जर्मनी और यूरोप में फासीवाद के उभार के कारणों को समझने की कोशिश करनेवाले अध्येताओं में अग्रणी थियोडोर एडोर्नो का हमारे अपने उर्दू कवि मजाज़ से क्या संबंध हो सकता है? जब हम ‘एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ (ए पी सी आर)के राष्ट्रीय सचिव नदीम खान की दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही प्रताड़ना पर विचार कर रहे थे, एक मित्र ने शरजील इमाम का लिखा एक लेख साझा किया। शरजील नागरिकता संबंधी क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए जेल में 5 साल से जेल में हैं। मुक़दमा अभी शुरू भी नहीं हुआ है। उन पर आतंक पैदा करने का इल्ज़ाम है क्योंकि उन्होंने लोगों को सी ए ए के ख़तरे के बारे में बतलाया। वह इस निज़ाम की निगाह में जुर्म है। शरजील ने अपने पत्र में मजाज़ को उद्धृत किया हैः
खबरदार, जल्लाद के घर फांसी के फंदे की बात मत करना
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

नदीम खान, उमर खालिद, खालिद सैफी
इस देश में मुसलमानों की कोई भी शिकायत और मुसलमानों की कोई भी न्याय की माँग राष्ट्रविरोधी, देशद्रोही है। देश की सरकार इन न्याय चाहने वाले मुसलमानों की आवाज़ों को चुप कराने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। उमर खालिद, खालिद सैफी और शरजील इमाम से शुरू हुआ यह सिलसिला अब जुबैर अहमद और नदीम खान तक आ पहुंचा है। जाने-माने स्तंभकार और विचारक अपूर्वानंद का यह लेख इस मुद्दे पर उन बहुसंख्यकों की समझ को और साफ करेगा, जो इस देश में लोकतंत्र का गला घोंटते हुए नहीं देख सकतेः