दिल्ली दंगे ने क्या दिया? तबाही और घाव के अलावा? क्या वे घाव भर पाएँगे? दंगे के बाद के हालात क्या संदेश देते हैं, क्या वह भरोसा कायम हो पाएगा जिस पर भारत की नींव टिकी रही है? क्या सरकारें किसी धर्म विशेष के साथ नज़र आ सकती हैं? क्या वह हमले भी करवा सकती है? पुलिस की भूमिका क्या रही है? केजरीवाल सरकार की भी ज़िम्मेदारी है कि नहीं है? देखिए आशुतोष की बात में प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद के साथ विशेष चर्चा।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।