पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2002 के बाद जन्मे लोगों से उनके माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र मांगने को साज़िश करार दिया है। उन्होंने एक बार फिर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया है कि नई वोटर लिस्ट तैयार करने की प्रक्रिया के पीछे एक गहरी साजिश है, जिसका मकसद बंगाल के वैध वोटरों, खासकर गरीबों, प्रवासी मजदूरों और अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से हटाना है। ममता ने विशेष रूप से 2002 के बाद जन्मे लोगों से उनके माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र मांगने की नई शर्त पर सवाल उठाए हैं, जिसे उन्होंने लोकतंत्र के लिए खतरा और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी को पीछे के रास्ते से लागू करने की कोशिश करार दिया।

झारग्राम में एक भाषा आंदोलन रैली को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने कहा, 'एक साजिश चल रही है, जिसके तहत पूरी तरह से नई वोटर लिस्ट बनाई जा रही है। 2002 में जन्मे लोगों को अब अपने माता-पिता के 46 साल पुराने जन्म प्रमाण पत्र पेश करने होंगे। कितने लोगों के पास ऐसे दस्तावेज हैं? क्या ये नियम बनाने वाले लोगों के पास खुद ऐसे प्रमाण पत्र हैं?" ममता ने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए चुनौती दी थी, 'मैं अमित शाह से पूछती हूं, क्या आपके पास आपके माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र हैं? पहले इसे दिखाइए, फिर दूसरों के वोटर लिस्ट से नाम हटाने की बात कीजिए।'
ममता ने आरोप लगाया कि विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर प्रक्रिया के ज़रिए एनआरसी को लागू करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा, 'यह बंगाल के लोगों, खासकर आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाने का प्रयास है। बंगाल में हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।' उन्होंने लोगों से सतर्क रहने और अपनी वोटर आईडी सुनिश्चित करने की अपील की, भले ही इसके लिए उन्हें काम छोड़ना पड़े।

नई वोटर लिस्ट नियम और विवाद

चुनाव आयोग ने हाल ही में बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के व्यापक संशोधन की घोषणा की, जिसमें नए नियम लागू किए गए हैं। इन नियमों के तहत, 1 जुलाई 1987 के बाद और 2 दिसंबर 2004 के पहले जन्मे लोगों को वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र जमा करने होंगे। इसके अलावा, 2003 के बाद वोटर लिस्ट में शामिल हुए लोगों को अपनी नागरिकता का प्रमाण और जन्म स्थान का सबूत देना होगा। ममता ने इन नियमों को अलोकतांत्रिक और भेदभावपूर्ण बताया, जिसमें बंगाल को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है।
ममता ने कहा, '1987 से 2004 के बीच जन्मे लोगों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? भारत 1947 में आजाद हुआ था। क्या 1987 से पहले जन्मे लोग भारतीय नागरिक नहीं हैं? गरीब लोग अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र कहां से लाएंगे? यह एक घोटाला है और एनआरसी को चुपके से लागू करने की कोशिश है।' उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बिहार में यह नियम लागू नहीं होंगे, क्योंकि वहां बीजेपी की सरकार है, लेकिन बंगाल को टारगेट किया जा रहा है।
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बीजेपी का पलटवार

ममता के आरोपों पर बीजेपी ने तीखा पलटवार किया है। बीजेपी सांसद और बंगाल प्रभारी समिक भट्टाचार्य ने कहा, 'ममता बनर्जी को लगता है कि वह अवैध बांग्लादेशियों, रोहिंग्या और जिहादियों के वोट से चौथी बार सत्ता में आएंगी, तो वह गलत हैं।' उन्होंने ममता के बयानों को संवैधानिक संस्थानों पर हमला करार दिया और कहा कि एसआईआर प्रक्रिया वैध और जरूरी है।
बीजेपी के नेता और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी ममता के दावों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि बंगाल में 70,000 नए वोटरों का अचानक पंजीकरण हुआ है, जिसमें अवैध घुसपैठियों के नाम शामिल हो सकते हैं। उन्होंने बिहार की तरह बंगाल में भी एसआईआर लागू करने की मांग की।

ममता का वैश्विक मंच पर जाने की चेतावनी

ममता ने चेतावनी दी कि अगर बंगाल के वैध वोटरों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए, तो वह इस मुद्दे को वैश्विक मंचों पर उठाएंगी। उन्होंने कहा, 'मैंने कभी देश के खिलाफ विदेश में बात नहीं की, लेकिन अगर बंगाल के लोगों पर अत्याचार हुआ, तो मैं दुनिया को बताऊंगी कि यह सरकार हमें कैसे प्रताड़ित कर रही है।' 

ममता ने बंगाली भाषा और संस्कृति पर हमले का भी आरोप लगाया और कहा कि बीजेपी बंगालियों को रोहिंग्या कहकर उनकी पहचान मिटाने की कोशिश कर रही है।

2002 की वोटर लिस्ट कैसी थी?

चुनाव आयोग ने 2002 की विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर की मतदाता सूची को आधार बनाया है, जिसके आधार पर वोटरों की पात्रता की जांच की जाएगी। पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर 294 विधानसभा क्षेत्रों में से 103 की मतदाता सूची अपलोड की गई है। ममता ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि 2002 के बाद से बंगाल की मतदाता संख्या 4.7 करोड़ से बढ़कर 7.6 करोड़ हो गई है। ऐसे में पुरानी सूची के आधार पर जांच करना कई लोगों के लिए मुश्किल होगा, खासकर ग्रामीण और प्रवासी मजदूरों के लिए।
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टीएमसी का रुख

टीएमसी सांसद सुष्मिता देव ने भी इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया और कहा कि नागरिकता की जांच करना गृह मंत्रालय का काम है, न कि चुनाव आयोग का। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया बंगाल के वैध वोटरों को हटाने की साजिश है।

ममता बनर्जी के इन आरोपों ने 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले सियासी माहौल को और गर्म कर दिया है। जहां ममता ने इसे बंगाल की पहचान और लोकतंत्र पर हमला बताया है, वहीं बीजेपी ने इसे अवैध घुसपैठियों को हटाने की जरूरी प्रक्रिया करार दिया है। यह विवाद आने वाले दिनों में और तूल पकड़ सकता है, क्योंकि ममता ने सभी विपक्षी दलों से इस मुद्दे पर एकजुट होने की अपील की है।