मुसलमानों के तुष्टीकरण का आरोप झेल रही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बार केवल 42 मुसलिम उम्मीदवार उतारे हैं जबकि 2016 में उन्होंने 57 मुसलमानों को पार्टी का टिकट दिया था। एक ऐसे समय में जब इंडियन सेक्युलर फ़्रंट नामक एक नई पार्टी मुसलमानों के वोटों में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है, ममता का अल्पसंख्यक समुदाय से कम उम्मीदवारों को उतारना क्या पार्टी के लिए घातक नहीं होगा? अगर हाँ, तो वे ऐसी ग़लती क्यों कर रही हैं? आइए, नीचे ममता बनर्जी और उनके चाणक्य प्रशांत किशोर की रणनीति को समझने की कोशिश करते हैं।
मुसलमानों का टिकट काटा, ममता को लाभ या घाटा?
- पश्चिम बंगाल
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- 7 Mar, 2021


ममता के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की रणनीति यह है कि वह न केवल तीसरी बार सत्ता में आए बल्कि अच्छे बहुमत के साथ आए। अच्छे बहुमत का अर्थ ख़ुद 180-200 से सीटें जीतना और बीजेपी को 100 से कम सीटों पर रोकना।
आगे बढ़ने से पहले राज्य का चुनावी गणित समझ लें। राज्य के कुल 294 विधानसभा क्षेत्रों में 46 में मुसलिमों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है।16 सीटें ऐसी हैं, जहाँ मुसलमानों की आबादी 40 फ़ीसदी से अधिक और 33 सीटों पर 30 फ़ीसदी से अधिक है। यानी क़रीब 100 सीटों पर मुसलमान किसी भी पार्टी को जिताने और हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश
























