ज़्यादातर तालिबान लोग गिलजई पठान हैं। उनके सत्तारूढ़ होने पर उनकी स्वायत्तता पाकिस्तान पर बहुत भारी पड़ सकती है। वे स्वतंत्र पख्तूनिस्तान की माँग भी कर सकते हैं। इसके अलावा तालिबान के लौटने की ज़रा भी संभावना बनी नहीं कि काबुल, कंधार, हेरात, मज़ारे-शरीफ़ जैसे शहर खाली हो जाएँगे। अमेरिका अपना पिंड छुड़ाने के लिए अफ़ग़ानिस्तान को अराजकता की भट्टी में झोंकने पर उतावला हो रहा है।
यदि तालिबान से अमेरिका और पाकिस्तान बात कर रहे हैं तो वह बात इसीलिए हो रही है कि काबुल की सत्ता उन्हें कैसे सौंपी जाए? यदि सत्ता उन्हें ही सौंपी जानी है तो चुनाव का ढोंग किसलिए किया जा रहा है?