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फ़िलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति बढ़ती जा रही है! 

जले हुए कोयले के टुकड़े? कैमरा नज़दीक जाता है और हमें बतलाया जाता है कि ये  जो कोयले के टुकड़े लग रहे हैं, दरअसल एक पूरे परिवार के अवशेष हैं। उन टुकड़ों को एक कफ़न में एक साथ लपेटा जाता है।मलबा, मकानों का: उनके ऊपर नाम उनके जो इनमें रहते थे और शायद जिनके शव अभी तक मलबे में दबे हुए हैं। एक बाप मार डाली गई अपनी नन्हीं बच्ची का माथा चूमता हुआ, उसके बालों में बसी उसकी महक को अपनी साँसों में खींचता हुआ। 
एक वीडियो में फिर एक जलकर कोयला हो गया भ्रूण का आकार दीखता है। उसकी माँ कहाँ होगी, इसका अनुमान करने की ज़रूरत नहीं।बस्तियों की बस्तियाँ ज़मींदोज़ कर दी गई हैं। अस्पताल, स्कूल, विश्वविद्यालय, मस्जिद, चर्च कुछ भी इज़राइल के हमले से बचा नहीं है। मकानों की तो बात ही छोड़ दीजिए। ग़ज़ा को ‘पार्किंग’ की जगह या फुटबॉल का मैदान बना देने में इज़राइल ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। कोई 16000 लोग मारे गए हैं। लगभग 1200 परिवार पूरी तरह ख़त्म कर दिए गए हैं। उनका कोई नामलेवा नहीं बचा है। इनमें तक़रीबन 7000 बच्चे हैं। अब तकके हमले में इज़राइल ने हर 8 मिनट में 1 बच्चे की हत्या की है। 
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दुनिया में युद्धों की कमी नहीं। उनमें मारे गए लोगों की संख्या भी इससे अधिक है।लेकिन इतने कम समय में इतनी कम आबादी के क्षेत्र के इतने बाशिंदों को मारे जाने को सारी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के पर्यवेक्षकों ने अभूतपूर्व और दहशतनाक बतलाया है। ‘न्यूयार्क टाइम्स’ को भी,जो इज़राइल का समर्थक है, स्वीकार करना पड़ा है कि इज़राइली हमले में लोगों के मारे जाने की दर ‘ऐतिहासिक’ है। 
अभी जब ये पंक्तियाँ पढ़ी जा रही होंगी, इज़राइल का ग़ज़ा पर हमला रुका हुआ है। इसे 4 दिनों के युद्ध विराम का परिणाम माना जाना चाहिए। अगर अभी भी इज़राइल का हमला चल रहा होता तो मारे गए फ़िलिस्तीनियों की संख्या क्या होती? 
इन मौतों से जो बाइडेन या ऋषि सुनाक के माथे पर शिकन भी नहीं पड़ी। हस्पतालों को तबाह करने के लिए उन्होंने इज़राइल की आलोचना की जगह, उसका बचाव किया। उनके मुताबिक़ ‘अल शिफ़ा’ हस्पताल के नीचे सुरंगों में‘हमास’ का नियंत्रण केंद्र था। लेकिन ‘अल शिफ़ा’ हस्पताल पर पूरा क़ब्ज़ा कर लेने के बाद इज़राइल किसी स्वतंत्र संस्था के ज़रिए साबित नहीं कर पाया कि उसका आरोप सही था। उसकी सेना ने सबूत के तौर पर जो वीडियो जारीकिए, वे इतने हास्यास्पद थे कि लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाते हुए पैरोडी वीडियो बनाना शुरू कर दिया।
यह साफ़ है कि इज़राइल का इरादा ‘हमास’ के बहाने ग़ज़ा पट्टी से फ़िलिस्तीनियों का सफ़ाया कर देना है। वरना उसने इंडोनेशियाई हस्पताल को भी क्यों बर्बाद कर दिया? इज़राइल के इस तर्क को पचाने में अब उसके समर्थक रहे मीडिया को भी उलझन हो रही है। 
4 दिनों की इस जंगबंदी में ग़ज़ा की तबाही के हृदय विदारक दृश्य देखने को मिल रहे हैं। यही अमेरिका नहीं चाहता था। युद्धबंदी के ख़िलाफ़ होने का एक कारण यह था कि अमेरिका को लग रहा था कि युद्ध रुकने पर पत्रकार और बाक़ी लोग ग़ज़ा की बर्बादी के दृश्य देखेंगे और वे दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी पहुँचेंगे। इससे जनमत जो पहले ही इस युद्ध के ख़िलाफ़ है, वह और भी इज़राइल और उसके सरपरस्तों के विरुद्ध और भी दृढ़ हो जाएगा।
ग़ज़ा की बर्बादी के साथ इज़राइल की क्रूरता के सबूत भी दिख रहे हैं। युद्ध में मौतें होती हैं। लेकिन सैनिक इन मौतों में आनंद नहीं लेते। ग़ज़ा पर इज़राइल के हमले के दौरान फिलिस्तीनियों की हत्या और उनकी तबाही में मज़ा लेते हुए इज़राइली सैनिकों के वीडियो प्रसारित हो रहे हैं। एक इज़राइली मलबे से एक हार निकाल कर प्रदर्शित कर रहा है और यह कह रहा है कि यह हार वह अपनी पत्नी के लिए उपहार में ले जा रहा है। एक दूसरा सैनिक एक इमारत को उड़ाते हुए ख़ुद वीडियो बना रहा है और यह कहता देखा जाता है कि यह वह अपनी बेटी की दूसरी सालगिरह पर उपहार दे रहा है। फ़िलिस्तीनियों के मकानों के मलबे पर इज़राइली झंडा गाड़कर नाचते, गाते, जश्न मनाते  इज़राइली फ़ौजियों के वीडियो देखकर लोग स्तब्ध हैं।
युद्ध में हिंसा और मौत अनिवार्य है लेकिन कोई सच्चा सैनिक उस हत्या का मज़ा नहीं लेता। उसके सीने पर इन मौतों का बोझ बना रहता है।लेकिन इज़राइल के सैनिकों का बर्ताव देखकर लगता है कि वे दिमाग़ी तौर पर बीमार हैं।

