बांग्लादेश में गुरुवार 13 नवंबर को होने वाले अवामी लीग के प्रदर्शन से तनाव की स्थिति बन गई है। बढ़ता तनाव सीमा पार करके भारत, खासकर पश्चिम बंगाल में फैल रहा है, जहां अगले गर्मी में चुनाव होने हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सलाहकार मुहम्मद यूनुस पर दबाव बढ़ रहा है। वहां की सेना पीछे हट गई है। इससे स्थितियां ठीक नहीं हैं। सड़कों पर प्रदर्शन आए दिन हो रहे हैं।

बंगाल पर असर: अगर अवामी लीग का 13 नवंबर को ढाका में होने वाला विरोध प्रदर्शन हिंसक होता है या बड़े पैमाने पर पलायन शुरू होता है, तो यह सीधे तौर पर बंगाल के पहले से ही अस्थिर राजनीतिक माहौल को बिगाड़ सकता है। बंगाल में पहले से ही चुनावी रोल (SIR) के विशेष गहन संशोधन और "अवैध प्रवासियों" पर ध्रुवीकरण करने वाली बहस के कारण माहौल गर्म है।
भारत की रणनीतिक दुविधा: भाजपा अवैध प्रवासियों के मुद्दे को राजनीतिक हथियार बना रही है। वहीं आरोप है कि मोदी सरकार ने चुपचाप हजारों अवामी लीग नेताओं और कार्यकर्ताओं को भारत में शरण लेने की अनुमति दी है, जिनमें से अधिकांश शेख हसीना के बाहर होने के बाद उत्पीड़न से भाग रहे हैं।
भारत-बांग्लादेश संबंध तनाव में: अवामी नेताओं को शरण देने से यूनुस सरकार नाराज़ है और इससे भारत-बांग्लादेश संबंध और खराब हुए हैं। यूनुस ने कथित तौर पर BIMSTEC बैठक में प्रधानमंत्री मोदी से हसीना को भारतीय सोशल मीडिया पर "भड़काऊ भाषण" देने से रोकने का अनुरोध किया था, जिसे मोदी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया था।
यूनुस की घबराहट और सेना का पीछे हटना: बांग्लादेश के अंदर, यूनुस को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है: राजनीतिक रूप से सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं और सेना के भीतर बढ़ती बेचैनी यूनुस को परेशान कर रही है। सेना की भूमिका को लेकर उनकी घबराहट इस बात से स्पष्ट है कि वह राष्ट्रपति बनने की कोशिश कर सकते हैं, जो सशस्त्र बलों के सुप्रीम कमांडर का पद भी है।
13 नवंबर का 'लॉकडाउन': यह संकट तब चरम पर पहुंचा जब अवामी लीग ने 13 नवंबर को ढाका 'लॉकडाउन' का आह्वान किया, उसी दिन एक अपराध न्यायाधिकरण द्वारा अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ फैसला सुनाए जाने की उम्मीद है। अवामी लीग को उम्मीद है कि बड़े विरोध प्रदर्शनों से न्यायाधिकरण फैसले को टालने और यूनुस पर पद छोड़ने का दबाव बनाने के लिए मजबूर होगा।
सेना का रुख और लीग को उम्मीद: अवामी लीग का मनोबल तब बढ़ा जब बांग्लादेश सेना ने कानून और व्यवस्था ड्यूटी पर तैनात 50 प्रतिशत सैनिकों को वापस लेने का फैसला किया। वरिष्ठ कमांडरों ने कथित तौर पर राजनीतिक दलों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई में भाग न लेने पर सहमति व्यक्त की है।
इस्लामवादी सत्ता पर निगाहें: यूनुस की परेशानियों को उनके इस्लामी सहयोगी और बढ़ा रहे हैं। उनके प्रमुख समर्थक, जमात-ए-इस्लामी, संसदीय चुनावों से पहले जनमत संग्रह चाहते हैं, जिसे शरिया-आधारित राज्य के लिए रास्ता बनाने के रूप में देखा जा रहा है।

सीमा पार संकट और बंगाल चुनाव 

अगर 13 नवंबर की घटना से खून-खराबा या बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन होता है, तो इसका असर बांग्लादेश की सीमाओं पर नहीं रुकेगा। भारत, खासकर बंगाल के लिए, यूनुस सरकार की मुश्किलें अब केवल पड़ोसी की समस्या नहीं हैं। यह राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है, सांप्रदायिक दरारों को भड़का सकता है और पहले से ही तनावग्रस्त क्षेत्र में चुनावी लड़ाई को जटिल बना सकता है।