पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गा पूजा भी सियासत से अछूता नहीं रहा है. खासकर चुनावी साल से ठीक पहले वाली पूजा में तो सियासत का रंग बहुत गढ़ा नजर आता है. तमाम राजनीतिक दलों के लिए यह जनसंपर्क और उसके जरिए अपने वोट बैंक को मजबूत रखने का सबसे बड़ा मौका होता है. इस बार भी अपवाद नहीं है.
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता के दोनो दावेदार यानी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा भी पूजा को सियासी तौर पर भुनाने की कोशिश कर रही है. लेकिन पहले राउंड में तो बाजी ममता के हाथ ही रही है. बंगाल के वोटरों पर पकड़ बनाने के लिए ही भाजपा ने दो साल के अंतराल के बाद इस साल पूजा का आयोजन किया है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूजा पंडालों के उद्घाटन के मामले में इस साल एक नया रिकार्ड बनाया है. वो कोलकाता और आसपास के इलाकों में करीब तीन हजार पंडालों का उद्घाटन करेंगी. कुछ का मौके पर पहुंच कर तो कुछ का वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए.
पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के दौर में पूजा में सत्तारूढ़ पार्टी की सीधी भागीदारी नहीं होती थी. सुभाष चक्रवर्ती जैसे कुछ नेता निजी हैसियत से कुछ आयोजनों से जुड़े रहते थे. लेकिन नीतिगत वजहों से पार्टी ने इससे लगातार दूरी बनाए रखी थी.
वर्ष 2011 में सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी ने दुर्गा पूजा को सियासत का हथियार बनाना शुरू किया. उन्होंने तब कुछ पंडालों को उद्घाटन किया था और आधी रात तक विभिन्न पंडालों में घूमती रही थी.
हालांकि विपक्ष में रहने के दौरान बी ममता नियमित रूप से कोलकाता के कुछ पंडालों की परिक्रमा करती थी. लेकिन सत्ता में आने के बाद इसका दायरा तेजी से बढ़ने लगा.
ममता ने उद्घाटन के साथ ही आयोजन समितियों को अनुदान देने और पूजा कार्निवास की परंपरा शुरू की थी. इसका भी पार्टी को फायदा मिला है. इस साल यह अनुदान बढ़ कर 1.10 लाख तक पहुंच गया है. सरकार ने चार हजार से ज्यादा आयोजन समितियों को अनुदान दिया है.इस अनुदान पर सवाल उठे हैं और इसके खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिकाएं बी दायर की गई थी. लेकिन ममता बनर्जी सरकार इस पर कृतसंकल्प है. इसके साथ ही हर साल आयोजकों को बिजली के बिल में भारी छूट भी दी जाती है.
दूसरी ओर, भाजपा ने भी अपने हिंदुत्व के एजेंडे के तहत पूजा के सियासी इस्तेमाल का फैसला किया था. बांग्ला राष्ट्रवाद के दबाव और खुद को बंगाल की अस्मिता से जोड़ने की कवायद के तहत ही अगले साल होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा दो साल बाद फिर कोलकाता के साल्टलेक इलाके में ईज्ञस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर में इस साल दुर्गा पूजा आयोजित कर रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भारी कामयाबी के बाद पार्टी ने तब मुकुल राय के जरिए यहां पहली बार पूजा का आयोजन किया था. लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में उसे इसका कोई फायदा नहीं मिल सका. वह लोकसभा के प्रदर्शन को दोहराने में नाकाम रही और उसे महज 77 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. उसने उस साल और 2022 में तो किसी तरह पूजा आयोजित की थी. लेकिन 2023 और 24 में इसका आयोजन नहीं किया गया था.
लेकिन इस बार उसके नेता बहुत कम पंडालो में ही नजर आ रहे हैं. ऐसे में इस साल की पूजा पर तृणमूल नेताओं का ही वर्चस्व नजर आ रहा है. कोलकाता में भाजपा नेता सजल घोष ही एक बड़ा आयोजन करते हैं.
पश्चिम बंगाल में इस साल 45 हजार से ज्यादा पंडाल बनाए जा रहे हैं. इनमें से करीब साढ़े चार हजार अकेले राजधानी कोलकाता और उसके आस-पास हैं. कोलकाता में करीब सौ ऐसे पंडाल हैं जिनका बजट 80 से 90 लाख के बीच है. इसके अलावा करीब एक दर्जन पंडालों का बजट तीन से पांच करोड़ के बीच रहता है. पहले दुर्गा पूजा षष्ठी से लेकर नवमी यानी चार दिनों तक ही मनाई जाती थी. लेकिन अब यह दस दिनों तक चलती है. राज्य के इस सबसे बड़े त्योहार पर सियासत का रंग लगातार चटख होता रहा है. वाममोर्चा के दौर में भी कई नेता विभिन्न पूजा समितियों के साथ जुड़े थे. लेकिन वर्ष 2011 में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद सियासत का रंग और गहरा हो गया.
राज्य में दुर्गा पूजा का टर्नओवर हर साल बढ़ता ही जा रही है. एक अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2013 में यह आंकड़ा करीब 25 हजार करोड़ था. मोटे अनुमान के मुताबिक, बीते साल यह टर्नओवर 80 हजार करोड़ तक पहुंच गया. इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स पहले ही अनुमान जता चुका है कि 2030 तक दुर्गा पूजा का टर्नओवर एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा.