ममता ने अपने पत्र में लिखा है,
'मैं आपके पत्र और पुलिस महानिदेशक को संबोधित टिप्पणी को पढ़ने के बाद बेहद उदास और दुखी हुई, जिसे मेरे समक्ष प्रस्तुत किया गया था। साथ ही साथ इस बारे में आपके ट्विटर पोस्ट को देखकर भी दुख हुआ।'
क़ानून व्यवस्था पर चिंता!
दरअसल, इस महीने की शुरुआत में पुलिस महानिदेशक वीरेंद्र को लिखे पत्र में धनखड़ ने राज्य की क़ानून व्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की थी। इस पर महानिदेशक की ओर से दो लाइन का जवाब दिए जाने के बाद धनखड़ ने उनको 26 सितंबर तक मुलाक़ात करने और क़ानून-व्यवस्था में सुधार के लिए उठाए गए कदमों का ब्योरा देने को कहा था। लेकिन महानिदेशक की बजाय उस पत्र का जवाब 26 को ममता ने भेजा।
अब तक शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा है जब राज्यपाल ने अपने ट्वीट के जरिए सरकार, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कठघरे में नहीं खड़ा किया हो।
वह चाहे कोरोना का मुद्दा हो, राशन वितरण का या फिर अंफान महामारी के बाद राहत और बचाव कार्यों का, राज्यपाल लगातार सरकार पर हमले करते रहे हैं।
शुरू से टकराव
उसके बाद ममता ने एक बार राजभवन जाकर उनसे मुलाक़ात की थी। उसके बाद इन दोनों के बीच विवादों का सिलसिला लगातार तेज़ हुआ है।
राज्यपाल से टकराव पहले भी
धरम वीर
राज्य के तत्कालीन राज्यपाल धरम वीर ने 21 नवंबर, 1969 को अजय मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर दिया था। वर्ष 1969 में मोर्चा की सरकार फिर सत्ता में लौटी। मंत्रिमंडल के गठन के बाद राज्यपाल के लिए जो अभिभाषण तैयार किया गया था उसके एक पैराग्राफ में धरम वीर की आलोचना की गई थी। धरम वीर ने अभिभाषण का वह हिस्सा पढ़ने से इंकार कर दिया था।
बी. डी. पांडे
ए. पी. शर्मा
वर्ष 1984 में राज्यपाल बनने वाले अनंत प्रसाद शर्मा के साथ भी वाममोर्चा के रिश्ते ठीक नहीं रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर के पद पर नियुक्ति के मुद्दे पर दोनों के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई थी। शर्मा ने ऐसे उम्मीदवार संतोष भट्टाचार्य के नाम पर मुहर लगाई थी जो सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे था।
गोपाल कृष्ण गांधी
वर्ष 2007 में नंदीग्राम में हुई फायरिंग और हत्याओं की कड़े शब्दों में आलोचना करने की वजह से तत्कालीन राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी को भी वाममोर्चा नेताओं की भारी नाराजगी का शिकार होना पड़ा था। गांधी के बाद राजभवन पहुंचने वाले पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायणन के रिश्ते भी वाममोर्चा या तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ मधुर नहीं रहे।
केशरी नाथ त्रिपाठी
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तब त्रिपाठी पर अपना अपमान करने का भी आरोप लगाया था। आखिर में हालत यहाँ तक पहुंच गई कि ममता ने त्रिपाठी के विदाई समारोह में भी हिस्सा नहीं लिया। त्रिपाठी ने इस पर दुख भी जताया था। अब धनखड़ के आने के बाद रिश्ते और भी ख़राब हो गये हैं।
संविधान में राज्यपाल की भूमिका बहुत सीमित है। उन्हें मुख्यमंत्री की सिफ़ारिश पर ही काम करना होता है। मुख्यमंत्री की तरह उनका चुनाव जनता के द्वारा नहीं होता। केंद्र सरकार उनकी नियुक्ति करती है। वह एक तरह से केंद्र के एजेंट के तौर पर ही राजभवन में रहते हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि अगर राज्यपाल दिन प्रतिदिन चुनी हुई सरकार के काम में दखल देने लगे तो फिर प्रशासन में अड़चन आना स्वाभाविक है।