मुल्ला मुहम्मद हसन अखुंद के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार बनने से लोगों को बामियान विध्वंस की याद ताज़ा हो गई।
सातवीं सदी में हिन्दुकुश पहाड़ पर खोद कर बनाई गई उस समय की सबसे ऊँची खड़ी बुद्ध प्रतिमा के विध्वंस से अखुंद सीधे तौर पर जुड़े थे या नहीं, इस पर संशय बना हुआ है।
हालांकि यह कहा जाता है कि अखुंद उस समय मुल्ला मुहम्मद उमर के क़रीबी थे और विध्वंस के उनके फ़ैसले में इनकी भी रज़ामंदी थी, पर इसका कोई साफ सबूत नहीं है।
इतना तो साफ है कि मुल्ला अखुंद उस समय अफ़ग़ानिस्तान के उप प्रधानमंत्री थे, विध्वंस का अंतिम फ़ैसला लेने वाले मुल्ला उमर के बेहद करीबी थे।
बामियान विध्वंस
छठी सदी के अंत से लेकर सातवीं सदी की शुरुआत में बामियान में बनी 55 मीटर ऊँची मूर्ति को मार्च 2001 में पहले विस्फोटक और उसके बाद मिसाइल से तोड़ दिया गया।
हिन्दुकुश पर्वत स्थित बामियान घाटी चीन और यूरोप को जोड़ने वाले सिल्क रूट पर स्थित है, जो 770 में अब्बासिद ख़िलाफ़त के ख़लीफ़ा अल महदी के शासन काल में ही मुसलमानों के नियंत्रण में आ गया था।
थोड़े समय के लिए मुसलमानों के नियंत्रण से दूर रहने के बाद 977 में इस पर तुर्की के गज़नवी वंश का क़ब्ज़ा हो गया।
मुसलमानों के नियंत्रण में लगभग 1300 साल रहने के बावजूद बामियान बुद्ध प्रतिमा को नेस्त-नाबूद करने का विचार किसी के मन में नहीं आया, किसी मुसलमान शासक ने इसे काफ़िरों की बुतपरस्ती का प्रतीक मान कर ध्वस्त करने की कोशिश नहीं की।
तालिबान के समय क्या हुआ?
अफ़ग़ानिस्तान में 1998-2001 के गृह युद्ध के दौरान बामियान घाटी पहले नॉदर्न अलायंस के नियंत्रण में था, लेकिन 1998 में तालिबान ने इसे चारों ओर से घेर लिया।
बामियान बुद्ध को तोड़ने का विचार सबसे पहले तालिबान के स्थानीय कमांडर अब्दुल वहीद के मन में आया, उन्होंने प्रतिमा के सिर में छेद कर विस्फोटक भर दिए।
लेकिन तालिबान के प्रमुख मुल्ला मुहम्मद उमर ने उन्हें ऐसा करने से रोका। उमर ने जुलाई 1999 में प्रतिमा को केंद्र में रख कर पर्यटन सर्किट विकसित करने की बात भी कही।
पर्यटन केंद्र
इतना ही नहीं, तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र से संपर्क किया और प्रतिमा जिस मेहराबदार खाँचे में बनाई गई थी, उसके ऊपर पानी की निकासी व्यवस्था विकसित करने में मदद माँगी।
तालिबान ने 27 फरवरी 2001 को बामियान बुद्ध को ध्वस्त करने का एलान कर दिया।
मूर्ति तोड़ने के फ़ैसले का विरोध
पूरी दुनिया तो इसके ख़िलाफ़ थी ही, ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इसलामिक कोऑपरेशन ने इस फ़ैसले का विरोध किया। जिन तीन देशों ने तालिबान सरकार को मान्यता दे रखी थी- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान, उन्होंने भी इसका विरोध किया।
तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने आतंरिक सुरक्षा मंत्री मुइनुद्दीन हैदर को काबुल भेजा।
![mullah muhammad hasan akhunda behind bamiyan buddha of afghanistan, taliban - Satya Hindi mullah muhammad hasan akhunda behind bamiyan buddha of afghanistan, taliban - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/08-09-21/61389b77e8c49.jpg)
मूर्ति बचाने की अंतरराष्ट्रीय कोशिश
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनीसेफ़ ने एक के बाद एक 36 पत्र लिखे, दुनिया की कई सरकारों ने अपील की। कुछ सरकारों ने आग्रह किया कि वे पैसे देकर प्रतिमा खरीद लेंगे, कुछ संस्थाओं ने प्रस्ताव किया कि वे प्रतिमा के चारो ओर दीवार खड़ी कर देंगे ताकि किसी को यह बुत न दिखे।
तालिबान पर कोई असर नहीं हुआ। बामियान बुद्ध की प्रतिमा ध्वस्त कर दी गई।
सवाल है कि ऐसा क्यों किया गया?
