पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में 27 जुलाई से साल भर चलने वाला भाषा आंदोलन शुरू करने का एलान किया है। उनके मुताबिक, यह बीजेपी शासित राज्यों में बांग्लाभाषी लोगों के उत्पीड़न के विरोध और इस भाषा के सम्मान की रक्षा के लिए ज़रूरी है। खुद ममता 28 जुलाई को रवींद्रनाथ टैगोर की कर्मभूमि बोलपुर से इस आंदोलन में शरीक होंगी। लेकिन भाजपा ने सवाल किया है कि आख़िर बांग्ला भाषा की रक्षा का ठेका ममता को किसने दिया है?
ममता का ‘भाषा आंदोलन’ बांग्लाभाषियों के लिए या चुनावी शिगूफा?
- पश्चिम बंगाल
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- 25 Jul, 2025
क्या ममता बनर्जी का ‘भाषा आंदोलन’ बांग्लाभाषियों के अधिकार की लड़ाई है या आने वाले चुनावों को देखते हुए राजनीतिक शिगूफा? जानिए इसके पीछे की रणनीति और विरोधियों की प्रतिक्रिया।

ममता बनर्जी
बंगाल के लिए भाषा आंदोलन का खास महत्व है। देश की आजादी के एक साल बाद साल 1948 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बांग्ला भाषा को मान्यता दिलाने की मांग में भाषा आंदोलन शुरू हुआ था। तब पाकिस्तान ने उर्दू को एकमात्र आधिकारिक भाषा घोषित किया था। 21 फरवरी, 1952 को इस आंदोलन के दौरान पुलिस ने ढाका में प्रदर्शनकारी छात्रों पर गोलियां चलाईं, जिसमें कई छात्रों की मौत हो गई थी। इस आंदोलन की वजह से ही साल 1956 में बांग्ला को पाकिस्तान की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में मान्यता दी गई। इस आंदोलन को याद करने और शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 21 फरवरी को बांग्लादेश में शहीद दिवस मनाया जाता है।