ऐसे देश और समाज से पूरी दुनिया को चिंता होनी चाहिए जिसके नागरिक हिंसा और परपीड़ा में आनंद लें। इज़राइल के भीतर और उसके बाहर उसके समर्थकों के व्यवहार से यह बात और पुष्ट होती है। पूरी दुनिया में इस युद्ध के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। उन प्रदर्शनों में शांति की अपील की जा रही है। उनके नारों में युद्ध के प्रति क्रोध और क्षोभ है लेकिन हिंसा नहीं है। लेकिन उन प्रदर्शनों का विरोध करने वाले इज़राइली समर्थक ज़यानवादी  गाली गलौज करते हुए सुने जाते हैं। उनके शब्दों से घृणा टपकती है। उनका बर्ताव अश्लील है।


युद्ध का विरोध करने वालों में यहूदी अच्छी संख्या में हैं। उन यहूदियों को इज़राइल समर्थक या ज़यानवादी यह कह रहे हैं कि उनका बलात्कार किया जाना चाहिए, उनकी हत्या कर देनी चाहिए, बेहतर होता अगर वे गैस चैम्बर में मार डाले जाते। 
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यह सब कुछ वे लोग देख रहे रहे हैं जो न तो फ़िलिस्तीनी हैं, न इज़राइली , न मुसलमान, न यहूदी और ढेर सारे यहूदी भी। और युद्ध के भयानक दृश्यों के अलावा इज़राइली नेताओं के बयानों, उनकी शारीरिक मुद्राओं और ज़यानवादियों के हिंसक और अश्लील बर्ताव ने इन लोगों के मन में इज़राइल के प्रति वितृष्णा भर दी है। दूसरी तरफ़ फ़िलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति बढ़ती जाती है। फ़िलिस्तीनी सिर्फ़ इज़राइल का हमला नहीं झेल रहे। वे इज़राइल के साथ अमेरिका , इंग्लैंड जैसे देशों का हमला झेल रहे हैं। 7 दशकों तक इज़राइल की हिंसा के बीच ख़ुद को, अपनी आदमीयत को बचा रखने की उनकी कुव्वत को देखकर दुनिया के अमनपसंद लोग फिलिस्तीनियों के साथ खड़े हो रहे हैं। इज़राइल के इस हमले ने दुनिया की अदालत में फ़िलिस्तीन का मुक़दमा और मज़बूत कर दिया है। 
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अपूर्वानंद
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