवार, शादी व्याह और लोक अनुष्ठानों से लेकर फिल्मों में स्त्रियों की भागीदारी का जिक्र करते हुए कहा कि बीसवीं सदी में लता से बड़ा कोई गायक नहीं हुआ। वे तो सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक बन गईं लेकिन स्त्रियों को इस मुकाम पर पहुंचने के लिए पुरुषों की तुलना में अधिक संघर्ष करना पड़ा।

सविता देवी की शिष्या मीनाक्षी प्रसाद ने इन गायिकाओं को तवायफ़ कहे जाने पर आपत्ति की। उन्होंने कहा कि ये कोठे पर जरूर गाती थीं पर विदुषी महिलाएं थीं। ये तहजीब की मालकिन थीं। ये भारतीय संस्कृति की नायिकाएं थीं। पुरुषों ने इन्हें बदनाम करने के लिए तवायफ़ कहकर बदनाम किया।

उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में गांधी जी को तवायफ़ों से मिली मदद का जिक्र करते हुए कहा कि इन तवायफ़ों का त्याग-बलिदान सब गुमनामी के अंधेरे में चला गया।

स्त्री दर्पण से जुड़ी युवा नृत्यांगना और उनकी टीम ने अपनी नृत्य नाटिका से 33 भूली बिसरी गायिकाओं के फन और इतिहास को उनकी दर्द भरी कहानी, उनके संघर्ष और बुलंदियों और कुर्बानी को कल मंच पर साकार कर दिया।
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शुरुआत में दो युवा नृत्यांगनाओं ने चपल गति और आंगिक मुद्राओं और भाव भंगिमा से चमत्कृत कर दिया। अंत में नृत्य मंडली की 30 नृत्यांगनाओं ने आसमान में उड़ती परियों की तरह इन गायिकाओं की उड़ान मुक्ति आज़ादी को पेश कर अद्भुत दृश्य रच दिया। पहली बार इतनी बड़ी संख्या में इन तवायफ़ गायिकाओं के इतिहास को मंच पर एक साथ पेश किया गया।

समारोह में प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी जे पी के सहयोगी और प्रसिद्ध नाटककार नाट्य आलोचक रंगकर्मी बीरेंद्र नारायण की पुस्तक Hindi theatre and stage का भी लोकार्पण हुआ। डॉक्टर नागेंद्र ने बीरेंद्र जी से यह किताब 40 साल पहले लिखवाई। तब तक अंग्रेजी में हिंदी रंगमंच पर कोई किताब नहीं थी। अनुराधा ओस द्वारा 60 साल से अधिक आयु की 14 हिंदी कवयित्रियों की कविताओं की संपादित पुस्तक “खिलूंगी यहीं कहीं” का भी लोकार्पण हुआ। भूमिका शुभा ने लिखी है।

साथ ही संजू शब्दिता द्वारा हिंदी की दस महिला ग़ज़लकारों की पुस्तक बज़्मे शायरात का भी लोकार्पण हुआ। अशोक वाजपेयी मीनाक्षी प्रसाद और विजय नारायण ने इन किताबों का लोकार्पण किया। समारोह में स्त्री लेखा के नए अंक का भी लोकार्पण किया गया। संचालन सुधा तिवारी ने किया।