लोकतंत्र ‘लोगों’ के लिए है लेकिन आज का भारत जो दुनिया के सबसे बड़े संसदीय लोकतंत्र के रूप में ख्याति प्राप्त है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी’ कहने में काफ़ी गर्व महसूस करते हैं वहाँ इन ‘लोगों’ की फ़िक्र उन्हें तो बिल्कुल नहीं है, असल में उनके दल के किसी मंत्री को नहीं है। 15 दिन ही पहले ही इलाहाबाद (प्रयागराज) में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी थी, जिसमें ‘सरकार का कुप्रबंधन और प्रशासनिक अनदेखी’ की वजह से हुई भगदड़ में अनगिनत (छिपे हुए आँकड़े) लोगों की जान चली गई थी। जिन लोगों के अपने इस दुर्घटना में चल बसे उनकी मौत के लिए स्वयंभू ‘मठाधीश संत’ धीरेंद्र शास्त्री जैसे लोग ‘मोक्ष’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके अमानवीयता करने में लगे थे। भारत इस दुर्घटना को भूल नहीं पाया था, असली आँकड़ों और अपने लोगों की लाशों को पाने और पहचानने में जूझ ही रहा था कि 15 फ़रवरी की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में फिर से भगदड़ हो गई।
महाकुंभ में मौतें: दिल्ली भगदड़ ‘विधि का विधान’ नहीं, ‘सरकार का कुप्रबंधन’!
- विमर्श
- |

- |
- 29 Mar, 2025


महाकुंभ में भगदड़ के कारण दिल्ली में कई मौतें हुईं। क्या यह महज एक दुर्घटना थी, या सरकार की नाकामी? प्रशासनिक लापरवाही और सुरक्षा उपायों की हकीकत जानिए।
इसमें रात के आधे घंटे के भीतर भीतर ही कम से कम 18 भारतीय नागरिकों के मारे जाने की ख़बर आने लगी, इसमें भी ज़्यादातर महिलाएँ हैं, जैसे हर भगदड़ में ज़्यादातर महिलायें होती हैं। रात में ही सूचनाएं आ रही थीं कि प्रयागराज, महाकुंभ में जाने के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ बढ़ती जा रही हैं लेकिन इसके लिए कोई प्रबंधन नहीं किया गया, कोई सतर्कता नहीं बरती गई थी, कोई तैयारी नहीं थी। लगभग ‘जीरो भीड़ प्रबंधन’ के बीच ‘ट्रेनों के आने में लगातार विलंब’ होने और निरन्तर ‘प्लेटफार्म बदलने की घोषणाओं’ के बीच भगदड़ मच ही गई। इसी तरह कुप्रबंधन होता है, इसे ही कुप्रबंधन कहते हैं।


























