चुनाव आयोग बिहार में जिस एसआईआर को लेकर चौतरफ़ा घिरा है और
जिसकी जमकर आलोचना हो रही है, उसको अब पश्चिम बंगाल में लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है। चुनाव आयोग यानी ईसीआई ने पश्चिम बंगाल के अधिकारियों को इस प्रक्रिया को तेजी से और पारदर्शी ढंग से पूरा करने के लिए कमर कसने का निर्देश दिया है। बंगाल में यह क़दम बिहार में SIR के दौरान हुई कथित गड़बड़ियों और बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाए जाने की शिकायतों के बाद उठाया गया है। बिहार में आई कथित गड़बड़ियों ने देश भर में मतदाता अधिकारों और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं।
बिहार में SIR पर विवाद क्या?
बिहार में 24 जून 2025 को शुरू हुई SIR प्रक्रिया ने बड़े विवाद को जन्म दिया है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना, दोहरे नामों को हटाना, मृतकों के नाम हटाना और गैर-पात्र मतदाताओं को सूची से बाहर करना बताया गया। हालाँकि, कांग्रेस और आरजेडी जैसे विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर मतदाताओं, खासकर अल्पसंख्यक, दलित, और प्रवासी मजदूरों के नाम हटाए गए। इससे लाखों लोगों का मताधिकार खतरे में पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त 2025 को अपने एक अंतरिम आदेश में ईसीआई को निर्देश दिया कि वह 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित मसौदा
मतदाता सूची से हटाए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं की सूची और उनके हटाए जाने के कारणों को सार्वजनिक करे।
SIR पर वोट चोरी का आरोप
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को लोकतंत्र के खिलाफ साजिश करार देते हुए कहा कि यह विशेष रूप से विपक्ष समर्थकों को निशाना बना रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी पर चिंता जताई और ईसीआई को आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को पहचान के लिए वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का सुझाव दिया।
राहुल गांधी ने एसआईआर प्रक्रिया को 'वोट चोरी' से जोड़ते हुए बिहार में वोटर अधिकार यात्रा शुरू की है। इसमें कांग्रेस, आरजेडी, सीपीआई (एमएल) जैसे विपक्ष दल यात्रा में एसआईआर प्रक्रिया, चुनाव आयोग और बीजेपी पर हमला कर रहे हैं। यानी राज्य में यह मुद्दा सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उठा है और इस पर काफ़ी विवाद है।
पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची संशोधन
चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के संशोधन की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी है। यह निर्णय आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। यह चुनाव मार्च-अप्रैल 2026 में होने की संभावना है। आयोग ने पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और जिला निर्वाचन अधिकारियों को इस प्रक्रिया को सुचारु और पारदर्शी बनाने के लिए तत्काल क़दम उठाने का निर्देश दिया है।
अधिकारियों के लिए सख़्त निर्देश
ईसीआई ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का संशोधन एक नियोजित और चरणबद्ध तरीक़े से किया जाएगा, ताकि सभी पात्र मतदाताओं को शामिल किया जा सके और कोई भी ग़लत एंट्री सूची में न रहे। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अपने सभी जिला मजिस्ट्रेट्स को लिखे पत्र में मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा निर्देश दिया है कि सहायक निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी या निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी अपने किसी भी वैधानिक कर्तव्यों और कार्यों को किसी अन्य अधिकारी या व्यक्ति को नहीं सौंपेंगे। इसने यह भी कहा है कि वे किसी भी परिस्थिति में अपने ईआरओनेट लॉगिन आईडी और ओटीपी को किसी डेटा एंट्री ऑपरेटर या किसी अन्य अधिकारी या व्यक्ति के साथ साझा नहीं करेंगे।
यह निर्देश निर्वाचन आयोग द्वारा ईसीआई के चार अधिकारियों और एक अस्थायी डेटा ऑपरेटर को निलंबित करने और उनके ख़िलाफ़ 127 मतदाताओं के कथित फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के साथ पंजीकरण के लिए मुक़दमा दर्ज करने के लिए कहे जाने के तीन सप्ताह बाद आया। निर्वाचन आयोग के साथ टकराव के बाद 21 अगस्त को ईसीआई द्वारा निर्धारित अंतिम समय सीमा के दिन राज्य सरकार ने इन अधिकारियों को निलंबित कर दिया, लेकिन उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज नहीं की।
राज्य के कथित फ़र्ज़ी मतदाता विवाद का ज़िक्र करते हुए सीईओ के डीईओ को लिखे पत्र में कहा गया: 'आईटी संबंधित कार्यों के लिए सहायता केवल सिस्टम मैनेजर, सहायक सिस्टम मैनेजर और डेटा एंट्री ऑपरेटरों से ली जाएगी, जो गृह और हिल्स अफेयर्स विभाग से वेतन पाने वाले स्थायी सरकारी कर्मचारी हों। उनकी अनुपस्थिति या कमी की स्थिति में ग्रुप सी और उससे ऊपर के स्तर के स्थायी सरकारी कर्मचारियों से।'
सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि मुख्य सचिव पंत ने बुधवार को भी डीएम के साथ एक वर्चुअल बैठक की। इसमें उन्होंने सभी रिक्त ईआरओ और एईआरओ पदों को तुरंत नामित अधिकारियों से भरने के लिए कहा ताकि वे अपने निर्वाचन कर्तव्यों को ठीक से निभा सकें।
ममता SIR के ख़िलाफ़
बंगाल में चुनाव आयोग का यह क़दम बिहार में चल रहे एसआईआर विवाद के बीच आया है। विपक्षी इंडिया ब्लॉक के अन्य नेताओं की तरह टीएमसी सुप्रीमो और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी एसआईआर के खिलाफ हथियार उठाए हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि बीजेपी और चुनाव आयोग के बीच सांठगांठ है ताकि चुनावों में हेरफेर किया जा सके। इस महीने की शुरुआत में ममता ने बंगाल के लोगों को चेतावनी दी थी कि वे एसआईआर से संबंधित चुनाव आयोग के किसी भी फॉर्म को विवरण जाने बिना न भरें।
चुनाव आयोग का पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची संशोधन का निर्णय बिहार SIR विवाद के बाद एक अहम क़दम है। लेकिन क्या बंगाल में यह प्रक्रिया बिना विवाद के पूरा होगी? कम से कम ममता बनर्जी के तेवर तो ऐसे नहीं लगते हैं। बिहार में एसआईआर की घोषणा के बाद से ही ममता भी चुनाव आयोग पर हमलावर हैं और उस पर बीजेपी के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगा रही हैं।