मुल्ला मुहम्मद उमर ने 'द टाइम' पत्रिका को मार्च 2001 दिए एक इंटरव्यू में कहा था,
“
मैंने अपने आपसे कहा कि इन लोगों को बेहाल हज़ारों अफ़ग़ानों की कोई चिंता नहीं है, पर इस बेजान मूर्ति पर पैसे खर्च करना चाहते हैं। इस कारण ही मैंने मूर्ति तोड़ने का आदेश दे दिया।
मुल्ला मुहम्मद उमर, तालिबान के दिवंगत संस्थापक
मुल्ला उमर ने बाद में कहा था, "मूर्ति तोड़ने पर मुसलमानों को गौरव होना चाहिए। अल्लाह की मेहरबानी है कि हमने मूर्ति को ध्वस्त कर दिया।"
अफ़ग़ानिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री वकील अहमद मुत्तवकील ने जापानी पत्रिका माइनिची शिनबुम से कहा,
“
यह बिल्कुल धार्मिक आधार पर हुआ और इसे शरीआ के क़ानूनों के अनुसार किया गया। अफ़ग़ानिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय जगत के आर्थिक प्रतिबंधों का इससे कोई लेनादेना नहीं है।
वकील अहमद मुत्तवकील. तत्कालीन विदेश मंत्री, अफ़ग़ानिस्तान
कैसे हुआ विध्वंस?
अंत में बामियान बुद्ध की प्रतिमा को ध्वस्त करने का काम 2 मार्च 2001 को शुरू हुआ।
पहले इसे डाइनामाइट से उड़ाने की कोशिश हुई, उसके बाद इस पर एंटी एअरक्राफ़्ट गन से चोट की गई। इससे मूर्ति को नुक़सान तो पहुँचा, पर वह टूटी नहीं।
![mullah muhammad hasan akhunda behind bamiyan buddha of afghanistan, taliban - Satya Hindi mullah muhammad hasan akhunda behind bamiyan buddha of afghanistan, taliban - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.cdn.digitaloceanspaces.com/app/uploads/08-09-21/61389d06be07c.jpg)
इसके बाद एंटी टैंक माइन्स लगा कर इसे उड़ाने की कोशिश की गई। इससे इस चट्टान के कई टुकड़े हो गए।
अंत में तालिबान ने दीवाल के अंदर कई जगहों पर छेद कर विस्फोटक लगाए और उसे उड़ा दिया। कुल मिला कर यह बेहद ही मुश्किल भरा काम था।
यह तो साफ है कि बामियान विध्वंस पर अंतिम फ़ैसला मुल्ला उमर ने लिया था, पर इस मामले से मौजूदा प्रधानमंत्री अखुंद को पूरी तरह बरी नहीं किया जा सकता है।
वे उस समय अफ़ग़ानिस्तान के उप प्रधानमंत्री थे, मुल्ला उमर के नजदीक थे और सरकार के रोज़मर्रा के कामकाज को देखते थे। इसलिए उनकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अपनी राय बतायें