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फाइल फोटो

नागरिक विरोधी प्रावधानों को लागू करने का हो रहा प्रयासः ममता बनर्जी 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने बुधवार को दावा किया है कि राजद्रोह कानून के प्रावधानों को हटाने के नाम पर गृह मंत्रालय प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता में और भी गंभीर एवं मनमाने कदम उठाने जा रहा है। 
सोशल मीडिया साइट एक्स पर ट्विट कर उन्होंने लिखा है कि भारतीय दंड संहिता, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के बदलने के लिए तैयार मसौदे को पढ़ रही हूं।
 मैं इसे पढ़ कर स्तब्ध रह गई हूं कि  इस बदलाव के जरिये चुपके से बेहद क्रूर और नागरिक विरोधी प्रावधानों को लागू करने का गंभीर प्रयास किया जा रहा है। 
ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा है कि पहले राजद्रोह कानून था, अब, उन प्रावधानों को वापस लेने के नाम पर, वे प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता में मनमाने उपाय पेश कर रहे हैं, जो नागरिकों को बेहद गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।  

उन्होंने लिखा है कि उपनिवेशवाद की छाया को मौजूदा कानून के स्वरूप के साथ साथ भाव से भी मुक्त किया जाना चाहिए। ममता बनर्जी ने अपनी पोस्ट में अपील की है कि देश के न्यायविद और लोक कार्यकर्ता इन कानूनों के मसौदे को आपराधिक न्याय प्रणाली के क्षेत्र में लोकतांत्रिक योगदान के लिए गंभीरता से पढ़ें। 
अपनी इस पोस्ट ममता बनर्जी ने लिखा है कि संसद में उनके सहयोगी स्थायी समिति के समक्ष इन मुद्दों को उठाएंगे।उन्होंने कहा है कि अनुभवों के आधार पर कानूनों में सुधार की जरूरत है लेकिन उपनिवेशवाद की निरंकुशता को पिछले दरवाजे से दिल्ली में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।  

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11 अगस्त को लोकसभा में इन्हें पेश किया गया था

सरकार का इरादा आईपीसी को भारतीय न्याय संहिता, 2023, सीआरपीसी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और साक्ष्य अधिनियम को भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 में बदलने का है।
इसके लिए तीनों से जुड़ा विधेयक 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था और इसके बाद इन्हें संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था।
इसे लोकसभा में पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इन तीन कानूनों के निर्माण में पिछले चार वर्षों में विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया है। 
हालांकि कानूनों के जानकार सरकार के इस फैसले पर कई सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यह नई बोतल में पुरानी शराब जैसा है। 
कई कानून विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी और यह एक गैर जरूरी कदम है। वहीं विपक्षी नेताओं का मानना है कि कोई भी बड़ा बदलाव करने से पहले इस पर अच्छी तरह से विचार-विमर्श होना चाहिए। 
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1,500 से अधिक पुराने कानूनों को निरस्त किया जा चुका 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी समय से औपनिवेशिक अतीत के अवशेषों को मिटाने की बात कहते रहे हैं। माना जा रहा है कि इसी कड़ी में आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने की कोशिश सरकार कर रही है।  देश के आपराधिक कानूनों में प्रस्तावित बदलाव पेश कर सरकार अंग्रेजी राज की पहचान से मुक्ति पाने की बात कह रही है। 
पिछले वर्ष 2022 में, भारत के 76वें स्वतंत्रता दिवस पर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि केंद्र सरकार ने "भारत के औपनिवेशिक अतीत के अवशेषों को मिटाने" के लिए 1,500 से अधिक पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया है।  पीएम ने अपने भाषण में कहा था, ''इस आजादी के अमृत काल में गुलामी के समय से चले आ रहे कानूनों को खत्म करके नए कानून बनाने चाहिए।
लगभग एक साल बाद, फिर अगस्त 2023 में केंद्र सरकार  भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के उद्देश्य से आईपीसी को भारतीय न्याय संहिता, 2023, सीआरपीसी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और साक्ष्य अधिनियम को भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 से बदलने का विधेयक लोकसभा में लेकर आई थी। 
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क़मर वहीद नक़वी
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