US-Taliban tensions escalate on Bagram: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बगराम एयरबेस को लेकर अफगानिस्तान को फिर चेतावनी दी है कि अगर मना किया तो "बुरे अंजाम" होंगे। तालिबान ने जवाब में कहा- "एक इंच ज़मीन भी नहीं देंगे।" सवाल ये है कि ट्रंप बगराम क्यों लेना चाहते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर दावा ठोंक दिया है। ट्रुथ सोशल पर रविवार (21 सितंबर) को पोस्ट में उन्होंने चेतावनी दी, "अगर अफगानिस्तान बगराम एयरबेस को उसके बनाने वाले अमेरिका को वापस नहीं देता, तो खराब चीजें होने वाली हैं!!!" यह बयान ट्रंप का हालिया यूके दौरे के दौरान दिया गया बयान, और इस साल मार्च व मई में उनके पुराने बयानों का ही विस्तार है।
ट्रंप ने कहा कि अमेरिका तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है ताकि बेस वापस हासिल किया जा सके। उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीयर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हम इसे वापस लेने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें हमसे चीजें चाहिए।" लेकिन तालिबान ने तुरंत सख्त जवाब दिया है। तालिबान विदेश मंत्रालय के अधिकारी जाकिर जलाली ने कहा, "अफगानों ने इतिहास में कभी सैन्य उपस्थिति स्वीकार नहीं की। दोहा समझौते (2020) में यह बात साफ की जा चुकी है, लेकिन आगे बातचीत के दरवाजे खुले हैं।" तालिबान के सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ फसीहुद्दीन फितरत ने काबुल में एक समारोह में कहा, "अफगानिस्तान पूरी तरह स्वतंत्र है। एक इंच जमीन भी किसी को नहीं देंगे। हम किसी धमकी या आक्रामकता से नहीं डरते। अगर दुश्मनी हुई तो सबसे मजबूत जवाब देंगे।"
ट्रंप क्यों चाहते हैं इसे वापस?
बगराम एयरबेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है, जो काबुल से करीब 50 किमी उत्तर में स्थित है। अमेरिका ने इसे 2001 के 9/11 हमलों के बाद 'वॉर ऑन टेरर' के तहत विकसित किया था। यह 77 वर्ग किमी में फैला है, जिसमें नई रनवे, मेडिकल सुविधाएं, फास्ट फूड चेन (जैसे बर्गर किंग, पिज्जा हट) और एक बड़ा जेल कॉम्प्लेक्स है। अमेरिकी सेना के लिए यह लॉजिस्टिक्स हब था, जहां 10,000 से ज्यादा सैनिक तैनात रहते थे।
ट्रंप इसे वापस इसलिए भी चाहते हैं...
चीन के खिलाफ रणनीतिक महत्व: ट्रंप ने कहा कि बगराम बेस "चीन के न्यूक्लियर हथियार बनाने वाले साइट से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर" है। उनका दावा है कि तालिबान सत्ता में आने के बाद चीन ने बेस पर कब्जा कर लिया है (हालांकि बीबीसी की सैटेलाइट इमेज जांच से इसका कोई सबूत नहीं मिला)। यह अमेरिका को मध्य एशिया में चीन की बढ़ती सैन्य क्षमता पर नजर रखने और काउंटर-टेररिज्म मिशनों के लिए लॉन्च पॉइंट देगा।
बाइडेन की आलोचना: ट्रंप 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी को "पूर्ण आपदा" बताते हैं। उस समय जो बाइडेन यूएस के राष्ट्रपति थे। उनका कहना है कि उनकी सरकार में बेस नहीं छोड़ा जाता। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति बाइडन पर "घोर अक्षमता" का आरोप लगाया है।
आर्थिक दबाव: ट्रंप का मानना है कि अफगानिस्तान की आर्थिक संकट (अंतरराष्ट्रीय मान्यता न मिलना, आंतरिक कलह) के कारण तालिबान को अमेरिकी मदद की जरूरत है, जिसके बदले बेस लौटाया जा सकता है।
अमेरिकी अधिकारी चेतावनी दे रहे हैं कि बेस वापस लेना "पुनः आक्रमण" जैसा होगा, जिसमें 10,000 से ज्यादा सैनिक और एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत पड़ेगी। आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे खतरों से बचाव भी चुनौती होगा।
तालिबान का रुख: सैन्य मौजूदगी बर्दाश्त नहीं, 20 साल और लड़ेंगे
तालिबान ने ट्रंप के दावे को खारिज करते हुए कहा कि 2020 के दोहा समझौते में अमेरिका ने अफगानिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का वादा किया था। प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा, "अमेरिका को यथार्थवाद और तर्कसंगत नीति अपनानी चाहिए।" तालिबान ने अमेरिकी नागरिकों की रिहाई पर हालिया काबुल वार्ता का जिक्र किया, लेकिन सैन्य उपस्थिति को "असंभव" बताया। सोशल मीडिया पर तालिबान समर्थक पोस्ट कर रहे हैं, "हम 20 साल और लड़ने को तैयार हैं।"
अफगानिस्तान-अमेरिका के मौजूदा संबंध
कोई राजनयिक संबंध नहीं है। अमेरिका और अफगानिस्तान (तालिबान सरकार) के बीच कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। अमेरिका ने तालिबान को मान्यता नहीं दी है, लेकिन बंधकों की रिहाई और मानवीय सहायता पर सीमित बातचीत होती रहती है। ट्रंप प्रशासन के विशेष दूत एडम बोहलर और पूर्व अफगान दूत खलीलजाद ने हाल ही में तालिबान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से मुलाकात की थी।
यह विवाद अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता को नया मोड़ दे सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बगराम पर जोर अफगानिस्तान को फिर से युद्धक्षेत्र बना सकता है। अमेरिका के कान तब से खड़े हैं, जब हाल ही में तालिबान नेतृत्व ने चीन की यात्रा की थी। चीन में बैठक के बाद जो बयान जारी किया गया था उसमें चीन ने अफगानिस्तान की भरपूर मदद का वादा किया था।