पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की SIR रिपोर्ट से पहले बीजेपी ने 1000 CAA कैंप लगाने की तैयारी की है। क्या यह बीजेपी की बड़ी चुनावी रणनीति है?
पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर प्रक्रिया से ठीक पहले बीजेपी राज्य में 1000 से अधिक नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए कैंप लगाएगी। इसके लिए पार्टी ने तैयारी शुरू कर दी है। आगामी 2026 विधानसभा चुनावों के करीब आने के साथ बीजेपी ने इन कैंपों की संख्या बढ़ाने का फ़ैसला किया है और नेताओं व कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए गए हैं कि वे बंगाल में रह रहे बांग्लादेश से आए उत्पीड़ित हिंदू शरणार्थियों को सीएए के तहत नागरिकता आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करें। तो एसआईआर, सीएए कैंप और बंगाल चुनाव इन सब में संबंध क्या है? क्या यह सब चुनाव के लिए किया जा रहा है? ये सवाल इसलिए कि विपक्ष एसआईआर प्रक्रिया पर गलत तरीके से नाम काटने और जोड़ने का आरोप लगा रहा है।
वैसे तो इस तरह के कैंप पूरे राज्य में स्थापित किए जाएँगे, लेकिन बीजेपी का मुख्य फोकस बांग्लादेश सीमा से सटे जिलों पर होगा, जिसमें दक्षिण बंगाल के उत्तर 24 परगना और नदिया, तथा उत्तर बंगाल के कूच बिहार और उत्तर दिनाजपुर शामिल हैं।
बंगाल बीजेपी अध्यक्ष और सांसद शमीक भट्टाचार्य ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से सीएए कैंपों को लेकर कहा, 'यह बीजेपी का पहले दिन से एजेंडा था। कोविड महामारी के कारण नियम बनाने में थोड़ी देरी हुई, लेकिन हम तैयार हैं।' उन्होंने कहा कि राज्य भर में 1000 से अधिक कैंप लगाए जाएंगे, जिनमें सीमा क्षेत्रों में अधिक होंगे। भट्टाचार्य ने कहा, 'कई जिलों में जनसांख्यिकी बदल रही है, मुख्य रूप से सीमा क्षेत्रों में; इसलिए वहां अधिक कैंप लगाए जाएंगे।'
अंग्रेज़ी अख़बार के अनुसार पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि बीजेपी इकाइयों के अलावा अन्य हिंदू संगठन और कई स्थानीय क्लब भी इस अभियान में भाग लेंगे। बुधवार को बंगाल बीजेपी द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में पार्टी महासचिव बी.एल. संतोष के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं, नेताओं और 'राजनीतिक रूप से तटस्थ' संगठनों के प्रतिनिधियों को सीएए पर प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षु अपने इलाकों में लौटकर अन्य लोगों को नागरिकता प्रमाण-पत्र आवेदन में सहायता करेंगे, जो एसआईआर प्रक्रिया से पहले होगा।
सीएए कैंपों में क्या करेगी बीजेपी?
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, 'यह अहम है कि आम आदमी को समझाया जाए कि सीएए क्यों ज़रूरी है। इसके बारे में बहुत गलत सूचना फैलाई गई है, जिससे लोग डर रहे हैं।' चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर की घोषणा की संभावना के बीच पार्टी इन कैंपों को 2002 के बाद भारत प्रवेश करने वाले उत्पीड़ित गैर-मुस्लिम शरणार्थियों के लिए नागरिकता प्रमाण-पत्र प्राप्त करने में अहम मान रही है। एक वरिष्ठ बीजेपी पदाधिकारी ने कहा, 'कार्यशाला में वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता शामिल हुए क्योंकि पार्टी का मानना है कि उन्हें खुद सीएए के बारे में स्पष्ट होना चाहिए और संभावित सवालों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। यदि वे खुद आश्वस्त नहीं होंगे, तो वे दूसरों को आवेदन के लिए मना नहीं सकेंगे।'
पश्चिम बंगाल से और ख़बरें
रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी नेता ने कहा, 'मुख्य समस्या यह है कि लोग नागरिकता के लिए आवेदन करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उन्हें हिरासत शिविरों में भेज दिया जाएगा या घुसपैठिए करार दिया जाएगा। हमारा मुख्य लक्ष्य उन्हें आश्वस्त और शिक्षित करना है।'
बीजेपी विधायक और राज्य शरणार्थी प्रकोष्ठ के संयोजक आसिम सरकार ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया, '2000 से 31 दिसंबर 2024 तक जिनका नाम नहीं है, हम उन्हें नागरिकता प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन करने के लिए मनाएंगे। हमारी राज्य की मुख्यमंत्री ने उत्पीड़ित हिंदू शरणार्थियों को सीएए के तहत आवेदन न करने के लिए गुमराह किया है। सीएए हिंदुओं के लिए है। यह एक लक्ष्मण रेखा है। उत्पीड़ित हिंदुओं की नागरिकता की यह लड़ाई 2004 में ठाकुरनगर में मतुआ घराने से शुरू हुई। हमने शरणार्थियों के लिए 18 राज्यों में बंगाल के बाहर विरोध प्रदर्शन किए हैं।' आसिम सरकार ने कहा कि उनकी हरिंगहाटा विधानसभा क्षेत्र में वे सीएए के तहत आवेदन करने के लिए प्रचार अभियान शुरू करेंगे।
मतुआ समुदाय, हिंदू वोट की राजनीति
कहा जा रहा है कि यह राज्यव्यापी अभियान बीजेपी को हिंदू वोटों को एकजुट करने में मदद करेगा और 2024 तक बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण बंगाल पहुंचे मतुआ और अन्य हिंदू शरणार्थी समुदायों तक पहुंच बनाएगा। पार्टी नेता दावा करते हैं कि सीएए और एसआईआर प्रक्रियाएं नकली और मृत मतदाताओं की पहचान करने के साथ-साथ बंगाल में रह रहे 'अवैध' मुस्लिम प्रवासियों को भी उजागर करेंगी।
यह अभियान भाजपा की 2026 चुनाव रणनीति का हिस्सा है, जहां मतुआ समुदाय बनगांव, बरासात, रानाघाट, कृष्णनगर और कूच बिहार लोकसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाता है।
पश्चिम बंगाल में सीएए एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। तृणमूल कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए इसे 'बंगाली अस्मिता' के लिए खतरा बताया है, जबकि भाजपा इसे उत्पीड़ित हिंदुओं के लिए न्याय का साधन मानती है। बीजेपी का दावा है कि सीएए से बंगाल की जनसांख्यिकी संतुलित होगी, जबकि विपक्ष इसे वोट चोरी का हथकंडा बता रहा है। एसआईआर की घोषणा के बाद यह मुद्दा और गरमा सकता है।