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बंगाल उपचुनाव: दीदी ने फिर दिखाया दम

बंगाल में लोकसभा की एक और विधानसभा की एक सीट के लिए हुए उपचुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फिर दिखाया है कि उनके कद का नेता पश्चिम बंगाल में दूसरा कोई नहीं है। विधानसभा की बालीगंज और लोकसभा की आसनसोल सीट पर हुए उपचुनाव में टीएमसी ने विरोधियों को बड़ी शिकस्त दी है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव और उसके बाद में नगर निगम के चुनाव में भी टीएमसी की जोरदार आंधी चली थी और विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ हो गया था।

टीएमसी ने बालीगंज सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी से आए बाबुल सुप्रियो को उम्मीदवार बनाया था जबकि आसनसोल सीट पर फिल्म अभिनेता रहे शत्रुघ्न सिन्हा को मैदान में उतारा गया था। 

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बालीगंज सीट पर टीएमसी 20000 से ज़्यादा वोटों के अंतर से जीती है जबकि आसनसोल लोकसभा सीट पर उसकी जीत का अंतर 303209 मतों का रहा है। बाबुल सुप्रियो ने सीपीएम की उम्मीदवार सायरा शाह हलीम को हराया जबकि शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी उम्मीदवार अग्निमित्रा पॉल को मात दी।  

पहली बार जीती आसनसोल 

आसनसोल में टीएमसी की जीत इसलिए भी बड़ी है क्योंकि वह यहां पहली बार जीती है। इस सीट पर कई बार कांग्रेस और सीपीएम को जीत मिली है जबकि 2014 और 2019 में यहां से बाबुल सुप्रियो जीते थे। लेकिन बाबुल सुप्रियो को अपने पाले में कर टीएमसी ने यह सीट बीजेपी से झटक ली है।

TMC wins in Asansol election 2022 seat  - Satya Hindi
साथ ही इस सीट पर वोटों का जो अंतर रहा है वह भी हैरान करने वाला है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बाबुल सुप्रियो ने बतौर बीजेपी उम्मीदवार टीएमसी की उम्मीदवार मुनमुन सेन को लगभग 2 लाख मतों के अंतर से हराया था और 2014 में उन्होंने डोला सेन को 70000 वोटों के अंतर से हराया था। लेकिन इस बार शत्रुघ्न सिन्हा ने यह सीट उससे बड़े अंतर से जीत कर टीएमसी को और मजबूत किया है।
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ममता का 2024 का प्लान

राष्ट्रीय राजनीति में पैर पसारने की कोशिश कर रहीं ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की सभी 42 सीटों को जीतने की दिशा में काम कर रही हैं। वह टीएमसी के विस्तार में जुटी हैं। 

ममता की कोशिश ज़्यादा से ज़्यादा लोकसभा सीटें जीतकर कांग्रेस की जगह पर मुख्य विपक्षी दल बनने की है। विधानसभा, नगर निकाय और अब उपचुनाव के नतीजे इस बात को बताते हैं कि बंगाल में दीदी की धमक बरकरार है। हालांकि बंगाल के बाहर वह गोवा जैसे छोटे से प्रदेश में भी कुछ खास नहीं कर सकीं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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